‘न थका न रुका न हटा न झुका’

आज भी बहुत प्रासंगिक हैं आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी….

उनकी रचनाओं में सांस्कृतिक-साहित्यिक अभिव्यक्तियों के तमाम आयाम हैं…

— प्रेरणा मिश्रा

रजनीदिन नित्य चला ही किया मैं अनंत की गोद में खेला हुआ

चिरकाल न वास कहीं भी किया किसी आँधी से नित्य धकेला हुआ

न थका न रुका न हटा न झुका किसी फक्कड़ बाबा का चेला हुआ

मद चूता रहा तन मस्त बना अलबेला मैं ऐसा अकेला हुआ

हिंदी साहित्य जगत के पुरोधा आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का हिंदी साहित्य में योगदान कभी नकारा नहीं जा सकता। कबीर जैसे महान संत को दुनिया से परिचित कराने का श्रेय भी इन्हीं को जाता है। द्विवेदी जी हिंदी निबंधकार, आलोचक और उपन्यासकार थे।

उत्तर प्रदेश में बलिया जिले के छपरा गांव में 19 अगस्त 1907 को जन्मे द्विवेदी जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा संस्कृत में ग्रहण की। सन 1930 में इंटरमीडिएट करने के बाद उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से ज्योतिष की परीक्षा पास की। उन्हें आचार्य की उपाधि मिली। द्विवेदी जी अध्यापन के लिए शांतिनिकेतन चले गए वहां 1940 से 1950 के बीच वह विश्व भारत में हिंदी भवन के निदेशक रहे। उन्हें संस्कृत, पाली, प्राकृत, अपभ्रंश हिंदी, गुजराती, पंजाबी आदि कई भाषाओं का गहरा ज्ञान था। रवींद्रनाथ टैगोर, क्षितिमोहन सेन, विधुशेखर भट्टाचार्य और बनारसी दास चतुर्वेदी के प्रभाव से उनमें साहित्यिक गतिविधियों में दिलचस्पी बढ़ी।

द्विवेदी जी के निबंधों के विषय भारतीय संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष, साहित्य विविध धर्मों और संप्रदायों का विवेचन आदि है। इनका रचनात्मक और आलोचनात्मक साहित्यिक लेखों में महान योगदान है। इनके कुछ महत्वपूर्ण कार्य साहित्य कि भूमिका और हिंदी साहित्य का आदिकाल हैं। इन दोनों रचनाओं ने हिंदी के आलोचन के इतिहास को नया तरीका और रास्ता प्रदान किया है। भारत के मध्ययुगीन आध्यात्मिक जीवन के ऐतिहासिक विश्लेषण से संबंधित कुछ रचनाएं निम्नलिखित हैं: कबीर,नाश संप्रदाय,मध्यकालीन धर्म साधना।

द्विवेदी जी की परम प्रसिद्ध पुस्तक ‘कबीर’ प्रकाशित हुई। इस पुस्तक के माध्यम से उनका समीक्षक रूप उभर कर सामने आया।कबीर की पंक्तियां –

अंखडिया झाई परी पंथ निहारी निहारी,

जिभड़ियान छाला पड़या नाम पुकारि पुकारी

द्विवेदी जी की कुछ लोकप्रिय रचनाओं में आम फिर बौरा गए, शिरीष के फूल, भगवान महाकाल का कुंथानृत्य, महात्मा के महा प्रयाण के बाद, ठाकुर जी की वटूर, संस्कृतियों का संगम, मनुष्य की सर्वोत्तम कृति साहित्य, साहित्य का नया कदम, आदिकाल के अंतर प्रांतीय साहित्य का ऐतिहासिक महत्व आदि हैं।

प्रमुख रूप से आलोचक इतिहासकार और निबंधकार के रूप में प्रख्यात द्विवेदी जी की कवि हृदयता यूं तो उनके उपन्यास निबंध और आलोचना के साथ साथ इतिहास में भी देखी का सकती है लेकिन एक तथ्य यह भी है कि उन्होंने बड़ी संख्या में कविताएं लिखी है। हजारी प्रसाद द्विवेदी जी को भारत सरकार ने उनकी विद्वता और साहित्यिक सेवाओं को ध्यान में रखते हुए साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में 1957 में ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित किया था। द्विवेदी जी की मृत्यु 19 मई, 1979 ई. में हुई थी।

अपनी रचनाओं के माध्यम से मनुष्य को साहित्य को केंद्र में प्रतिष्ठित करने के कारण ही आचार्य द्विवेदी आलोचना की समग्र और संतुलित दृष्टि के निर्माण पर बल देते हैं। सामाजिकता का यह आग्रह ही उन्हें मानवतावादी बनाता है। यही कारण है कि द्विवेदी जी की गिनती हिंदी के प्रगतिशील आलोचकों में की जा सकती है।

Posted Date:

August 19, 2020

3:18 pm Tags: , ,
Copyright 2023 @ Vaidehi Media- All rights reserved. Managed by iPistis