हिंदी रंगमंच में आजकल बहुत कम ऐसे नाटक देखने को मिलते हैं जिनकी प्रस्तुति पूरी तरह से हर पैमाने पर खरी उतरे और उसमें एक कसाव हो। किसी नाटक का सफल होना केवल निर्देशक पर निर्भर नहीं करता बल्कि अभिनेता और नाटक के चुस्त संवादो पर भी निर्भर करता है। कहानी के रंगमंच के 50 वर्ष पूरे होने के मौके पर “ मेलो रंग” की ओर से प्रस्तुत विजय पंडित का “जोगिया राग “ एक ऐसा ही नाटक है जो अपनी प्रस्तुत
साहित्योत्सव के पांचवे दिन हिंदी के प्रख्यात लेखक एवम नाटककार मोहन राकेश को उनकी जन्मशताब्दी पर याद किया गया और सवाल उठा कि क्या उनकी रचनाओं का मूल्यांकन उनके जीवन की घटनाओं के आधार पर होना चाहिए या उनके लिखे पर ? सवाल यह भी उठा कि क्या वे अपनी रचनाओं में स्त्री विरोधी थे?