केदार जी का जाना बेशक मीडिया की तमाम खबरों की तरह न रहा हो, सियासत और बयानबाजियों से भरे अखबार और चैनल बेशक साहित्य, संस्कृति और कला के लिए जगह न निकाल पाते हों और केदार नाथ सिंह का नाम बेशक आज के युवा पत्रकार और मीडियाकर्मी न जानते हों, लेकिन अब भी एक पीढ़ी है जो इस परंपरा को निभा रही है। अब भी कुछ अखबार हैं जहां साहित्य और संस्कृति को समझने वाले संवेदनशील लोग बचे हुए हैं। कुछ अखबारों न
Read Moreकेदार जी का जाना एक सदमे की तरह है। उनसे न मिल पाने की कसक हमेशा रहेगी। कई बार मिलते मिलते रह गया। उनके साथ ठीक वैसे ही खुलकर और पारिवारिक तरीके से हर मसले पर बात करने की तमन्ना रह गई जैसे त्रिलोचन जी के साथ किया करता था। अपने बेहद अज़ीज बड़े भाई राजीव जी के साथ अक्सर यह तय हुआ कि एक दिन उनके घर पर ही केदार जी के साथ कुछ घंटे बिताए जाएं, लेकिन वह संयोग नहीं बन पाया।
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