उन शख्सियतों की यादें जिन्होंने साहित्य, कला, संस्कृति के क्षेत्र में अहम मुकाम हासिल किए…


यादें
वसंत साठे की जन्मशती पर क्या बोले आरिफ मोहम्मद खां
7 Rang
March 5, 2025

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राजनीति के बगैर रेणु , ये रेणु न होते…
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March 4, 2025

हमारे दो बड़े लेखक -फणीश्वरनाथ रेणु और नागार्जुन- बिहार के मिथिलांचल से थे। इनका मिथिलांचंली होना एक संयोग था मगर असली समानता उनमें दोनोंं लेखकों की विचार और कर्म के स्तर पर सक्रिय राजनीतिक सक्रियता थी। शायद रेणु की सक्रियता  ज्यादा थे। नागार्जुन यायावर थे, देशभर में घूमते रहते थे मगर रेणु को आना-जाना सामान्य रूप से ही प्रिय था(याद करें 'ऋणजल' के वे अंश जब सूखे की कवरेज के लिए आये ' द�

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बुनती रहे हमारी अंगुलियां इकतारे की धुन पर…
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January 7, 2025

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श्याम बेनेगल: नये सिनेमा के शिखर और सफ़र….!
7 Rang
December 25, 2024

श्याम बेनेगल के होने के अपने मायने थे.. उनके पास सिनेमाई कौशल के साथ अपने समाज के ज़रूरी सवाल भी रहे और उन सवालों पर सोचने को मजबूर कर देने की कला भी... समानांतर सिनेमा को भी उन्होंने उस लीक से हटाने की कोशिश की जिसे कई दफा बोझिल और उबाऊ करार दिया जाता रहा.. क्योंकि बेनेगल सिनेमा के व्याकरण को भी बखूबी समझते थे...आखिर श्याम बेनेगल के सफरनामें की क्या खासियतें रहीं जो उन्हें इस मुकाम तक ले �

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आखिरी वक्त तक सजी रही शो मैन की महफ़िल
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December 13, 2024

सिनेमा की दुनिया को बेहद करीब से समझने वाले और राजकपूर जैसे शोमैन की कलायात्रा को गहराई से महसूस करने वाले जाने माने पत्रकार और लेखक प्रताप सिंह ने उनकी जन्मशती के मौके पर बेहद संजीदगा के साथ 7 रंग के लिए ये विशेष पेशकश भेजी है... राज साहब की फिल्म यात्रा को समझने के साथ ही उनकी शख्सियत के कई दूसरे देखे अनदेखे पहलुओं पर प्रताप सिंह ने पैनी नज़र डालने की कोशिश की है।

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मजाज़ हूं सरफ़रोश हूं मैं…
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October 19, 2024

मजाज़ की ख़ूबसूरत, पुरसोज़ शायरी के पहले भी सभी दीवाने थे। इतने सालों बाद भी यह दीवानगी क़ायम है. मजाज़ सरापा मुहब्बत थे. तिस पर उनकी शख़्सियत भी दिलनवाज़ थी. सुरीली आवाज़ और पुरकशिश तरन्नुम में नज़्म पढ़ते तो बस उनकी आवाज़ महसूस की जाती, उनका क़लाम सुना जाता. सामयीन उनकी नज़्मों में डूब जाते. बाज़ आलोचक उन्हें उर्दू का कीट्स कहते थे, तो फ़िराक़ गोरखपुरी की नज़र में, ‘‘अल्फ़ाज़ के इंत�

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उत्पलेन्दु चक्रवर्ती: एक सरोकारी फिल्मकार का जाना
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August 23, 2024

बांग्ला फिल्मकारों में एक खास बात होती है कि वो कम फिल्में बनाते हैं लेकिन ये फिल्में यादगार होती हैं... चाहे सत्यजीत रे हों, बासु भट्टाचार्य, बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी, बिमल राय हों या उत्पलेन्दु चक्रवर्ती ... 1983 में जब उत्पलेन्दु चक्रवर्ती की 'चोख' आई तो सबका ध्यान उनकी तरफ गया। चोख को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और उत्पलेन्दु को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का।

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कहते हैं चुप रहना अच्छा है : त्रिलोचन
7 Rang
August 20, 2024

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भीष्म साहनी को पढ़ना आज भी क्यों ज़रूरी है
7 Rang
August 8, 2024

सुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार भीष्म साहनी की स्मृतियों का उनके जन्मदिन पर अस्मिता थिएटर ग्रुप के फेसबुक वॉल से ये रिपोर्ट पढ़िए।  अरविंद गौड़ ने उनके तमाम नाटकों का मंचन किया। भीष्म साहनी को बेशक 'तमस' के लिए याद किया जाता हो, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में उनके अद्भुत और उल्लेखनीय योगदान के साथ ही इप्टा में उनकी सक्रियता को कभी भूला नहीं जा सकता।  आज भी भीष्म साहनी उतने ही प्रास�

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रंगमंच के पर्याय थे इब्राहिम अल्काजी
7 Rang
August 4, 2024

भारतीय रंगमंच के युग स्तम्भ और वरिष्ठ निर्देशक इब्राहिम अल्काज़ी को याद करते हुए उनके उन तमाम योगदानों की चर्चा ज़रूरी है जिसकी बदौलत देश में रंगमंच तमाम चुनौतियों के बाद भी आज युवा पीढ़ी को अपनी ओर खींच रहा है।  चार साल पहले  चार अगस्त 2020 को रंगमंच की दुनिया को अपना बहुत कुछ दे गए इब्राहिम अल्काजी ने बेशक हम सबको अलविदा कह दिया हो, लेकिन वह आज भी रंगकर्मियों के लिए प्रेरणास्त्रोत ब�

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