संसद में इन दिनों थैला बंद सियासत का ज़ोर है… कुछ थैले कंधे पर हैं तो कुछ अलग अलग तरीकों से संसद के भीतर… बाहर तो झोला छाप कामरेड से लेकर झोला झाप लेखक और डॉक्टर की चर्चा तो अक्सर होती है लेकिन अब ये झोला संस्कृति कुछ बदली बदली सी है.. कुछ झोले पर पार्टी के निशान तो नेताओं की फोटो तो कुछ पर आंदोलन के नारे… कमाल की इस झोला या थैला संस्कृति पर जाने माने व्यंग्यकार और पत्रकार अनिल त्रिवेदी