कबीर के वैश्विक ईश्वर न हिन्दू, न मुसलमान – प्रो. हरबंस मुखिया

फोसवाल महोत्सव में सामने आए साहित्य, संस्कृति की मौजूदा चिंतन के कई रंग

नई दिल्ली: एक तरफ देश में चुनावी नतीजों के बाद सियासी सरगर्मियां तेज़ हैं, दूसरी तरफ इससे अलग साहित्य और संस्कृति की दुनिया में कुछ नई और रचनात्मक कोशिशें जारी हैं। सार्क देशों के सम्मेलनों की खबरें हम खूब पढ़ते हैं जहां दक्षिण एशियाई देशों के नेतागण तरह तरह के समझौतों पर दस्तखत करते या सहमति बनाते नज़र आते हैं, ऐसे ही आठ दक्षिण एशियाई देशों की कला और साहित्य को एक मंच पर लाने का काम इन दिनों दिल्ली में हो रहा है। ‘फाउंडेशन ऑफ सार्क राइटर्स एंड लिटरेचर’ की ओर से आयोजित चार दिन के फोसवाल महोत्सव के दौरान पहले दिन कबीर का लेखन और सूफीवाद छाया रहा।

भक्ति, सूफी और बौद्ध धर्म पर प्रो हरबंस मुखिया, के.टी.एस. सराव और शैल मायरा ने अपने विचार रखे।  प्रो मुखिया ने कहा,  “भक्तिकाल के कवि कबीर ने एक वैश्विक ईश्वर से हमारा परिचय करवाया। वह ईश्वर न हिन्दू था न मुसलमान। उन्होंने प्रथाओं और लोगों के संकुचित विचारों में जकड़े ईश्वर को मुक्त किया।”

एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर के सभागार में आयोजित इस महोत्सव की  शुरुआत लेखा भगत ने स्वागत गीत से किया। ‘फाउंडेशन ऑफ सार्क राइटर्स एंड लिटरेचर’  की चेयरपर्सन पद्मश्री अजीत कौर ने अपने स्वागत भाषण में कहा, “सार्क देशों की सीमाओं के मध्य हम सिर्फ नदियां, समुद्र और मानसून ही नहीं बांटते बल्कि अपनी सभ्यताओं की यात्राएं भी एक दूसरे के साथ साझा करते हैं।”  इस समय हो रहे दो युद्धों के संदर्भ में उन्होंने कहा, “युद्ध से हर संवेदनशील व्यक्ति आहत है। आम आदमी शांति से रहना चाहता है। युद्ध केवल विनाश और दुख के निशान छोड़ते हैं।”

  
सूफीवाद पर बोलते हुए शैल मायरा ने सरमद शहीद का किस्सा सुनाया और कहा, “दिल्ली इस लिए पवित्र नहीं है कि यहां हर धर्म को मानने वाले रहते हैं बल्कि इसलिए कि क्योंकि यह दारा, सरमद, गुरुतेग बहादुर और महात्मा गांधी जैसे शहीदों के लहू से नहाई है।”
कार्यक्रम के दूसरे सत्र में वर्तमान में चल रहे दो युद्धों इजरायल-हमास, और यूक्रेन- रूस  पर चर्चा हुई। इसमें नेपाल के प्रसिद्ध लेखक, कवि अभी सुवेदी, भारत के एम.एल. लाहोटी, एच. एस. फूलका और जम्मू कश्मीर के पूर्व गवर्नर एन. एन. वोहरा ने हिस्सा लिया। वोहरा ने कहा, “युद्ध में मानवीय और आर्थिक क्षति से कहीं ज्यादा सभ्यता की हानि होती है, जो देश को कई साल पीछे ले जाता है।”

एम.एल. लाहोटी ने युद्धों के संदर्भ में संयुक्त राष्ट्र  की सार्थकता पर प्रश्न उठाया। उन्होंने कहा, “युद्धों से शांति भंग होती है और जब शांति  भंग होती है तो कला और संस्कृति भी नष्ट होने लगती हैं।

एच. एस. फूलका ने कहा, “युद्ध कहीं भी हो उससे दुनिया का हर कोना प्रभावित होता है क्योंकि दुनिया अब ग्लोबल विलेज बन चुकी है। इस बारे में अभी सुबेदी के विचार में, “युद्ध में हुआ विनाश इतना भयानक है कि पीढ़ियों के पास कुछ याद करने को नहीं बचता। असल में कोई याद करने वाला ही नहीं बचता।


भारत में नेपाल के राजदूत शंकर प्रसाद शर्मा ने साहित्य के लिए कई दशकों से कार्य कर रही संस्था एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर की प्रशंसा की। कार्यक्रम के अगले सत्र में कविता पाठ का आयोजन हुआ। बांग्लादेश के कवि डॉ बिमल गुहा और डॉ अशरफ जेवेल और भारत से डॉ मंदिरा घोष, प्रोफेसर कल्याणी राजन, प्रोफेसर नंदिनी साहू, पांखुरी शुक्ला और डॉक्टर अमरेंद्र खटुआ ने जीवन के विविध अनुभवों पर आधारित कविताएं पढ़ीं। नंदिनी साहू ने  कोरोना काल की कविताओं का पाठ किया।
कार्यक्रम में उपन्यास अंश का पाठ भी हुआ। जिनमें श्रीलंका से आए प्रोफेसर सामंथा इलैंग्कून और डॉक्टर निपुनिका दिलानी और बांग्लादेश के प्रोफेसर मंजरुल इस्लाम,  नेपाल के संतोष कुमार पोखरेल ने हिस्सा लिया। आखिरी सत्र में पुनः कविता पाठ किया गया। इस सत्र में कविता पाठ करने वाले प्रतिभागियों में नेपाल की संस्कृति दुवाड़ी, बांग्लादेश की सौम्या सलेक, श्रीलंका के के. श्रीगणेशन, भूटान के डॉक्टर रिनज़ीन रिनज़ीन और भारत की गायत्री मजूमदार, किंशुक गुप्ता व सीमा जैन शामिल हुईं।

 

दक्षिण एशिया क्षेत्रीय सहयोग संगठन यानी सार्क के गठन के एक साल बाद 1987 में सार्क साहित्य महोत्सव शुरू हुआ था। लेखिका अजीत कौर ने सबसे पहले फाउंडेशन ऑफ सार्क राइटर्स एंड लिटरेचर की ओर से महोत्सव का आयोजन किया था। तब से वे लगातार सार्क देशों के लेखकों को एक मंच पर लाने में कामयाब रही हैं। 1975 में स्थापित एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर दिल्ली में साहित्य, कला और सांस्कृतिक गतिविधियों का एक प्रमुख केंद्र है। यहां वर्षों से साप्ताहिक वार्ता और अन्य बौद्धिक और शैक्षणिक हितों को संबोधित करने वाले व्याख्यानों की शृंखला चलती रही है। अजीत कौर के प्रयासों से पिछले 45 वर्षों से सभी भाषाओं के कवियों की मासिक बैठक भी निरंतर आयोजित हो रही है।

Posted Date:

December 3, 2023

11:08 pm Tags: , ,

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