सिनेमा की दुनिया संस्कृति, समाज और साहित्य की अनूठी मिसाल है। यहां किस्सागोई भी है, हकीकत भी, अभिनय और कला के तमाम आयाम भी। देश और दुनिया की संस्कृति को आप इसके ज़रिये जितना देख पाते हैं, समसामयिक विषयों से जुड़ी घटनाओं और किरदारों को करीब से देख पाते हैं और साथ ही मनोरंजन और संगीत का अद्भुत जो सिल्वर स्क्रीन पर मिलता है, वो कहीं और मिलना मुश्किल है। बेशक सेलुलाइड का अपना गणित है और तकनीक का अपना संसार, लेकिन दुनिया भर में यह संप्रेषण का सबसे असरदार माध्यम है।
त्तर के दशक में एक युवा अभिनेता बंगाल की धरती से अभिनय की दुनिया में कदम रखता है, पहले क्लासिक फिल्मकार मृणाल सेन उसे पहचान देते हैं, इस पहली ही फिल्म से वह राष्ट्रपति पुरस्कार पाता है और जल्दी ही डिस्को डांसर बनकर युवाओं के दिलों की धड़कन बन जाता है... बात मिठुन चक्रवर्ती की हो रही है जिन्हें अपने जीवनकाल में बेहतरीन फिल्में करने और अभिनय की दुनिया में खास मुकाम बनाने के लिए इस साल का
Read Moreबांग्ला फिल्मकारों में एक खास बात होती है कि वो कम फिल्में बनाते हैं लेकिन ये फिल्में यादगार होती हैं... चाहे सत्यजीत रे हों, बासु भट्टाचार्य, बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी, बिमल राय हों या उत्पलेन्दु चक्रवर्ती ... 1983 में जब उत्पलेन्दु चक्रवर्ती की 'चोख' आई तो सबका ध्यान उनकी तरफ गया। चोख को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और उत्पलेन्दु को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का।
Read Moreहिंदी सिनेमा की जानी मानी अदाकारा और दिलीप कुमार साहब की बेगम साहिबा सायरा बानो की तबियत खराब हो गई है। उन्हें मुंबई के हिंदुजा अस्पताल में भर्ती कराया गया है। जानकारी के अनुसार, 77 साल की सायरा बानो को 3 दिन पहले अस्पताल में भर्ती किया गया था। ब्लड प्रेशर की शिकायत के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया था।
Read Moreभारतीय जन नाट्य संघ (इंडियन प्रोग्रेसिव थिएटर एसोसिएशन) यानी इप्टा ने बहुत ही संज़ीदगी के साथ जाने माने लेखक, पत्रकार, और फिल्मकार ख्वाज़ा अहमद अब्बास को याद किया... इसी कड़ी में अब्बास की फिल्मों और खासकर उनकी फिल्म हिना को केन्द्र में रखकर उनकी रचनात्मक दृष्टि पर चर्चा हुई... इसकी रिपोर्ट इप्टा की ओर से 7 रंग के लिए अर्पिता ने भेजी है...
Read Moreअभिनय के आसमान दिलीप कुमार सौ बसंत पूरे होने से पहले ही स्मृति-लोप के साथ इस दुनिया से विदा ले गए। हमारे समय के सबसे कड़े लिक्खाड़ कवि और सिने विशेषज्ञ विष्णु खरे जी ने उनकी रेंज पहचानते हुए कभी दिलीप कुमार को विश्व कोटि के बेहतरीन अदाकार पाल मुनि और मार्लेन ब्रांडो की कद-काठी और उन्हीं की श्रेणी का बताया था। तो इसमें अतिश्योक्ति नहीं है।
Read Moreवैसे तो दिलीप साहब के गुज़र जाने पर सोशल मीडिया और तमाम माध्यमों पर उन्हें सब अपने अपने तरीके से याद कर रहे हैं और उनके न होने का मतलब भी बताने की कोशिश कर रहे हैं....दिलीप साहब किस गहराई से आज भी लोगों के दिलो दिमाग पर छाए रहे और किस तरह सिनेमा को उन्होंने नई दिशा दी, ट्रेजेडी को भी एक रूमानियत की बेहतरी अभिव्यक्ति बना दी... ये सब बहुत साफ हो रहा है.. सिनेमा भले ही कहां से कहां आ गया है, तकनीक
Read Moreवो पाकीज़ा की साहिबजान थीं... वो साहिब बीवी और गुलाम की छोटी बहू थीं...वो बैजू की गौरी थीं.. दो बीघा ज़मीन की ठकुराइन थीं...परिणीता की ललिता थीं...और सबसे बड़ी उनकी पहचान थी ट्रेजेडी क्वीन की... लेकिन असल में वो महज़बीं बानो थीं...एक बेहतरीन शायरा...एक तड़पती हुई बेचैन अदाकारा...बहुत कुछ थीं मीना कुमारी। 31 मार्च को महज 38 साल की ज़िंदगी जीकर मीना ने दुनिया को अलविदा कह दिया...उनकी ज़िंदगी में कमाल
Read Moreसागर सरहदी का जाना एक ऐसे तरक्कीपसंद शख्स का जाना है जिसकी झोली में सिलसिला, कभी कभी और चांदनी भी है तो बाज़ार और चौसर भी... सागर सरहदी में यश चोपड़ा की ज़रूरतों के मुताबिक ढलने की कला भी है तो वक्त के साथ देश और समाज को बारीकी से देखने का अपना नज़रिया भी... सरहदी साहब बीमार चल रहे थे... 88 साल के हो चुके थे... लेकिन अब भी बेहद संज़ीदे तरीके से वक्त को देखते समझते थे। '7 रंग' के लिए सागर सरहदी को या
Read Moreइतनी कामयाबी, इतनी शोहरत... लेकिन एक ऐसा अकेलापन जिसने एक बेहतरीन और संभावनाओं से भरे कलाकार को खुदकुशी जैसी कायराना हरकत करने को मजबूर कर दिया। कोरोना काल के तमाम खतरनाक संकटों में से एक सबसे बड़ा संकट डिप्रेशन को लेकर नजर आता है जिसके शिकार आम-ओ-खास होते दिख रहे हैं।
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