चला गया शब्दों का चित्रकार…
(एक बेहद जीवंत और उम्मीदों से भरे कवि-गीतकार कुंअर बेचैन का जाना आहत करने वाली ख़बर है… गाज़ियाबाद में अमर उजाला का संपादक रहते हुए मैं डॉ  बेचैन के करीब आया… उनसे मुलाकातें हुईं.. उनकी जीवंतता का गवाह बना… शहर के तमाम अति वरिष्ठ और आदरणीय शख्सियतों को हमने अपने अखबार के जरिये सम्मानित करने का एक छोटा सा प्रयास किया। उनके अनुभवों को अखबार में विस्तार से छापा…उन्हीं में हमारे डॉक्टर साहब भी थे। डॉ बेचैन ग़ाजियाबाद के ही नहीं पूरे हिन्दी जगत के शान थे… उन्होंने धुआंधार लिखा.. आखिरी वक्त तक लिखते रहे.. जिंदगी के जद्दोजहद का मुस्करा कर सामना करते रहे.. बेहद मृदुभाषी और आत्मीयता से भरे डॉ बेचैन ने कुछ ही महीने पहले हमारे कार्यक्रम ‘7 रंग 7 कविताएं ‘के लिए अपनी 7 कविताएं रिकॉर्ड कर भेजी थीं। उनका इस तरह जाना मन में टीस पैदा करता है। वाकई बेचैन करता है। इस कोरोना काल ने हमारे बहुत सारे साहित्यकारों, कलाकारों, पत्रकारों और संजीदा लोगों को हमसे छीना है। कुअंर साहब का जाना देश के जाने माने लेखक, कहानीकार, उपन्यासकार से रा यात्री को बेहद विचलित कर गया है… दोनों कालेज के दिनों के साथी रहे… यात्री जी खुद बीमार रहते हैं लेकिन लगातार ऐसी खबरों से वे बेहद आहत हैं.. हाल ही में उनकी बेटी भी इस दौर में उनका साथ छोड़ गईं.. यात्री जी बेबस और बेहद टूटे हुए अपने शब्दों को टुकड़े टुकड़े में कहते हैं। उनके बेटे आलोक यात्री उन्हें कलमबद्ध करते हैं और कुअंर बेचैन के प्रति यात्री जी अपने मन की पीड़ा कुछ इस तरह जाहिर करते हैं…..)   
मेरा और कुंअर का साथ करीब छह दशक पुराना है। एक ही विद्यालय में पढ़ाते-पढ़ाते मैंने और कुंअर ने साहित्य की पगडंडी से मुख्य मार्ग तक की यात्रा साथ-साथ ही तय की। देश के तमाम शहरों में हम दोनों को कई कार्यक्रमों में साथ-साथ यात्रा करने का अवसर मिला। मैंने कुंअर को हमेशा गुनगुनाते हुए ही पाया। लगता था वह अपने किसी गीत या शेर पर सवार है। अभिव्यक्ति के प्रति समर्पित मैंने ऐसा दूसरा रचनाकार नहीं देखा।
कहना मुश्किल है वह गीत कहता था या शब्दों की चित्रकारी करता था। गीतों का ऐसा दूसरा चित्रकार कहां मिलेगा।
करीब दो साल पहले पुत्र प्रगीत के साथ आए थे। लंबी मुलाकात मौन में ही गुजरी। हम दोनों की आंखें ही संवाद करती रहीं।
अभी-अभी किसी अपने को खोने के कष्ट से उबर भी नहीं पाया हूं कि यह हृदयविदारक खबर सुनने को मिल गई।
ऐसे भी कोई विदा होता है क्या?
हर रोज कष्ट में इजाफा हो रहा है। हे ईश्वर! दुनिया पर, इंसानियत पर रहम कर।
🙏🙏 आमीन
– से. रा. यात्री
Posted Date:

April 29, 2021

8:58 pm Tags: , , , ,
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