‘भूली बिसरी गायिकाओं को तवायफ़ कहना बन्द करें’
रामेश्वरी नेहरू ने केवल पत्रकारिता और संपादन ही नहीं किया, हरिजनों और दंगा पीड़ितों की भी सेवा की
नई दिल्ली।
आज से 115 साल पहले स्त्री दर्पण पत्रिका निकालकर  स्त्री आंदोलन शुरू करने वाली संपादक रामेश्वरी नेहरू ने केवल सार्थक पत्रकारिता ही नहीं की हरिजनों और विभाजन के समय दंगा पीड़ितों की भी सेवा की। उस ज़माने में हिंदुस्तानी मौसिकी को बुलंदियों पर ले जानेवाली तवायफ़ गायिकाओं ने भी न केवल आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया बल्कि  राष्ट्रनिर्माण में भी अहम भूमिका अदा की।
रज़ा फाउंडेशन, स्त्री दर्पण और ड्रीम फाउंडेशन की ओर से आयोजित रामेश्वरी नेहरू स्मृति  समारोह में वक्ताओं ने यह बात कही।
दस दिसम्बर 1886 में लाहौर में जन्मी रामेश्वरी  नेहरू की याद में पहली बार साहित्य समाज की तरफ से कोई समारोह किया गया।
समारोह की अध्यक्षता की जानी मानी लेखिका ममता कालिया ने। वरिष्ठ कवि पत्रकार इब्बार रब्बी, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नासिरा शर्मा और बनारास घराने की प्रसिद्ध ठुमरी गायिका सविता देवी की शिष्या मीनाक्षी प्रसाद, इतिहासकार लता सिंह, पत्रकार-लेखक प्रियदर्शन और कथाकार प्रभात रंजन ने विचार व्यक्त किये।
श्रीमती मीनाक्षी प्रसाद ने कहा  कि पुरुषों ने स्त्रियों की प्रतिभा को कमतर आंकने के लिए उस ज़माने की भूली बिसरी गायिकाओं को तवायफ़ गायिकाएं कहकर पुकारना शुरू किया गया। श्रीमती प्रसाद ने 8 दिसंबर को रामेश्वरी नेहरू स्मृति समारोह में  वरिष्ठ कवि विमल कुमार के कविता संग्रह तवायफ़ नामा के विमोचन के अवसर पर कहा कि उन दिनों कोठे पर पुरुष कलाकार और महिला कलाकार साथ गाते बजाते और सीखते थे लेकिन महिला गायिकाओं को बाई या जान कहकर पुकारा गया जबकि उन्हें सम्मान जनक भाषा में पुकारा जाना चाहिए था।
उन्होंने कहा कि वे महिलाएं विदुषी थी, लिखती पढ़ती थीं, उम्दा गायिकाएं थीं और उन्होंने हिंदुस्तानी मौसिकी को बचाया। दूसरी तरफ पुरुष कलाकारों को उस्ताद या पंडित कहा गया जबकि महिला कलाकारों को बाई या जान या तवायफ़ गायिकाएं।
तवायफ़ नामा पुस्तक में भूली बिसरी 33 गायिकाओं और तवायफ़ों पर कविताएं हैं जिनमें  पहली ग्रामोफोन रिकार्ड वाली गयिका  गौहर जान मलका जान, छप्पन छुरी से लेकर रतन बाई, दलीपा बाई, छमिया बाई,  ढेला बाई और कमला झरिया जैसी गायिकाओं पर कविताएं हैं।
श्रीमती प्रसाद ने कहा कि मुझे इस संग्रह के नाम पर आपत्ति है। आखिर हम लोग कब तक एक कलाकार स्त्री को तवायफ़ गायिका कहकर पुकारेंगे यह भाषा बदलनी चाहिए। हमारी भाषा पितृसत्त्ता से संचालित है। उन्होंने कहा कि महिलाओं में भी पितृसत्त्तात्मक मानसिकता काम करती है। उसे भी बदले जाने की जरूरत है।
साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखिका नासिरा शर्मा ने कहा है कि 1857 के विद्रोह के बाद औरतों की विशेषकर मुस्लिम महिलाओं के लिए आजीविका का संकट पैदा हो गया और महिलाएं कोठे पर नाच गाकर अपना हुनर बेचने लगीं और तवायफ़ कहलाई जाने लगीं जबकि वे उस अर्थ में तवायफ़ नहीं थी जिस अर्थ में लोग समझते हैं। तवायफ़ का अर्थ वह है ही नहीं। उन्होंने कहा कि हमें औरतों के इतिहास की बात करते हुए या स्त्री विमर्श की बात करते हुए मुस्लिम महिलाओं को छोड़ नहीं देना चाहिए। बिना उनके हिंदुस्तान में स्त्री विमर्श अधूरा है। उन्होंने बताया कि उस ज़माने मे मुस्लिम महिलाएं क्या क्या लिख रहीं थीं।
जवाहर लाल नेहरू विश्विद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर लता सिंह ने कहा कि इन तवायफ़ महिलाओं औऱ कलाकारों ने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई लेकिन उन्हें इतिहास में जगह नहीं मिली लेकिन अब उनके बारे में काफ़ी कुछ लिखा गया और लिखा जा रहा है।उन्होंने कहा कि नटी विनोदिनी से लेकर पारसी थिएटर की महिला कलाकारों ने अपनी कला से मुक्ति और आज़ादी की बात की।
कथाकार प्रभात रंजन ने कहा कि उनके शहर में ढेला बाई ही नहीं बल्कि पन्ना बाई जैसी गायिकाएं भी थीं जो आज़ादी के बाद यूनेस्को द्वारा सूचीबद्ध  गायिकाओं में शीर्ष पर थीं। उन्होंने कहा कि इतिहास में उत्खनन का काम कर उन्हें दर्ज किया जाना चाहिए।
समारोह की अध्यक्ष ममता कालिया ने अपने शहर की मशहूर गायिका जानकी बाई छप्पन छुरी का जिक्र करते हुए कहा कि तब पुरुष स्त्री की प्रतिभा से जलते थे। यही कारण है कि जानकी बाई पर चाकू से 56 वार किए गए। उन्होंने बताया कि हुस्ना जान ने किस तरह गांधी जी को बनारस में आज़ादी की अलख जगाने का काम किया।
स्त्री दर्पण की अध्येयता प्रज्ञा पाठक ने विस्तार से रामेश्वरी नेहरू के अवदान के बारे में बताया और कहा कि उस दौर में स्त्री दर्पण और अन्य महिला पत्रिकाओं ने स्त्री आंदोलन खड़ा कर दिया। उन्होंने बताया कि रामेश्वरी जी ने केवल पत्रकारिता ही नहीं की बल्कि गांधी जी की प्रेरणा से  हरिजन सेवक संघ में शामिल होकर हरिजनों की  सेवा की और विभाजन के समय राहत शिविरों में दंगा पीड़ितों की भी मदद की साथ ही अंतरराष्ट्रीय शांति दूत का भी काम किया।
इब्बार रब्बी ने पुरुष कवियोँ की स्त्री विषयक कविताओं की पुस्तक कविता में स्त्री का लोकार्पण करते हुए कहा कि हिंदी कविता में पुरुषोँ ने  स्त्रियों पर बहुत कविताएं लिखीं लेकिन समाज मे महिला बलात्कार की शिकार हो रही हैं।
वरिष्ठ कवि लेखक पत्रकार प्रियदर्शन ने कहा कि इस समय हिन्दी में स्त्री लेखन का बहुत बड़ा विस्फोट हुआ है। इतनी तादाद में वे अच्छा लिख रही हैं । उन्होंने पुरुष के एकाधिकारवाद को तोड़ा है और यह साबित किया है कि वह कहीं ज्यादा जागरूक, संवेदनशील और प्रगतिशील हैं।
इस मौके पर तवायफनामा के अलावा रीता दास राम के संपादन में दो खंडों में छपी पुस्तक हमारी अम्मा और अलका तिवारी द्वारा संपादित गीतांजलि श्री आलोचना के दायरे में का लोकार्पण भी किया गया।
विभा बिष्ट ने तवायफ़ नामा कविता का पाठ किया और अंग्रेजी अनुवाद भी पढ़ा। शारदा सिन्हा, शान्ति सुमन और नूतन यादव की स्मृति में एक मिनट का मौन रखा गया और मीना झा ने शारदा सिन्हा पर विभा रानी की मैथिल कविता का पाठ भी किया। संचालन कल्पना मनोरम और सुधा तिवारी ने किया।
समारोह में विनोद भारद्वाज, मनोज मोहन, अमृता वेरा, विवेक मिश्र,  रजनीकांत मिश्र, रश्मि रावत, चंद्रा सदायत, जयश्री पुरवार, शालिनी कपूर, बलकीर्ति. मुख्तार फरहत, रिज़वी अहमद, सीमांत सोहेल, राजेन्द्र राजन, विजय नारायण, पुस्तकनामा के माहेश्वरदत्त शर्मा आदि मौजूद थे।
Posted Date:

December 9, 2024

2:01 pm Tags: , , , , , , , ,

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