जिस ज़माने में जुझारू कॉमरेड गंगा प्रसाद ने लखनऊ के लेनिन पुस्तक केन्द्र को तमाम प्रबुद्ध लोगों के लिए स्वस्थ बहस मुबाहिसे का केन्द्र बना दिया, वो दौर ही कुछ और था। दो साल पहले 4 अप्रैल को गंगा प्रसाद अपनी विरासत छोड़कर हमेशा के लिए चले तो गए लेकिन उन्हें शिद्दत से याद करने वालों की कमी नहीं।