साहित्य, समाज और संघर्ष के संवेदनशील ‘यात्री’
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July 10, 2020

जब भी आप जाने माने कथाकार, व्यंग्यकार और बेहद संवेदनशील लेखक से रा यात्री से मिलेंगे, आपको इस 88 बरस के नौजवान के भीतर अपार रचनात्मक ऊर्जा मिलेगी... सेहत बेशक साथ नहीं देती, ज्यादातर वक्त बिस्तर पर गुज़रता है और कुछ बीमारियों ने उन्हें बरसों से जकड़ रखा है, लेकिन जब यात्री जी अपनी रौ में बातें करते हैं तो दुनिया जहान की तमाम खबरों, साहित्य जगत की हलचलों के अलावा अपने दौर की ढेर सारी यादो

सिक्के का दूसरा पहलू …
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July 6, 2020

मैं छोटा सा रहा होउंगा। यही कोई पांच सात बरस का। गर्मी की एक दोपहर पिताश्री और मोटा ताऊ जी (पिताश्री के कॉलेज के सहयोगी श्री एम.डी.शर्मा जी) के साथ पहली बार किसी गांव के रोमांचक सफर पर निकलने का अवसर मिला था। इससे पहले तक  मैं अपने सगे ताऊ जी के पास मुजफ्फरनगर में रहता था। ट्रेन से गाजियाबाद आते-जाते पटरी के साथ दौड़ते कईं गांव नजर आते थे। जिनमें झांकने की कोशिश से पहले ही वह उड़न छू हो ज

तुम भी बैठ जाओ किसी की ‘गोदी’ में…
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June 21, 2020

"अजी सुनते हो... पूरी दुनिया के दफ्तर खुल गए... मुए एक तुम्हारे दफ्तर को ही आग लगी है... कुछ तो शर्म करो... घर से ऑफिस कब तक चलाओगे... अब तो कामवाली से लेकर अड़ोसन-पड़ोसन भी पूछने लगी हैं... बड़े सूरमा बने फिरते हो... सोसाइटी में भी डरपोक का खिताब मिलने वाला है..."   श्रीमती जी के प्रवचन हरि कथा की तरह अनंत होते जा रहे थे। इस निरीह प्राणी की बुद्धि में सुबह-सुबह श्रीमती जी के प्रवचनों की कोई वजह फिट नही

अजी, आप तो बड़े वो हैं…
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May 15, 2020

फोन "मल्लिका" परवीन का था। तखल्लुस वह नाम से पहले लगाती हैं। इससे पहले भी वाट्सएप पर उनके कई मैसेज आ चुके थे। जिनमें से सुप्रभात, गुड मार्निंग जैसे तीन-चार मैसेज का मैं जवाब भी दे चुका था। हमने फोन उठाना ही मुनासिब समझा। क्योंकि मल्लिका जी अनुग्रह-विग्रह में बहुत यकीन रखती हैं।

जी हां, ‘वध काल’ में मैं सिर्फ मौत बेचता हूं…
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April 25, 2020

बहुत दिनों से प्रिंट मीडिया का चेहरा सलीके से नहीं देखा था। दिन निकलते ही खबरिया चैनल अपने पिटे पिटाये अंदाज़ में खबरें परोसने में लगे रहते हैं। बेगम की चाय की प्याली से पहले "हॉट सीट" तक की यात्रा यह आसान बना देते हैं। मौत के आंकड़ों का गणित आपको लगातार खौफज़दा करता रहता है। इस "वध काल" में चचा गालिब की सलाह मानना ही बेहतर..

कैसे-कैसे जिन्न बोतल के बाहर…
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April 15, 2020

आपने बोतल में जिन्न वाली कहानी सुनी है? होता यह है कि समंदर के किनारे घूम रहे एक बालक के हाथ एक बोतल लग जाती है। बोतल में एक जिन्न बंद होता है। जो स्वयं को आजाद किए जाने की गुहार लगाता रहता है। बोतल खोलते ही जिन्न बाहर आ जाता है और ऐसी खुराफातें और कारनामे करता है कि पूरा शहर, देश और दुनिया ही उसकी हरकतों से आजिज आ जाती है। आप कहेंगे कि इस कहानी का यहां क्या सरोकार?

कोई तो करे फ़िक्र हम खानाख़राबियों की…
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April 9, 2020

दो हफ्ते हो गै, दस दिनां से निगाहं अटकी है रस्ते पे..., मुआ कोई तो सूरत दिखाए... टंगे खिड़की पे चिड़ियाघर में बंदर की माफिक...यूई जरिया बचा अब तो... खुदी बांच लो... जो बांच लो सो बांट लो... पोथे बांचते आंख भी ढेल्ला हो गीं

आम के पेड़ पर अगर आ जाए बौर…
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April 6, 2020

पूरी दुनिया कोरोना वायरस से खौफजदा है। लोगों के घर से निकलने पर पाबंदी है। डॉक्टर की बिन मांगी सलाह पर अमल करते हुए मैंने भी पार्क में घुमक्कड़ी बंद कर छत की राह पकड़ ली है। टहलने को इससे मुफीद जगह और क्या होगी? बरसों से रूठे, मुंह चढ़ाए बैठे अड़ोसियों-पड़ोसियों से भारत-पाक का सा बैर भी खत्म हो गया है।

‘उत्तर आधुनिकता परोसने की कोशिश में सुमेरू पर्वत न उठाएं’
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July 15, 2019

साहित्य देश और समाज की तस्वीर हमारे सामने लाने का शाश्वत जरिया है। कलमकार के रूप में हमारी जिम्मेदारी है कि हम देश में पनप रही विद्रूपताओं और विसंगतियों को देखें, समझें और इस बात का आकलन करें कि इनके निस्तारण में एक कलमकार भूमिका कैसे निभाए। मीडिया 360 लिट्रेरी फाउंडेशन के "कथा संवाद" को संबोधित करते हुए कार्यक्रम अध्यक्ष डॉ. अशोक मैत्रेय ने उक्त उद्गार प्रकट किए। डॉ. मैत्रेय ने कहा

विषम दौर में शब्द ही बनता है रक्षा कवच : ममता कालिया 
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October 29, 2018

वरिष्ठ कथाकार ममता कालिया का कहना है कि हम एक कठिन दौर से गुजर रहे हैं। सूचना का यह दौर हमारी सोच और संवेदनशीलता पर निरंतर आघात कर रहा है। इनके अविराम आदान-प्रदान से लगता है कि पूरा देश ही कुरुक्षेत्र बना हुआ है। हर एक अपने-अपने तरीके से महाभारत से जूझ रहा है। ऐसे दौर में "शब्द" ही रक्षा कवच का काम करता है।

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