शहनाई के शहंशाह से मिलना और उन्हें महसूस करना…
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June 11, 2020

शहनाई को शादी- ब्याह के मजमे से उठा कर बुलंदियों तक पहुंचाने वाले खां साहब  सुर की बारीक जानकारी को पहली शर्त मानते हैं फिर रियाज़ तो है ही। वे कहते हैं कि गला अच्छा होना या साज बजाना आना ही बहुत नहीं है। सुर और राग की गहरी जानकारी के बग़ैर संगीत में कोई आगे नहीं बढ़ सकता। आरोह-अवरोह की समझ बहुत बारीक चीज़ है। यह धीरे धीरे समझ आती है। लड़कपन में (सन 1930-32) में दालमंडी की गली के कोठों में रात

दिल का खिलौना हाय टूट गया…
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August 21, 2018

उस्ताद बिस्मिल्ला खां को गुज़रे आज 12 साल हो गए, लेकिन न तो शहनाई का कोई और उम्दा कलाकार उभर कर सामने आ सका और न ही शहनाई का वो रुआब अब बाकी रह गया। शादी-ब्याह के दौरान, तमाम शुभ अवसरों पर शहनाई का बजना एक परंपरागत और बेहद संजीदा माहौल पैदा करता था। बिस्मिल्ला खां तब भी सबके आदर्श थे और तमाम पेशेवर शहनाईवादक उनकी ही धुनें बजाने को अपनी शान समझते थे। खासकर फिल्म गूंज उठी शहनाई के उस गीत की

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