पिछले लगभग दो साल हिंदी और भारतीय रंगमंच `न होने’ का काल है। यानी नाटक नहीं हुए, रिहर्सल नहीं हए और रंगकर्मी कुछ न करने के लिए अभिशप्त हुए। अब जाकर कुछ नाटक हो रहे हैं पर रंगमंच की दुनिया अभी भी उजाड़ है। ऐसे में बरेली में `जिंदगी जरा सी है’ का मंचन एक ताजा हवा की तरह भी है और अभी के दौर को समझने की कोशिश भी।
आम तौर पर आज के दौर में संस्कृत नाटकों का मंचन अपने देश में कम होता है, लेकिन इलाहाबाद के दर्शकों को उत्तर प्रश्नम नाम के संस्कृत नाटक ने रंगमंच के नए एहसास से भर दिया। समन्वय नामक सांस्कृतिक संस्था की सचिव सुषमा शर्मा के परिकल्पना और निर्देशन में उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केन्द्र में हुए इस नाटक के लेखक हैं मीराकांत। इसका संस्कृत भाषा में रूपान्तरण किया सुरेन्द्रपाल सिंह न