कुंभ अब सामान्य कुंभ नहीं रहा.. महासमुद्र की तरह महाकुंभ हो गया है... वैसे तो फिल्मों में अक्सर कुंभ के मेले में बिछड़ने के किस्से सुने जाते रहे... रही भगदड़ की बात तो भला वो तो सियासत की भाषा में होती ही रहती है.. जहां भीड़ है वहां भगदड़ है और जहां भगदड़ है वहां मरना, गुम होना, डूबना, उतराना तो आम बात है... मंत्री संतरी तो यही कहते हैं भाई कि जहां इतनी भीड़ होगी, जहां इतना बड़ा आयोजन होगा, वहां त
मैं सड़क का एक अच्छा और प्यारा सा गड्ढा हूं। सड़क पर गड्ढे तो और भी हैं। सड़क है तो गड्ढे भी होंगे, लेकिन मैं सबसे थोड़ा अलग दिखता हूं। मेरा दायरा अन्य गड्ढों से विस्तृत है। गहराई भी कुछ ज्यादा है। मैं सड़क के एकदम बीचोबीच हूं, इसलिए आने-जाने वालों का सबसे ज्यादा प्यार मुझे ही मिलता है। साइकिल-बाइक वाले अक्सर मुझे दंडवत करते हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ियां भी मेरे पास आते ही नरम पड़ जाती हैं औ
पूरी दुनिया कोरोना वायरस से खौफजदा है। लोगों के घर से निकलने पर पाबंदी है। डॉक्टर की बिन मांगी सलाह पर अमल करते हुए मैंने भी पार्क में घुमक्कड़ी बंद कर छत की राह पकड़ ली है। टहलने को इससे मुफीद जगह और क्या होगी? बरसों से रूठे, मुंह चढ़ाए बैठे अड़ोसियों-पड़ोसियों से भारत-पाक का सा बैर भी खत्म हो गया है।