बीएचयू और लखनऊ में प्रेमचंद की कहानियां

‘रंगलीला’ के संस्थापक रंगकर्मी और पत्रकार अनिल शुक्ल की कलम से…

 

आंदोलन की लम्बी गहमागहमी और बंदी के सन्नाटे से उबरने के बाद बीएचयू ताज़ा-ताज़ा खुला ही था जब हम वहां पहुंचे। 8 अक्टूबर, प्रेमचंद की पुण्यतिथि का दिन। वहां अपने कार्यक्रम ‘कथावाचन’ में हमें प्रेमचंद की 3 कहानियों की प्रस्तुति देनी थी। रविवार होने के चलते रंगलीला की पूरी ‘कथावाचन’ रंगमंडली को शुबहा था कि दर्शक और श्रोता आएंगे भी या यहाँ साढ़े पांच सौ किमी० से भी ज़्यादा दूरी तक आने की हमारी मेहनतयूं ही व्यर्थ जाएगी। सुबह सवेरे हमारे स्वागतार्थ आयी ऋचा से मनीषा ने पूछा- ऑडिएंस कितनी हो जाएगी? ऋचा हिंदी विभाग की शोध छात्रा है। जवाब में उसने कहा-काफी लोग आयेंगे। कुछ देर बाद यही सवाल मैंने प्रो० श्रीप्रकाश शुक्ल से पूछा। वह हिंदी के वरिष्ठ कवि, आचार्य, विश्वविद्यालय ‘भोजपुरी अध्ययन केंद्र’ के प्रमुख और हमारे कार्यक्रम के आयोजक हैं। उन्होने भी हल्का सा जवाब दिया-संख्या के बारे में तो नहीं कह सकता लेकिन लोगों को आना चाहिए, लोग आएंगे। हमारी धुकधुकी बढ़ रही थी।


‘भोजपुरी अध्ययन केंद्र’ के भूतल स्थित बड़े से लेक्चर थिएटर हॉल में कार्यक्रम आयोजित किया गया था। धीरे-धीरे प्राध्यापकों और छात्रों का जमावड़ा शुरू हुआ। जिस समय कार्यक्रम शुरू हुआ, सचमुच हॉल पूरा भर चुका था। सभी ने बेहद तन्मयता के साथ लगभग डेड़ घंटे उन कहानियों को सुना और देखा। उनमें से ज़्यादातर ने उन तीनों कहानियों को पढ़ रखा था लेकिन ‘कथावाचन’ के मर्म को महसूस करना सचमुच उनके लिए अनोखा अनुभव था। कार्यक्रम की समाप्ति पर होने वाली ‘चाय चर्चा’ के दौरान छात्र-छात्राओं ने हमारी रंगमंडली की अभिनेत्रियों और अभिनेता को घेरा। उनकी ख़ूब-ख़ूब प्रशंसा की और उनसे ढेरों सवाल भी किये। अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में डीन प्रो० कुमार पंकज ने बहुत साफ लफ़्ज़ों में कहा कि प्रेमचंद की लोकप्रियता का जैसा आलम है, कोई चाहकर भी उन्हें खारिज नहीं कर सकता। उन्होंने ‘रंगलीला’ के कथावाचकों की प्रस्तुति की भूरि-भूरि प्रशंसा की। स्थानीय मीडिया की जिज्ञासाओं को शांत करने के लिए निर्देशक के रूप में मैं मौजूद था ही।
पुण्यतिथि की पूर्व संध्या पर यानि 7 अक्टूबर को लखनऊ का आयोजन उप्र० ‘इप्टा’ ने किया। ‘इप्टा’ के राष्ट्रीय महासचिव राकेश जी ने शानदार तैयारी की थी। ‘कथावाचन’ से पहले एक संगोष्ठी ‘प्रेमचंद की ज़रुरत’ विषय पर आयोजित की गयी थी।

गोमती नदी के ठीक किनारे क़ैसरबाग़ की बारादरी पीछे स्थित ‘इप्टा’ कार्यालय के पिछवाड़े बनाये गए मुक्ताकाशी मंच के इर्द-गिर्द दर्शकों के रूप बड़ी तादाद में लखनऊ के संस्कृतिकर्मी, लेखक, प्रबुद्धजन और मच्छर मौजूद थे। लखनऊ ‘इप्टा’ के सचिव भाई ज्ञान जी ने ‘रंगलीला’ के कलाकारों में मच्छरों के प्रति सहिष्णुता बनाये रखने के लिए पहले ही ओडोमॉस की ट्यूब मंगवा ली थी। मैं दर्शकों के मलेरिया के संभावित ख़तरों को लेकर हलाकान था। बाद में सुधा भाभी से मालूम चला कि लखनवी नज़ाकत ने सभी को समझदार बना रखा है। “घर से ही ‘पोत-पात’ कर निकले हैं।“
कार्यक्रम बेहद सराहा गया। अगली सुबह लखनऊ के मीडिया ने खासी कवरेज से हमें नवाज़ा।

Posted Date:

October 14, 2017

6:39 pm Tags: , , , , , , ,
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