महाराष्ट्र के युवा चित्रकार गिरीश उरगुडे को आज यहाँ प्रथम वर्षिता शुक्ल वेंकटेश स्मृति पुरस्कार से नवाजा गया। प्रख्यात लेखक अशोक वाजपेयी कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल, जाने माने चित्रकार जतिन दास और गोपी गजवानी ने श्री उरगुडे को यह पुरस्कार दिया।पुरस्कार में 50 हज़ार रुपए की राशि प्रशस्ति पत्र एवम प्रतीक चिन्ह शामिल है। श्रीमती वर्षिता वेंटकेश गोविंद राजन का कोविड में कैंसर के कारण
आपको जानकर ताज्ज़ुब होगा कि आजादी के बाद प्रगतिशील लेखक संघ के पहले सम्मेलन में विभाजन के खिलाफ कोई निंदा प्रस्ताव पेश नहीं किया गया था। प्रसिद्ध आलोचक और मीडिया के जानकार जगदीश्वर ने रज़ा फाउंडेशन की ओर से आयोजित युवा कार्यक्रम में यह सनसनीखेज़ जानकारी दी। कृष्णा सोबती की जन्मशती पर आयोजित इस समारोह में उन्होंने विभाजन और सोबती जी के लेखन विषय पर एक पर्यवेक्षक के रूप में टिप्
मोदी सरकार के 10 वर्ष के कार्यकाल में हिंदी के किसी प्रसिद्ध लेखक को पद्मभूषण नहीं मिला। यूं तो पद्म पुरस्कार को लेकर अक्सर विवाद होते रहते हैं लेकिन हर बार यह उम्मीद की जाती है कि सरकार उनके साथ न्याय करेगी लेकिन जब इन पुरस्कारों की घोषणा होती है तो इस तरह की कई गड़बड़ियां दिखाई देती हैं और उस पर लोग टीका टिप्पणी भी करते हैं। मीडिया में भले ये सवाल न उठते हों पर सोशल मीडिया में अब ज
'कल्चरल कोलैप्स' यानी सांस्कृतिक पतन पर केन्द्रित रज़ा फाउंडेशन की गोष्ठी पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में हुई। इस बारे में कवि मिथिलेश श्रीवास्तव ने क्या महसूस किया इसपर उन्होंने अपने फेसबुक पर कुछ इस अंदाज़ में लिखा।
कपिला जी को कला के क्षेत्र में अद्भुत योगदान के लिए पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। राज्यसभा की वो पूर्व मनोनीत सदस्य रहीं। कपिला जी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र की संस्थापक सचिव थीं और इंडिया इंटरनेशनल सेंटर की आजीवन ट्रस्टी भी थीं। उन्होंने भारतीय नाट्यशास्त्र और भारतीय पारंपरिक कला पर गंभीर और विद्वतापूर्ण पुस्तकें भी लिखी थीं। वह देश में भारतीय कला शास्त्र की आधिक�
नटरंग प्रतिष्ठान इफ़को, रंग विदूषक, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय, इप्टा, अभिनव रंगमंडल आदि अनेक संस्थाओं के सहयोग से नेमि शती पर अनेक आयोजन दिल्ली और कई शहरों में कर रहा है। ये आयोजन अनूठे ढंग से नेमि जी के योगदान पर एकाग्र न होकर उनके कुछ बुनियादी सरोकारों जैसे विचार, कविता, उपन्यास, रंगमंच, संस्कृति की वर्तमान स्थिति पर केन्द्रित हैं। शुभारम्भ हुआ तीन दिनों के उत्सव से जो 16-18 अगस्त 2019 क�
मीडिया से लगभग गायब हो चुके साहित्य और साहित्यकारों को अगर कोई हिन्दी अखबार मंच दे और आज के दौर में पत्रकारिता की नई परिभाषा गढ़े तो बेशक इसके लिए वह बधाई का पात्र है। उत्तर भारत के सबसे विश्वसनीय अखबार ‘अमर उजाला’ ने ऐसी ही पहल की है।