"अकल बड़ी या भैंस?" यह जुमला आपने भी अक्सर सुना होगा। दुनिया के तमाम सियाने आज तक इस सवाल का जवाब नहीं तलाश पाए। आए दिन हमारे सामने कई ऐसे मसले आते हैं जो अटकल लगाने पर मजबूर कर देते हैं कि अकल बड़ी या भैंस? अब ताजा मसला ही लीजिए। भोपाल में तैनात पैरामिलिट्री फोर्स के एक जवान को छुट्टी जाना था। अवकाश की वह अर्जी लोगों में परिहास का सबब बनी हुई है। जिसमें जवान ने लिखा था "मेरी भैंस बीमार ह
बारिश ने पूरे देश में तबाही मचा रखी है। आज देश के ख्यातिलब्ध गीतकार नीरज जी की बरसी है। मुझे "अबके सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई..." शेर याद आ रहा है। टीवी पर मिनट मिनट की खबरें ब्रेक हो रही हैं। दिल्ली के अन्ना नगर में नाले में बरसाती पानी के सैलाब से किनारे बसे कई मकान बह गए। मिंटो ब्रिज के नीचे डीटीसी की एक बस पानी में डूब गई। बस की तो औकात ही क्या एक आटो और एक कार भी मिंटो ब्रिज के नीचे भ
मैं छोटा सा रहा होउंगा। यही कोई पांच सात बरस का। गर्मी की एक दोपहर पिताश्री और मोटा ताऊ जी (पिताश्री के कॉलेज के सहयोगी श्री एम.डी.शर्मा जी) के साथ पहली बार किसी गांव के रोमांचक सफर पर निकलने का अवसर मिला था। इससे पहले तक मैं अपने सगे ताऊ जी के पास मुजफ्फरनगर में रहता था। ट्रेन से गाजियाबाद आते-जाते पटरी के साथ दौड़ते कईं गांव नजर आते थे। जिनमें झांकने की कोशिश से पहले ही वह उड़न छू हो ज
"अजी सुनते हो... पूरी दुनिया के दफ्तर खुल गए... मुए एक तुम्हारे दफ्तर को ही आग लगी है... कुछ तो शर्म करो... घर से ऑफिस कब तक चलाओगे... अब तो कामवाली से लेकर अड़ोसन-पड़ोसन भी पूछने लगी हैं... बड़े सूरमा बने फिरते हो... सोसाइटी में भी डरपोक का खिताब मिलने वाला है..." श्रीमती जी के प्रवचन हरि कथा की तरह अनंत होते जा रहे थे। इस निरीह प्राणी की बुद्धि में सुबह-सुबह श्रीमती जी के प्रवचनों की कोई वजह फिट नही
फोन "मल्लिका" परवीन का था। तखल्लुस वह नाम से पहले लगाती हैं। इससे पहले भी वाट्सएप पर उनके कई मैसेज आ चुके थे। जिनमें से सुप्रभात, गुड मार्निंग जैसे तीन-चार मैसेज का मैं जवाब भी दे चुका था। हमने फोन उठाना ही मुनासिब समझा। क्योंकि मल्लिका जी अनुग्रह-विग्रह में बहुत यकीन रखती हैं।
बहुत दिनों से प्रिंट मीडिया का चेहरा सलीके से नहीं देखा था। दिन निकलते ही खबरिया चैनल अपने पिटे पिटाये अंदाज़ में खबरें परोसने में लगे रहते हैं। बेगम की चाय की प्याली से पहले "हॉट सीट" तक की यात्रा यह आसान बना देते हैं। मौत के आंकड़ों का गणित आपको लगातार खौफज़दा करता रहता है। इस "वध काल" में चचा गालिब की सलाह मानना ही बेहतर..
आपने बोतल में जिन्न वाली कहानी सुनी है? होता यह है कि समंदर के किनारे घूम रहे एक बालक के हाथ एक बोतल लग जाती है। बोतल में एक जिन्न बंद होता है। जो स्वयं को आजाद किए जाने की गुहार लगाता रहता है। बोतल खोलते ही जिन्न बाहर आ जाता है और ऐसी खुराफातें और कारनामे करता है कि पूरा शहर, देश और दुनिया ही उसकी हरकतों से आजिज आ जाती है। आप कहेंगे कि इस कहानी का यहां क्या सरोकार?
दो हफ्ते हो गै, दस दिनां से निगाहं अटकी है रस्ते पे..., मुआ कोई तो सूरत दिखाए... टंगे खिड़की पे चिड़ियाघर में बंदर की माफिक...यूई जरिया बचा अब तो... खुदी बांच लो... जो बांच लो सो बांट लो... पोथे बांचते आंख भी ढेल्ला हो गीं
पूरी दुनिया कोरोना वायरस से खौफजदा है। लोगों के घर से निकलने पर पाबंदी है। डॉक्टर की बिन मांगी सलाह पर अमल करते हुए मैंने भी पार्क में घुमक्कड़ी बंद कर छत की राह पकड़ ली है। टहलने को इससे मुफीद जगह और क्या होगी? बरसों से रूठे, मुंह चढ़ाए बैठे अड़ोसियों-पड़ोसियों से भारत-पाक का सा बैर भी खत्म हो गया है।