कितना भी लिखो, कुछ न कुछ बाक़ी रह जाता है…

        

कभी चांद की तरह टपकी

कभी राह में पड़ी पाई

कभी छींख की तरह खनकी

कभी जेब से निकल आई

अट्ठनीसी जिंदगी

ये जिन्दगी

वैसे तो सब इन्हें इनके मशहूर नाम ‘गुलज़ार साहब’ के नाम से जानते हैं पर इनका असली नाम है ‘संपूरन सिंह कालरा’। हिंदी फिल्म जगत के महान गीतकार गुलज़ार साहब किसी परिचय के मोहताज नहीं हैं। इन्होंने हिंदी फिल्मों में सैकड़ों गीत लिखे हैं। इसके अलावा वे एक कवि, पटकथा लेखक, फिल्म निर्देशक और मशहूर शायर हैं। इनकी रचनाएं खासतौर पर हिंदी, उर्दू और पंजाबी में हैं, लेकिन बृज भाषा, खड़ी बोली, मारवाड़ी और हरियाणवी में भी इन्होंने रचनाएं लिखी हैं।

गुलज़ार साहब उस ज़माने के पंजाब में झेलम जिले के दीना गांव में 18 अगस्त 1936 को जन्में। यह हिस्सा अब पाकिस्तान में है। बाद में मुंबई आ गए और बचपन में वर्ली के एक गैराज में बतौर मैकेनिक काम करने लगे। मन कविताओं में बसता था तो खाली वक्त में कुछ पंक्तियां कागज़ पर उतार देते थे। फिल्म जगत में उन्होंने बिमल राय के सहायक के रूप में काम शुरू किया। बिमल राय की फिल्म ‘बंदिनी’ के लिए गुलज़ार ने बतौर निर्देशक अपना सफर 1971 में फिल्म ‘मेरे अपने’ से शुरू किया। इसके बाद गुलज़ार ने संजीव कुमार के साथ आंधी,  मौसम, अंगूर और नमकीन जैसी फिल्में निर्देशित की। यहीं से गुलज़ार साहब के जीवन के सुनहरे सफ़र की शुरुआत हुई।

गुलज़ार साहब की तमाम कविताएं और शायरी आप उनकी किताबों में पढ़ सकते हैं। वैसे तो अब गुलज़ार साहब ने बहुत लिखा है, हर रोज़ कुछ नया रचते हैं, यहां तक कि उनकी बातचीत के अंदाज़ में ही वह रवानगी है मानो वो कोई खास शेर कह रहे हों, कोई गहरी बात कह रहे हों। शुरुआती दौर की उनकी कुछ किताबें और संग्रह हैं — एक बूंद चांद, जानम, रात चांद और मैं , रात पश्मीने की और खराशें, चौरस रात आदि।

गुलज़ार ने अभिनेत्री राखी से शादी की ओर उनकी एक बेटी हैं मेघना गुलज़ार जो खुद एक फिल्म निर्देशक हैं। गुलज़ार साहब ने 1971 में बनी फिल्म ‘गुड्डी’ के लिए एक प्रार्थना गीत लिखा था जिसे आज भी स्कूलों और कॉलेजों में बतौर प्रार्थना के रूप में गाया जाता है। उसके बोल है –

‘हमको मन की शक्ति देना मन विजय करे

दसरो की जय से पहले खुद को जय करें’।

गुलज़ार साहब के लेखन में वो रवानगी है, वो गहराई है कि किसी भी उम्र और किसी भी वर्ग का साहित्यप्रेमी खुद को उनके बहुत करीब पाता है। कुछ पंक्तियां देखिए..

मैं हर रात सारी ख्वाहिशों को

खुद से पहले सुला देता हूं..

हैरत यह है कि हर सुबह

ये मुझसे पहले जाग जाती है।

गुलज़ा साहब वैसे तो तमाम सम्मानों से काफी ऊंचे हैं, लेकिन उनके नाम के आगे सम्मानों और पुरस्कारों की एक लंबी फेहरिस्त है। सर्वश्रेष्ठ गीतकार के तौर पर इन्हें अब तक दस से ज्यादा बार फिल्मफेयर अवार्ड से सम्मानित किया गया। 2002 में गुलज़ार साहब को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला। 2004 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया। इन्हें 2009 में फिल्म ‘स्लमडॉग मिलिनेयर’ के गीत जय हो के लिए ऑस्कर मिला। गुलज़ार साहब को 2010 में ग्रैमी पुरस्कार और 2013 में दादा साहब फाल्के सम्मान से भी सम्मानित किया गया। हिंदी फिल्म जगत साथ साथ पूरे देश की जनता इनके कामों को और रचनाओं को यूं ही हमेशा आगे बढ़ते हुए देखना चाहती है। उनका ये सफ़र बदस्तूर जारी है। हमारी बहुत सारी शुभकामनाएं गुलज़ार साहब को उनके जन्मदिन पर।

  • प्रेरणा मिश्रा
Posted Date:

August 18, 2020

1:58 pm
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