हम कोई कहानी अथवा किताब क्यों पढ़ते हैं? पढ़कर यदि हम समझते हैं तो उस पर अमल क्यों नहीं करते हैं? हो सकता है कि इन दिनों मेरा दिमाग खराब हो गया हो. इसलिए शायद मैं बहकी-बहकी बातें सोचने लगा हूं. हर साल की तरह इस साल भी 31 जुलाई को हम प्रेमचंद जयंती मनाएंगे. उनकी कहानियों पर चर्चा करेंगे और शांत बैठ जाएंगे. हम उन कहानियों से कुछ सीखते क्यों नहीं हैं? यदि सीखना नहीं है तो फिर पढ़ना क्यों है