"अकल बड़ी या भैंस?" यह जुमला आपने भी अक्सर सुना होगा। दुनिया के तमाम सियाने आज तक इस सवाल का जवाब नहीं तलाश पाए। आए दिन हमारे सामने कई ऐसे मसले आते हैं जो अटकल लगाने पर मजबूर कर देते हैं कि अकल बड़ी या भैंस? अब ताजा मसला ही लीजिए। भोपाल में तैनात पैरामिलिट्री फोर्स के एक जवान को छुट्टी जाना था। अवकाश की वह अर्जी लोगों में परिहास का सबब बनी हुई है। जिसमें जवान ने लिखा था "मेरी भैंस बीमार ह
"अजी सुनते हो... पूरी दुनिया के दफ्तर खुल गए... मुए एक तुम्हारे दफ्तर को ही आग लगी है... कुछ तो शर्म करो... घर से ऑफिस कब तक चलाओगे... अब तो कामवाली से लेकर अड़ोसन-पड़ोसन भी पूछने लगी हैं... बड़े सूरमा बने फिरते हो... सोसाइटी में भी डरपोक का खिताब मिलने वाला है..." श्रीमती जी के प्रवचन हरि कथा की तरह अनंत होते जा रहे थे। इस निरीह प्राणी की बुद्धि में सुबह-सुबह श्रीमती जी के प्रवचनों की कोई वजह फिट नही
एक दौर था जब "जो दिखता है, वो बिकता है" जुमला भारतीय राजनीति और मीडिया के ताल्लुकों का पैमाना हुआ करता था। बीते दो दशकों में मीडिया, खासकर खबरिया चैनल्स की कार्यशैली में आमूलचूल परिवर्तन आया है। अधिकांश मीडिया घरानों और खबरिया चैनल्स ने पेशेवर रुख अख्तियार कर लिया है। शायद उसी का नतीजा है कि उपरोक्त जुमला बदल कर यूं हो गया है -"जो बिकता है, वही दिखता है।"