उन शख्सियतों की यादें जिन्होंने साहित्य, कला, संस्कृति के क्षेत्र में अहम मुकाम हासिल किए…
सिनेमा की दुनिया को बेहद करीब से समझने वाले और राजकपूर जैसे शोमैन की कलायात्रा को गहराई से महसूस करने वाले जाने माने पत्रकार और लेखक प्रताप सिंह ने उनकी जन्मशती के मौके पर बेहद संजीदगा के साथ 7 रंग के लिए ये विशेष पेशकश भेजी है... राज साहब की फिल्म यात्रा को समझने के साथ ही उनकी शख्सियत के कई दूसरे देखे अनदेखे पहलुओं पर प्रताप सिंह ने पैनी नज़र डालने की कोशिश की है।
Read Moreमजाज़ की ख़ूबसूरत, पुरसोज़ शायरी के पहले भी सभी दीवाने थे। इतने सालों बाद भी यह दीवानगी क़ायम है. मजाज़ सरापा मुहब्बत थे. तिस पर उनकी शख़्सियत भी दिलनवाज़ थी. सुरीली आवाज़ और पुरकशिश तरन्नुम में नज़्म पढ़ते तो बस उनकी आवाज़ महसूस की जाती, उनका क़लाम सुना जाता. सामयीन उनकी नज़्मों में डूब जाते. बाज़ आलोचक उन्हें उर्दू का कीट्स कहते थे, तो फ़िराक़ गोरखपुरी की नज़र में, ‘‘अल्फ़ाज़ के इंत
Read Moreबांग्ला फिल्मकारों में एक खास बात होती है कि वो कम फिल्में बनाते हैं लेकिन ये फिल्में यादगार होती हैं... चाहे सत्यजीत रे हों, बासु भट्टाचार्य, बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी, बिमल राय हों या उत्पलेन्दु चक्रवर्ती ... 1983 में जब उत्पलेन्दु चक्रवर्ती की 'चोख' आई तो सबका ध्यान उनकी तरफ गया। चोख को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और उत्पलेन्दु को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का।
Read Moreसुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार भीष्म साहनी की स्मृतियों का उनके जन्मदिन पर अस्मिता थिएटर ग्रुप के फेसबुक वॉल से ये रिपोर्ट पढ़िए। अरविंद गौड़ ने उनके तमाम नाटकों का मंचन किया। भीष्म साहनी को बेशक 'तमस' के लिए याद किया जाता हो, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में उनके अद्भुत और उल्लेखनीय योगदान के साथ ही इप्टा में उनकी सक्रियता को कभी भूला नहीं जा सकता। आज भी भीष्म साहनी उतने ही प्रास
Read Moreभारतीय रंगमंच के युग स्तम्भ और वरिष्ठ निर्देशक इब्राहिम अल्काज़ी को याद करते हुए उनके उन तमाम योगदानों की चर्चा ज़रूरी है जिसकी बदौलत देश में रंगमंच तमाम चुनौतियों के बाद भी आज युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींच रहा है। चार साल पहले चार अगस्त 2020 को रंगमंच की दुनिया को अपना बहुत कुछ दे गए इब्राहिम अल्काजी ने बेशक हम सबको अलविदा कह दिया हो, लेकिन वह आज भी रंगकर्मियों के लिए प्रेरणास्त्रोत ब
Read Moreदैनिक हिन्दुस्तान के प्रधान संपादक के साथ कई अखबारों में वरिष्ठ पदों पर रहे अजय उपाध्याय के ज्ञान का सब लोहा मानते थे... बेशक अजय जी ने लिखा बहुत कम हो, लेकिन पढ़ा इतना कि जब भी वो कहीं बैठते उनकी बातचीत का आयाम इतना बड़ा हो जाता कि सुनने वाले बस सुनते ही रहते... उन्हें पत्रकार से ज्यादा विश्लेषक और बेहतरीन वक्ता आप कह सकते हैं... बातचीत में इतने संदर्भ और इतनी व्यापकता कि मूल विषय के खो ज
Read Moreआज बेशक अतुल जी को गए ग्यारह साल गुज़र गए हों लेकिन संस्थान को जिस ऊंचाई तक वो लेकर आए और पत्रकारिता के मानदंड स्थापित किए उसे समूह के मौजूदा चेयरमैन राजुल माहेश्वरी और माहेश्वरी परिवार की नई पीढ़ी ने बेहद संज़ीदगी से आगे बढ़ाया है।
Read More'श्याम नवगीत और ग़ज़ल का शिल्पी था, सिद्धहस्त सम्पादक, मधुर रचनाओं का रचयिता और संवेदनशील व्यक्ति, उसके रोम-रोम से आत्मीयता छलकती थी। जब-जब मेरी और श्याम की मुलाकात होती वो पल मेरे लिए बहुत सुखद होते उसके पीछे बहुत से कारण हैं।...'
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