मजाज़ की ख़ूबसूरत, पुरसोज़ शायरी के पहले भी सभी दीवाने थे। इतने सालों बाद भी यह दीवानगी क़ायम है. मजाज़ सरापा मुहब्बत थे. तिस पर उनकी शख़्सियत भी दिलनवाज़ थी. सुरीली आवाज़ और पुरकशिश तरन्नुम में नज़्म पढ़ते तो बस उनकी आवाज़ महसूस की जाती, उनका क़लाम सुना जाता. सामयीन उनकी नज़्मों में डूब जाते. बाज़ आलोचक उन्हें उर्दू का कीट्स कहते थे, तो फ़िराक़ गोरखपुरी की नज़र में, ‘‘अल्फ़ाज़ के इंत