वे बेशक 91 साल के हो चुके हों, लंबे समय से अस्पताल में हों लेकिन उनके भीतर का कवि आखिरी वक्त तक सांस लेता रहा। गाजियाबाद में ही वयोवृद्ध कवि कृष्ण मित्र ने अपना पूरा जीवन बिता दिया। देश उनकी कविताओं में धड़कता था। मौजूदा सियासी हालात से वह बहुत खुश नहीं थे, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी उनके हमेशा से आदर्श रहे।
Read Moreओज के कवि कृष्ण मित्र आज हमारे बीच नहीं हैं। ओज के इस महाकवि ने लगभग पांच दशक से भी अधिक समय तक देश-विदेश में गाजियाबाद का परचम लहराया। पिताश्री से. रा. यात्री के साहित्य होने के नाते मेरा उनसे पारिवारिक नाता तो बरसों से था। लेकिन मुझे उनका स्थाई संरक्षण करीब 38 साल पहले तब मिला जब एम. ए. करने के दौरान 1984 में मैं विनय संकोची के सानिध्य में दैनिक प्रलयंकर में उनका सहयोगी हो गया।
Read Moreरंगमंच के तमाम आयामों और थिएटर पर चलने वाली बहसों को करीब से देखने समझने और उसपर लगातार लिखने वाले नाटककार राजेश कुमार ने दिल्ली के उस नए ट्रेंड को पकड़ने की कोशिश की है जो रंगकर्मियों के लिए नया उत्साह जगाने वाला है। अब तक कई चर्चित नाटक लिख चुके राजेश कुमार ने स्टूडियो थिएटर की इस नई परिकल्पना को करीब से देखा।
Read Moreजाने माने रचनाकार सुरेश उनियाल का मानना है कि "कथा संवाद" में हो रहा विमर्श इस आयोजन को साहित्य संसद का स्वरूप प्रदान कर रहा है। कथा संवाद के जरिए कहानी की वाचिक परंपरा समृद्ध हो रही है। 20 नवंबर को कथा सवाद की ताजा कड़ी की अध्यक्षता करते हुए सुरेश उनियाल ने कहा कि यह आम मान्यता है कि प्रकाशित हो कर ही लेखक और लेखन लोकप्रिय होता है। जबकि रामचरित मानस को वाचिक परंपरा ने ही लोक में स्थापि
Read More'कल्चरल कोलैप्स' यानी सांस्कृतिक पतन पर केन्द्रित रज़ा फाउंडेशन की गोष्ठी पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुई। इस बारे में कवि मिथिलेश श्रीवास्तव ने क्या महसूस किया इसपर उन्होंने अपने फेसबुक पर कुछ इस अंदाज़ में लिखा।
Read Moreललित कला अकादमी की तमाम दीर्घाओं में देश के तमाम कलाकार अपने शानदार काम के साथ लगातार मौजूद हैं। यहीं पिछले दिनों जानी मानी कलाकार, क्यूरेटर और रंगों और शिल्पकारी की दुनिया में अपनी खास पहचान बना चुकी मध्य प्रदेश की सुप्रिया अंबर ने इस बार एक नया प्रयोग किया। यह प्रयोग खासकर महिला चित्रकारों/कलाकारों के लिए नई उम्मीद लेकर आया है।
Read Moreनई दिल्ली में 30 अक्टूबर की वह एक ऐसी शाम थी, जिसमें कोई औपचारिकता नहीं थी। कुछ कवि थे। कुछ कलाकार। कुछ प्रकाशक। कुछ शब्द प्रेमी। सब आपस में मिलने आए थे। बतियाने आए थे। सुख-दुख की बातें करने आए थे। अपने लिखे को सुनाने आए थे। दूसरों के लिखे को सुनने आए थे। वे अपना-अपना धैर्य साथ लेकर और ऊब छोड़कर आए थे।और फिर राजधानी के सिरी फोर्ट इलाके में एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के सभागार की व
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