देश विदेश के अलग अलग हिस्सों में भारतीय साहित्य, कला और संस्कृति से जुड़े तमाम कार्यक्रम होते हैं, ढेर सारी गतिविधियां होती हैं। कई ख़बरें भी होती हैं जो हम तक नहीं पहुंच पातीं। गोष्ठियां, कार्यशालाएं होती हैं, रंगकर्म की तमाम विधाओं की झलक मिलती है और लोक संस्कृति के कई रूप दिखते हैं। नए कलाकार, नई प्रतिभाएं और संस्थाएं साहित्य-संस्कृति को समृद्ध करने की कोशिशों में लगे रहते हैं लेकिन उनकी जानकारी कम ही लोगों तक पहुंच पाती है। हमारी कोशिश है कि इस खंड में हम ऐसी ही गतिविधियों और ख़बरों को शामिल करें … चित्रों और वीडियो के साथ।
प्रेमचंद का गाँव यानि वाराणसी ज़िले (उप्र०) का लमही गाँव! 8 अक्टूबर की सांझ हम प्रेमचंद के गाँव में थे। हम यानि रंगलीला 'कथावाचन’ की रंगमंडली। यह मुंशी प्रेमचंद की 81वीं पुण्यतिथि का दिन था। मई माह में जिस दिन 'कथावाचन' के तहत मैंने प्रेमचंद की कहानियों की प्रस्तुतियों का निर्णय लिया था तब कल्पना भी नहीं की थी कि किसी दिन इन प्रस्तुतियों को लेकर 'कथा सम्राट' की उस धरती तक भी जाना होगा जहा
Read Moreआगरा की नाट्य संस्था 'रंगलीला' इस बार प्रेमचंद की पुण्यतिथि (8 अक्टूबर, ) के अवसर पर उनकी जन्मस्थली लमही (ज़िला वाराणसी) में अपने चर्चित कार्यक्रम 'कथावाचन में उनकी 3 कहानियों ('ईदगाह', 'पूस की रात', और 'ठाकुर का कुआं') की प्रस्तुति अपराह्न 4 बजे देगी। बनारस की संस्था 'सुबह-ए- बनारस' ने इसका आयोजन किया है।
Read Moreकिसी प्राकृतिक आपदा और ऐसी किसी त्रासदी को एक कलाकार किस तरह देखता है और उसे अपनी कला के ज़रिये कैसे आम लोगों के सामने अभिव्यक्त करता है, इसे समझना है तो देहरादून में बनाए गए उत्तरा समकालीन आधुनिक कला संग्रहालय आइए। मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने इस अनोखे कला संग्रहालय और गैलरी को 4 अक्तूबर को कला प्रेमियों और आम जनता को समर्पित किया। इस गैलरी और संग्रहालय की परिकल्पना जाने
Read Moreसाहित्य कला परिषद के आगामी नाट्य समारोहों के लिए कलाकारों से जो प्रविष्ठियां मांगी गई हैं, उनकी शर्तें अगर पढ़िए तो साफ लगेगा कि अब सरकार कंटेंट अपने मतलब का चाहती है, स्क्रिप्ट वैसा ही चाहिए जो सरकार की नीतियों की तारीफ करे। इसके खिलाफ दिल्ली के युवा रंगकर्मियों में असंतोष है। मशहूर रंगकर्मी, निर्देशक और जन सरोकारों से जुड़े मुद्दों पर नाटक करने वाली संस्था अस्मिता के संस्थापक
Read Moreदिल्ली की 40 साल पुरानी एवं राजधानी की प्रमुख लव-कुश रामलीला कमेटी ने लाल किला मैदान में परंपरागत तरीके से पूजा पाठ के साथ रामलीला की शुरूआत कर दी। गुरुवार को गणेश पूजन एवं गणेश वंदना पर आधारित भव्य नृत्य के साथ लालकिला मैदान में रामलीला मंचन शुरू हुआ। इसमें बॉलीवुड और टीवी इंडस्केट्री के कई जाने माने कलाकार हिस्सा ले रहे हैं।
Read Moreअसम और पूर्वोत्तर राज्यों में भारतीय शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने और नई प्रतिभाओं को तलाशने में जुटी संस्था प्रतिश्रुति फाउंडेशन ने पिछले दिनों तबला को लेकर एक कार्यशाला का आयोजन किया। इसमें कई बच्चों और युवा कलाकारों ने हिस्सा लिया। इस कार्यशाला में तबला की बारीकियों के अलावा इसके वादन की कला को समझाने की कोशिश की गई, साथ ही कई कलाकारों ने तबलावादन से जुड़ी तमाम तकनीक भी सीख
Read Moreसमाज में जागरूकता फैलाने, बधिरों को खेल और संस्कृति की मुख्य धारा से जोड़ने और उन्हें खेल और दूसरे क्षेत्रों में आगे लाने के मकसद से नोएडा बधिर सोसाइटी ने रविवार को नोएडा में ‘द रन फॉर होप’ मैराथन का आयोजन किया। इसकी परिकल्पना दिल्ली पब्लिक स्कूल, नोएडा की छात्रा साक्षी सिद्धम की थी। साक्षी की पहल पर नोएडा डेफ सोसाइटी ने सेक्टर 30 से करीब 3 किलोमीटर के ‘रन फॉर होप’ मैराथन में 200 से ज्य
Read Moreललित कला अकादमी ने ‘सन्डे आर्ट हाट’ नाम से एक पहल की है जिसमें कलाकार किसी भी मध्यस्थ और कमीशन से मुक्त स्वयं आर्ट बायर्स से सीधा संवाद स्थापित कर पाएंगे. सन्डे आर्ट हाट का उद्घाटन अकादमी के प्रशासक श्री सि एस कृष्ण सेट्टी ने किया। उद्घाटन के अवसर पर उन्होंने कहा कि “यह युवा और उन उभरते हुए कलाकारों के लिए एक अनोखा अवसर है जिनके पास किसी गैलरी का स्थायी सपोर्ट नहीं है या फिर प्रदर्श
Read Moreत्रिलोचन की रचनाओं ने हिन्दी साहित्य को जो आयाम दिए और उनकी शैली ने जिस तरह कविता की नई परिभाषा लिखी, उससे आज के रचनाकार बहुत कुछ सीख सकते हैं। मशहूर कवि केदारनाथ सिंह ने त्रिलोचन की जन्म शताब्दी के मौके पर साहित्य अकादमी की ओर से आजित संगोष्ठी का उद्घाटन करते हुए कहा कि त्रिलोचन की कविताएं हमेशा प्रासंगिक रहेंगी। त्रिलोचन ज़मीन से जुड़े एक ऐसे रचनाकार थे जिन्हें संस्कृति और समाज
Read Moreमशहूर टीवी पत्रकार विनोद दुआ ने जब नीलिमा डालमिया आधार की नई किताब ‘द सीक्रेट डायरी ऑफ कस्तूरबा’ के हिन्दी संस्करण ‘कस्तूरबा की रहस्यमयी डायरी’ के कुछ हिस्से पढ़े और लेखिका के अनुभवों के साथ इन्हें जोड़ा गया तो लगा मानो हम एक बार फिर उस दौर में जा पहुंचे हों। नीलिमा ने बताया कि कैसे उन्होंने इस किताब को लिखते वक्त और इसके बारे में ऐतिहासिक तथ्यों की पड़ताल करते वक्त कस्तूरबा की ज
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