दुनिया एक रंगमंच है और हमसब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं। किसी ने ये पंक्तियां यूं ही नहीं कह दीं। अगर आप गहराई से देखें तो हम सब कहीं न कहीं ज़िन्दगी में हर रोज़ कोई न कोई किरदार होते हैं और हर पल हमारे हाव भाव, बोलचाल का अंदाज़ और तमाम घटनाक्रमों के बीच हमारी भूमिका एक नई कहानी गढ़ती है। भारतीय रंगमंच की परंपरा बेहद समृद्ध है और ये कहीं न कहीं हमारे जीवन के तमाम पहलुओं को स्वांग के ज़रिये सामने लाती है। फिल्मों और टेलीविज़न के आने के बाद से रंगमंच की दुनिया में हलचल मच गई और इसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जाने लगे। लेकिन हर दौर में देश के तमाम हिस्सों में रंगमंच उसी शिद्दत के साथ मौजूद है और रहेगा। इसकी अपनी दुनिया है और अपने दर्शक हैं। यहां भी नए नए प्रयोग होते रहते हैं और देश भर में लगातार नाटकों का मंचन होता रहता है। कहां क्या हो रहा है, रंगमंच आज किस दौर में है, कौन कौन से प्रयोग हो रहे हैं, कलाकारों की स्थिति क्या है, पारंपरिक और लोक रंगमंच आज कहां खड़ा है – ऐसी तमाम जानकारियां इस खंड में।
असगर वजाहत के नाटकों में देश और समाज को देखने और इतिहास को वैज्ञानिक तथ्यों के साथ सामने लाने का जो शिल्प है, वह अद्भुत है। उनका ताज़ा नाटक 'महाबली' इसकी मिसाल है। दिल्ली के श्रीराम सेंटर में इस नाटक का पहला शो पिछले दिनों जाने माने रंगकर्मी एम के रैना के निर्देशन में हुआ। महाबली में क्या है खास और कौन हैं इस नाटक के दो महाबली जो हमारे देश में हर वक्त धड़कते रहते हैं, ये जानने की कोशिश क
Read Moreरंगमंच के तमाम आयामों और थिएटर पर चलने वाली बहसों को करीब से देखने समझने और उसपर लगातार लिखने वाले नाटककार राजेश कुमार ने दिल्ली के उस नए ट्रेंड को पकड़ने की कोशिश की है जो रंगकर्मियों के लिए नया उत्साह जगाने वाला है। अब तक कई चर्चित नाटक लिख चुके राजेश कुमार ने स्टूडियो थिएटर की इस नई परिकल्पना को करीब से देखा।
Read More11वां सावित्री त्रिपाठी स्मृति सम्मान सुप्रसिद्ध नाटककार राजेश कुमार को दिया जाएगा। सावित्री त्रिपाठी फाउन्डेशन के सचिव पीयूष त्रिपाठी ने यह घोषणा की है। उन्होंने बताया कि स्मृति सम्मान की निर्णायक समिति के सदस्यों प्रो. काशीनाथ सिंह, प्रो. बलराज पांडेय और प्रो. आशीष त्रिपाठी ने सर्वसम्मति से राजेश कुमार का चयन किया है।
Read Moreअस्मिता थिएटर ग्रुप ने 3 जुलाई को उस स्मृति को दर्शकों के बीच रंगकर्म के माध्यम से याद दिलाने का सफल प्रयास किया । नाटक का नाम था ' पार्टीशन' । इसका मंचन हुआ था मंडी हाउस के त्रिवेणी सभागार में । विभाजन पर लिखी मंटो की कहानी को देखने के लिए जितने लोग अंदर बैठे थे, उतने ही बाहर खड़े थे । देखने के लिए दर्शकों का सैलाब टूटा पड़ा था ।
Read Moreजो आपके सपनों का राजकुमार हो, उससे आप राजकुमारी न होकर किसी और रूप में रूबरू हों ऐसा ही मेरे साथ तब हुआ जब मैंने पहली बार हबीब तनवीर से मुलाक़ात की। हबीब तनवीर का पहला नाटक 'चरणदास चोर' मैंने सन 76 में आगरा के सर्किट हाउस मैदान में चल रहे 'आगरा बाजार' में देखा था। बंसी कौल की वर्कशॉप से ट्रेनिंग लेकर मैं हाल ही में 'अमेचर' रंगकर्मी बना था। मैंने हबीब साहब के नाटक को देखा और छत्तीसगढ़ी लोक 'नाच
Read Moreपिछले लगभग दो साल हिंदी और भारतीय रंगमंच `न होने’ का काल है। यानी नाटक नहीं हुए, रिहर्सल नहीं हए और रंगकर्मी कुछ न करने के लिए अभिशप्त हुए। अब जाकर कुछ नाटक हो रहे हैं पर रंगमंच की दुनिया अभी भी उजाड़ है। ऐसे में बरेली में `जिंदगी जरा सी है’ का मंचन एक ताजा हवा की तरह भी है और अभी के दौर को समझने की कोशिश भी।
Read Moreकोरोना के कारण भारतीय और हिंदी रंगमंच को जो क्षति हुई है उसकी गिनती की जाए तो उसमें एक बड़ा नाम एस एम अज़हर आलम (जन्म 17 अप्रेल 1968) का होगा। लगभग एक साल पहले यानी 20 अप्रेल 2021 को वे कोरोना के शिकार हुए थे। उसके कुछ ही दिन पहले उनको मौलिक नाट्य लेखन के लिए नेमीचंद्र जैन नाट्यलेखन सम्मान मिला था। पर ये सम्मान अज़हर आलम का महत्त्वपूर्ण पर छोटा परिचय ही था।
Read Moreभारतीय रंगमंच के वरिष्ठ निर्देशक बंसी कौल का हिन्दी रंगमंच में अविस्मरणीय और महत्वपूर्ण योगदान है। पिछले कुछ समय से उनका स्वास्थ्य ठीक नहीं था, वह कैंसर से जुझ रहे थे, पर उनकी जिजीविषा और जिंदादिली अद्भुत थी। सबको उम्मीद थी कि वह इस स्थिति से उबर कर दोबारा सक्रिय हो जाएंगे। पर ऐसा नहीं हो सका। जिंदगी के नाटक का पटापेक्ष कर बंसी नेपथ्य में चले गए।
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