अमर भारती की काव्याष्टमी में बही आध्यात्म की त्रिवेणी
पानी में प्यासी इक मछली, पानी में पानी ढ़ूंढ़ रही: अंजू जैन
  गाजियाबाद। जब कोई स्कूल अपने परिसर में साहित्य औऱ संस्कृति को आगे बढ़ाने के लिए नियमित आयोजन करने लगे तो ये संकेत साफ जाता है कि कम से कम उस स्कूल में तैयार हो रही नई पीढ़ी के लिए साहित्य और संस्कृति की परंपरा और मूल्यों को ज़रूर अहमियत दी जाती होगी। शहर का सिल्वर लाइन प्रेस्टिज स्कूल ऐसी ही एक मिसाल कायम कर रहा है। अपने नियमित साहित्यिक आयोजनों की कड़ी में इस स्कूल ने अपनी नेहरू नगर शाखा में कृष्ण जनमाष्टमी के मौके पर काव्याष्टमी जैसे आयोजन कर शहर के तमाम जाने माने साहित्यकारों और कवियों को मंच दिया। “अमर भारती साहित्य एवं संस्कृति संस्थान” के आयोजन “काव्याष्टमी” में कवियों ने राग, अनुराग, स्नेह, प्रेम, समर्पण और अध्यात्म के विविध रंग बिखेरे। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि एम. के. सेठ ने कहा कि धर्म, आस्था और विश्वास की हानि ने समाज में विकृति पैदा कर दी है। समाज में आई विकृति के लिए उन्होंने उन लोगों को जिम्मेदार ठहराया जो सिर्फ समस्याओं की ही बात करते हैं। लेकिन अगर कृष्ण के आकर्षण को देखेंगे तो जीवन भी संवरेगा और दुनिया भी।
“काव्याष्टमी” का शुभारंभ आर.के. भदौरिया की कान्हा वंदना “जो है सोलह कला का अवतारी रे, नाच उसको नचावे राधा प्यारी रे, प्रेम के ढाई अक्षर के आगे कर्मयोगी की प्रज्ञा भी हारी रे” से हुआ। जीवन और मृत्यु के प्रति श्री कृष्ण के चिंतन का जिक्र करते हुए श्री सेठ ने कहा कि हर भोर जिंदगी में खुशियों का एक नया राग लेकर आती है। लेकिन हम जीवन के आकर्षण का त्याग कर कष्टों के निदान में उलझ जाते हैं। जबकि उस क्षण हमें प्रभु का धन्यवाद करना चाहिए क्योंकि आज की भोर देखने के लिए प्रभु ने हमें कुछ और सांसे प्रदान की हैं जबकि हमारे बीच से लाखों लोग तब तक मौत का वर्णन कर चुके होते हैं जब तक हम एक नई भोर की ओर अग्रसर होते हैं। उन्होंने कहा कि समाज में आई विकृति के लिए हम ही जिम्मेदार हैं। समाज में बढ़ रही दुष्टता, क्रूरता, दरिंदगी देख कर हम लोग आंख बंद कर लेते हैं। हमें जागते हुए जीना है। कृष्ण की इस धरती पर हर कंस का वध करना है। “काव्याष्टमी” का शुभारंभ कमलेश संजीदा की इन पंक्तियों से हुआ “कितने चूल्हे घर-घर रखे हर कोई परेशान है, आग लगी है अब तो ऐसी हर कोई हैरान है।” प्रतीक्षा सक्सेना ने पिता को समर्पित कविता में कहा “सुन जिंदगी! एक इल्तजा है छोटी सी, कभी तो गले लगा कर प्यार कर, कभी तो पिता के सख्त सबक देने वाले मिजाज से निकल, मां सा… निश्चल वात्सल्य भर।”। मित्र गाजियाबादी की बहन को समर्पित पंक्तियां “आ गए सब मगर तू ना आई, आज सूनी है मेरी कलाई बहन” भी खूब सराही गई। अंजू जैन ने “जीवन को पाकर जीवन भर जीवन के मानी ढूंढ रहे, इस तट से लेकर उस तट तक खुद अपना सानी ढूंढ रहे, शाश्वत का ज्ञान नहीं आता परछाई के पीछे दौड़ रहे, पानी में प्यासी एक मछली पानी में पानी ढूंढ रही” पंक्तियों पर भरपूर वाहवाही बटोरी। कीर्ति रतन ने कहा “कृष्ण मुरारी की छवि प्यारी, बलिहारी मैं बलिहारी, बाल रूप में प्रकट भयो तिन, निरखत हर्षत सब नर नारी, रतन-सुताने मनमोहन पर, निज भावों की सरिता वारी।”
  रवि अरोड़ा ने अपनी कविता “अतीत” में अभिभावकों व बच्चों के मौजूदा हालात को रेखांकित करते हुए कहा “बच्चे अक्सर नाराज हो जाते हैं, मां-बाप से, आखिर ऐसे क्यों हैं माता-पिता, क्यों हैं कुछ अधिक ही दोस्ताना…”। सुभाष चंदर ने अपनी कविता “मैं बूढ़ा नहीं होना चाहता” मैं कवि की कविता लिखने की जिजीविषा को बखूबी बयान किया। कार्यक्रम की संचालिका तरुणा मिश्रा ने कान्हा को संबोधित करते हुए कहा “तुम संग मैंने कान्हा जब से नैना जोड़ लिए हैं, सारे जग से अपने रिश्ते तब से तोड़ दिए हैं” वी.के. शेखर ने अपने दोहों से जमकर वाहवाही बटोरी। उन्होंने कहा “सच के साथ जीवन में रहा झूठ का द्वंद, सत द्वंद से ऊपर है मिल चित दे आनंद”। सुरेंद्र सिंघल ने अपने शेरों पर खूब दाद बटोरी। पाकिस्तान के एक शायर के शेर “पीले वस्त्र पहनकर मुख पर पोते नीला रंग, सब ही कृष्ण बने हैं राधा नाचे किसके संग” से मौजूदा हालात पर प्रहार किया। कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि स्मिता सिंह ने कहा कि जीवन की आपाधापी में उनके भीतर की कविता कहीं पीछे छूट गई है। लेकिन अमर भारती के आयोजन में उनके भीतर भी कविता गुनगुनाने लगी है। उन्होंने फरमाया “हर इंसान अपने आप में समंदर है, हर आदमी अपनी जगह सिकंदर है।” कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि प्रदीप गुप्ता ने कहा कि कविता जीवन का संतुलन है। उन्होंने हास्य रस की अपनी कविता “घर मेरा है” पर जम कर वाह वाही लूटी। अमर भारती की संरक्षक डॉ. माला कपूर ने कहा कि विश्व भर में आज सबसे अधिक चिंता शांति बहाली की है और हम अपने ही घर में अशांति का रिमोट हाथ में लिए बैठे हैं। उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से संयम बरतने का आग्रह किया। शिवराज सिंह ने सभी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. संजय शर्मा. डॉ. धनंजय सिंह, जकी तारिक, मासूम गाजियाबादी, कैलाश समीर, बी.एल. बतरा, वंदना कुंवर, तूलिका सेठ, आर. के. भदौरिया, तारा गुप्ता, आलोक यात्री, प्रवीण कुमार, सोनम यादव, सुरेंद्र शर्मा, इंद्रजीत सुकुमार, चारू देव, आशीष मित्तल आदि की रचनाएं भी सराही गईं। इस अवसर पर चेतन आनंद, डॉ. वीना मित्तल, डॉ. अतुल जैन, एम.के. चतुर्वेदी “मकरंद”, इंदिरा देवी, डॉ. सुषमा रानी, रक्षा सिंघल, कुलदीप, सुशील शर्मा, अर्चना शर्मा, देवेश्वरी वशिष्ठ, राजीव डाबर, किरण और सविता शर्मा सहित बड़ी संख्या में गणमान्य लोग मौजूद थे।
Posted Date:

September 3, 2018

2:32 pm
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