जब मैंने लोकसभा सचिवालय की नौकरी छोड़ 'दिनमान' से जुड़ने का निर्णय किया तो कुछ लोग मुझे डराने लगे। वहां बहुत दिग्गज हैं, तड़ीबाज हैं,धाँसू हैं वहां के माहौल में तुम अनफिट हो। बिन मांगे जबरन सलाह देने वाले ऐसे लोगों से पिंड छुड़ा कर मैं पहली जनवरी, 1966 में दिनमान से जुड़ गया ।मुझे वहां का वातावरण बहुत ही सुखद और सुकून भरा लगा। अज्ञेय जी ने सभी से मेरा परिचय कराया - मनोहर श्याम जोशी, जितेन्द्र ग
Read Moreएक दिन आकस्मिक किसी का फोन आया कि एक बजे दोपहर को ओबेरॉय होटल में आपको साधना और उनके पति आर.के.नैयर ने लंच पर बुलाया है। मैंने कहा कि फ़िल्म मेरी बीट नहीं है, मुझे क्यों बुलाया गया है। उस व्यक्ति का जवाब था, यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे आपका फोन नंबर और नाम दिया गया है। उन दिनों मैं 'दिनमान' में काम करता था। अपने संपादक रघुवीर सहाय के कक्ष में जाकर हक़ीक़ बयां की। उन्होंने कहा हो आईये।
Read Moreएक दौर था जब “संपादक के नाम पत्र” का महत्व समाचार पत्रों में अग्रलेखों के ठीक बाद हुआ करता था| चर्चित पत्र अंतिम होता, तो श्रेष्ट पत्र पर पारितोष की परम्परा भी थी| ज़माना बदला| अब विज्ञापनदाता ही भारी भरकम संवाददाताओं को कोहनी मार देते हैं| तो अदना पाठक की क्या विसात? उसका कालम-स्पेस तो सिकुड़ेगा ही| ऐसे मंजर में 4 जुलाई 2020 को मुंबई के मलाड में 90-वर्षीय एंथोनी पाराकल का निधन पीड़ादायक है|
Read More1969 में पहली बार लद्दाख गया था फौजियों के साथ। रास्ते में मुझे दो जानकारियां ऐसी मिलीं जो उस समय मेरे लिए नई थीं। एक, द्रास दुनिया का दूसरा सबसे ठंडा स्थान है और दूसरी लद्दाख में एक ऐसा यूरोपीय विद्वान अपना पूर्व निश्चित रास्ता न पाकर लद्दाख पहुंच गया और यहां तिब्बती भाषा के शब्दकोश और व्याकरण को लिखने में ऐसा जुटा कि उसे अपना मूल लक्ष्य बिसर गया। मैंने उसी वक़्त मन ही मन अपने से दो वाद
Read Moreवसन्त पंचमी मतलब वाणी पुत्र कवि निराला की सालगाँठ। कौन सी थी? बहस अभी जारी रहेगी। निराला किस सदी के थे? वे तो एक युग के हैं। किन्तु युग के मायने भी एक सीमित काल खण्ड से ही होगा। निराला तो कालजयी हैं। ऐसी हस्ती को एक सदी या एक युग के दायरे में बाँधने की मजाल कौन करें? फिर भी चन्द फितरतियों ने वृथा चर्चा चलवा दी थी।
Read Moreपूरा देश जॉर्ज फर्नांडिस को अपने अपने तरीके से याद कर रहा है। आम आदमी से जुड़े, संघर्षों में तपे और सादगी के पर्याय जॉर्ज साहब बरसों से गुमनामी के अंधेरे में गंभीर बीमारी से अकेले जूझ रहे थे। फिर 29 जनवरी 2019 को आखिरकार उन्होंने सबको हमेशा के लिए अलविदा कह दिया। जाने माने वरिष्ठ पत्रकार के. विक्रम राव ने उनके साथ लंबा वक्त बिताया, संघर्ष के दिनों के साथी रहे, इमरजेंसी के दौरान जेल में सा
Read Moreकरीब तीन दशक बाद गत सप्ताह गायकवाड़ी नगर बडौदा (आज बड़ोदरा) प्रवास का मौका मिला| पत्रकार सुरक्षा हेतु राष्ट्रीय कानून को लेकर गुजरात और महाराष्ट्र के दौरे पर गया था| कुल आधी सदीवाले अपने पत्रकारी जीवन का श्रेष्ठतम दौर यहीं गुजरा था| कवि जार्ज बायरन ने लिखा था कि सुखद स्मृतियों के मुकाबले दर्दभरी यादें अधिक स्थायी होती हैं| इसीलिए इस यात्रा में घनीभूत पीड़ा (प्रसाद की कामायनी वाली)
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