रचनाकार का काम रिझाना नहीं जागृत करना है : कमलेश भट्ट ‘कमल’ 
कथा रंग की 71वीं गोष्ठी में मैत्रेय, चंदर, सिंघल, कमल, स्वाति, तारा, नवोदित और संजय ने दी विमर्श को धार। योगेन्द्र दत्त शर्मा ने कहा – से. रा. यात्री की पंरपरा का संवाहक है ‘कथा रंग’, वहीं डॉ भावना शुक्ला का मानना है कि सृजन व आलोचना के सामंजस्य का पर्याय है कथा रंग 
 
 गाजियाबाद में ‘कथा रंग’ की ओर से आयोजित कथा संवाद में सुनी गई कहानियों पर विमर्श के दौरान सुप्रसिद्ध रचनाकार व कार्यक्रम अध्यक्ष योगेंद्र दत्त शर्मा ने कहा कि मशीनीकरण के इस दौर में संवेदना का क्षरण हो रहा है। इस क्षरण की वजह से समाज में संवेदनशीलता का लोप होता जा रहा है। साहित्य मनुष्य में संवेदना उत्पन्न करता है। उन्होंने कहा कि यह सुखद स्थिति है कि एनसीआर में कहानी लिखने का एक ऐसा स्कूल भी है, जहां लुप्त हो रही संवेदना को जागृत होते देखा जा सकता है। कथा रंग के संरक्षक कमलेश भट्ट ‘कमल’ ने कहा कि साहित्य की ओर उन्मुख हर व्यक्ति को प्रेमचंद का लेख ‘जीवन में साहित्य का स्थान’ का पाठ अवश्य करना चाहिए। उन्होंने कहा कि साहित्य हमें असुर से देवत्व की ओर ले जाता है।
होटल रेडबरी में आयोजित 71वीं संवाद संगोष्ठी में श्री शर्मा ने कहा कि सुनी गई कहानियां साहित्य के विभिन्न सरोकारों को हमारे सामने ला रही हैं। सृजन के श्रेत्र में यह विलक्षण कार्य है। क्योंकि बीते दौर की गुरु-शिष्य परंपरा अब दिखाई नहीं देती। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि कहानीकार से. रा. यात्री उन जैसे समकालीन नवांकुरों के मार्गदर्शक हुआ करते थे। जिनकी छत्रछाया में साहित्य की नई पौध पुष्पित, पल्लवित होती थी। उन्होंने संतोष जताते हुए कहा कि ‘कथा रंग’ यात्री परंपरा और विरासत को आगे बढ़ाने का काम कर रहा है। कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. भावना शुक्ल ने कहा कि कथा रंग में सृजन व आलोचना दोनों का समावेश लेखन को परिष्कृत करने का अनोखा काम हो रहा है। जो नए लेखकों को अवसर प्रदान करने के साथ नई जमीन भी उपलब्ध करवा रहा है। श्री भट्ट ने कहा कि कहानी हमेशा बड़े उद्देश्य के लिए लिखी जानी चाहिए। क्योंकि लेखक का मकसद समाज को रिझाना नहीं बल्कि जागृत करना होता है। सुप्रसिद्ध लेखक अशोक मैत्रेय ने कहा कि ‘कथा रंग’ के आयोजन वैचारिक संजीवनी का काम करते हैं। जो उम्र की बाध्यता को तोड़ कर ऊर्जा प्रदान करती है। कार्यक्रम संयोजक सुभाष चंदर ने कहा कि कई स्थापित रचनाओं की जमीन पर लिखी गई रचनाएं आधुनिक संदर्भ में अपने नए सरोकार तलाश रही हैं।
आलोचक एवं संपादक डॉ. स्वाति चौधरी ने कहा कि रचनाकारों को आत्ममुग्धता से मुक्त होना चाहिए। आयोजक आलोक यात्री ने कहा कि रचना प्रक्रिया पाठक के साथ तारतम्यता की यात्रा है। जो जितनी सहज होगी पाठक को उतना ही आनंद देगी। क्योंकि किसी भी रचना की अंतिम कसौटी पाठक ही होता है।‌ संवाद में शकील अहमद की ‘लबादा’, देवेंद्र देव की ‘ठूंठ’, सुमित्रा शर्मा की ‘उड़ती फाइलें’, शिवराज सिंह की ‘ठूंठ’ और प्रतिभा प्रीत की ‘अजगर’ कहानी पर विमर्श हुआ। कार्यक्रम का संचालन डॉ. बीना शर्मा ने किया‌।
  इस आयोजन की विशेष उपलब्धि यह रही कि रिंकल शर्मा द्वारा सृजित कथा रंग फेसबुक पेज पर कार्यक्रम को लाइव रूप में प्रसारित किया गया। जिससे देश विदेश के सैकड़ों साहित्य प्रेमियों को विमर्श में सीधे शामिल होने का अवसर मिला। इस कार्य में विनय विक्रम सिंह का योगदान भी सराहनीय रहा। संस्था के अध्यक्ष शिवराज सिंह ने आगंतुकों का आभार व्यक्त किया।‌ इस अवसर पर पंडित सत्य नारायण शर्मा, सुरेन्द्र सिंघल, डॉ. तारा गुप्ता, नवोदित, विकास मिश्र, विपिन जैन, सिनीवाली शर्मा, अवनीश शर्मा, संजय श्रीवास्तव, अवधेन सिंह, कुलदीप, सुशील शर्मा, राधारमण, अनिल शर्मा, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, निरंजन शर्मा, के. के. जायसवाल, अनिमेष शर्मा, असलम राशिद, बी. एल. बत्रा, बबीता नागर, डॉ. रामगोपाल शर्मा, चंद्रकांत पाराशर, तेजवीर सिंह, तुलिका सेठ, राष्ट्र वर्धन अरोड़ा, डॉ. उपासना दीक्षित, रवि कांत दीक्षित, अर्चना शर्मा, वीरेन्द्र सिंह राठौर, पराग कौशिक, डॉ. प्रीति कौशिक, दीपक कुमार श्रीवास्तव ‘नीलपद्म’, उत्कर्ष गर्ग, शारदा कंवर, शशि, दीपा गर्ग एवं सिमरन सहित बड़ी संख्या में साहित्य अनुरागी उपस्थित थे।
Posted Date:

September 30, 2024

11:21 am Tags: , , , , ,

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