वाराणसी के जाने माने रंगकर्मी गोपाल गुर्जर की बेशक कोई राष्ट्रीय पहचान न बन पाई हो लेकिन उनकी प्रतिभा को रंग जगत और सिने जगत ने कुछ हद तक पहचाना जरूर। उनका गुज़रना कम से कम वाराणसी रंगमंच की दुनिया के लिए एक बड़ी क्षति है। संवेदनशील पत्रकार और ‘नाद रंग’ पत्रिका के संपादक आलोक पराड़कर ने गोपाल गुर्जर को ‘राष्ट्रीय सहारा’ में लिखे अपने लेख के ज़रिये कुछ इस तरह याद किया.. 7 रंग के पाठको
आज के दौर में अगर लघु पत्रिका और खासकर इस विषय पर केन्द्रित एक पत्रिका को निकालने की हिम्मत जुटाना आसान काम नहीं। लेकिन युवा पत्रकार आलोक पराड़कर की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपने इस जज़्बे को बरकरार रखते हुए ‘नाद रंग’ निकालने का साहस किया। व्यावसायिकता और बाज़ारीकरण के इस दौर में पत्रिका निकाल पाना और उसे चला पाना कठिन चुनौती है और खासकर तब भी जब ‘डिजिटल युग’ और ‘मोबाइलीकरण’ न