दुनिया एक रंगमंच है और हमसब इस रंगमंच की कठपुतलियां हैं। किसी ने ये पंक्तियां यूं ही नहीं कह दीं। अगर आप गहराई से देखें तो हम सब कहीं न कहीं ज़िन्दगी में हर रोज़ कोई न कोई किरदार होते हैं और हर पल हमारे हाव भाव, बोलचाल का अंदाज़ और तमाम घटनाक्रमों के बीच हमारी भूमिका एक नई कहानी गढ़ती है। भारतीय रंगमंच की परंपरा बेहद समृद्ध है और ये कहीं न कहीं हमारे जीवन के तमाम पहलुओं को स्वांग के ज़रिये सामने लाती है। फिल्मों और टेलीविज़न के आने के बाद से रंगमंच की दुनिया में हलचल मच गई और इसके अस्तित्व पर सवाल उठाए जाने लगे। लेकिन हर दौर में देश के तमाम हिस्सों में रंगमंच उसी शिद्दत के साथ मौजूद है और रहेगा। इसकी अपनी दुनिया है और अपने दर्शक हैं। यहां भी नए नए प्रयोग होते रहते हैं और देश भर में लगातार नाटकों का मंचन होता रहता है। कहां क्या हो रहा है, रंगमंच आज किस दौर में है, कौन कौन से प्रयोग हो रहे हैं, कलाकारों की स्थिति क्या है, पारंपरिक और लोक रंगमंच आज कहां खड़ा है – ऐसी तमाम जानकारियां इस खंड में।
ब से भारत रंग महोत्सव (भारंगम) शुरु हुआ है रंगकर्मियों और रंग संस्थाओं के लिए एक बड़े और प्रतिष्ठित मंच पर खुद को अभिव्यक्त करने का मौका मिलने लगा। पच्चीस साल हो गए। 1999 में जब इसकी शुरुआत हुई तो एनएसडी के निदेशक थे रामगोपाल बजाज। पहले भारंगम में गिरीश कर्नाड के नाटक नागमंडल खेला गया था अमाल अल्लाना के निर्देशन में। इसके अलावा भी कई अन्य चर्चित नाटक। इन पच्चीस सालों में अब भारंगम का स
Read Moreवसुधैव कुटुंबकम का संदेश फैलाने के लिए दुनिया में नाटकों का सबसे बड़ा आयोजन “भारत रंग महोत्सव “(भारंगम) इस साल 28 जनवरी से शुरू होगा और बीस दिनों तक चलेगा और पहली बार देश से बाहर विदेश की धरती पर भी होगा। प्रसिद्ध फ़िल्म अभिनेता एवम एनएसडी के पूर्व छात्र राजपाल यादव इस साल भारंगम के “रंगदूत” बनाये गए हैं।
Read Moreजाने माने रंगकर्मी और नाटकों के शिल्प से लेकर कथ्य तक को बेहद समृद्ध करने वाले हबीब तनवीर की याद में हर साल दिए जाने वाले कारवां-ए-हबीब सम्मान इस साल मशहूर नाट्य समीक्षक और लेखक डॉ जयदेव तनेजा को दिया जाएगा। सत्तर और अस्सी के दशक से लेकर अबतक जयदेव तनेजा ने रंगकर्म के क्षेत्र में जबरदस्त काम किया है और उनके लेख और नाट्य समीक्षाएं जनसत्ता, नवभारत टाइम्स समेत देश के तमाम प्रतिष्ठित अ
Read Moreरंगकर्मियों और नाटक करने वाली संस्थाओं पर शिकंजा कसने की पहले भी कई बार कोशिशें हुईं लेकिन जबरदस्त विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो सका। पिछले कुछ सालों से ये कोशिश नए नए रूपों में सामने आ रही है। दिल्ली में अब ज्यादातर फैसले उप राज्यपाल की ओर से लिए जा रहे हैं। हाल ही में ऐसा ही एक संस्कृतिविरोधी फैसला लिया गया है जिसे लेकर कलाकारों और रंग संस्थाओं में जबरदस्त आक्रोश है।
Read Moreभारतीय रंगमंच के युग स्तम्भ और वरिष्ठ निर्देशक इब्राहिम अल्काज़ी को याद करते हुए उनके उन तमाम योगदानों की चर्चा ज़रूरी है जिसकी बदौलत देश में रंगमंच तमाम चुनौतियों के बाद भी आज युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींच रहा है। चार साल पहले चार अगस्त 2020 को रंगमंच की दुनिया को अपना बहुत कुछ दे गए इब्राहिम अल्काजी ने बेशक हम सबको अलविदा कह दिया हो, लेकिन वह आज भी रंगकर्मियों के लिए प्रेरणास्त्रोत ब
Read Moreरंगमंच के क्षेत्र में आखिर महिलाओं की संख्या या जगह इतनी कम क्यों है? क्या इसके पीछे कोई वर्णवादी सोच है या पुरुषवादी वर्चस्व का आदिकालीन नज़रिया? क्या आज के दौर में भी रंगमंच नाट्यशास्त्र के उन्हीं मान्यताओं पर चल रहा है जिसे भरतमुनि ने रचा था? क्या ब्राह्मणवादी साहित्य की अवधारणाओं में महिलाओं का स्थान शूद्रों की तरह रहा है और रंगमंच में भी कहीं न कहीं ये अवधारणा लागू होती है? जा
Read Moreअसगर वजाहत के नाटकों में देश और समाज को देखने और इतिहास को वैज्ञानिक तथ्यों के साथ सामने लाने का जो शिल्प है, वह अद्भुत है। उनका ताज़ा नाटक 'महाबली' इसकी मिसाल है। दिल्ली के श्रीराम सेंटर में इस नाटक का पहला शो पिछले दिनों जाने माने रंगकर्मी एम के रैना के निर्देशन में हुआ। महाबली में क्या है खास और कौन हैं इस नाटक के दो महाबली जो हमारे देश में हर वक्त धड़कते रहते हैं, ये जानने की कोशिश क
Read Moreरंगमंच के तमाम आयामों और थिएटर पर चलने वाली बहसों को करीब से देखने समझने और उसपर लगातार लिखने वाले नाटककार राजेश कुमार ने दिल्ली के उस नए ट्रेंड को पकड़ने की कोशिश की है जो रंगकर्मियों के लिए नया उत्साह जगाने वाला है। अब तक कई चर्चित नाटक लिख चुके राजेश कुमार ने स्टूडियो थिएटर की इस नई परिकल्पना को करीब से देखा।
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