चूंचूं अंकल में रातोंरात बदलाव हो गया। रात में अच्छे भले खा-पीकर सोए थे लेकिन सुबह आंख खुली तो हृदय परिवर्तित मिला। जगने के बाद से भक्तिरस में सराबोर हैं। बार-बार कह रहे हैं कि मैं भक्त बनूंगा। किसी का भी बनूं लेकिन भक्त बने बिना नहीं रह पाऊंगा। थोड़ी देर में पूरे मोहल्ले को खबर हो गई कि चूंचूं अंकल भक्त बनने की रट लगाए हैं। सभी चकित कि उनमें अचानक भक्तिभाव का प्रादुर्भाव कैसे हो गया
Read More"अकल बड़ी या भैंस?" यह जुमला आपने भी अक्सर सुना होगा। दुनिया के तमाम सियाने आज तक इस सवाल का जवाब नहीं तलाश पाए। आए दिन हमारे सामने कई ऐसे मसले आते हैं जो अटकल लगाने पर मजबूर कर देते हैं कि अकल बड़ी या भैंस? अब ताजा मसला ही लीजिए। भोपाल में तैनात पैरामिलिट्री फोर्स के एक जवान को छुट्टी जाना था। अवकाश की वह अर्जी लोगों में परिहास का सबब बनी हुई है। जिसमें जवान ने लिखा था "मेरी भैंस बीमार ह
Read Moreबारिश ने पूरे देश में तबाही मचा रखी है। आज देश के ख्यातिलब्ध गीतकार नीरज जी की बरसी है। मुझे "अबके सावन में ये शरारत मेरे साथ हुई..." शेर याद आ रहा है। टीवी पर मिनट मिनट की खबरें ब्रेक हो रही हैं। दिल्ली के अन्ना नगर में नाले में बरसाती पानी के सैलाब से किनारे बसे कई मकान बह गए। मिंटो ब्रिज के नीचे डीटीसी की एक बस पानी में डूब गई। बस की तो औकात ही क्या एक आटो और एक कार भी मिंटो ब्रिज के नीचे भ
Read Moreमैं छोटा सा रहा होउंगा। यही कोई पांच सात बरस का। गर्मी की एक दोपहर पिताश्री और मोटा ताऊ जी (पिताश्री के कॉलेज के सहयोगी श्री एम.डी.शर्मा जी) के साथ पहली बार किसी गांव के रोमांचक सफर पर निकलने का अवसर मिला था। इससे पहले तक मैं अपने सगे ताऊ जी के पास मुजफ्फरनगर में रहता था। ट्रेन से गाजियाबाद आते-जाते पटरी के साथ दौड़ते कईं गांव नजर आते थे। जिनमें झांकने की कोशिश से पहले ही वह उड़न छू हो ज
Read More"अजी सुनते हो... पूरी दुनिया के दफ्तर खुल गए... मुए एक तुम्हारे दफ्तर को ही आग लगी है... कुछ तो शर्म करो... घर से ऑफिस कब तक चलाओगे... अब तो कामवाली से लेकर अड़ोसन-पड़ोसन भी पूछने लगी हैं... बड़े सूरमा बने फिरते हो... सोसाइटी में भी डरपोक का खिताब मिलने वाला है..." श्रीमती जी के प्रवचन हरि कथा की तरह अनंत होते जा रहे थे। इस निरीह प्राणी की बुद्धि में सुबह-सुबह श्रीमती जी के प्रवचनों की कोई वजह फिट नही
Read Moreएक दौर था जब "जो दिखता है, वो बिकता है" जुमला भारतीय राजनीति और मीडिया के ताल्लुकों का पैमाना हुआ करता था। बीते दो दशकों में मीडिया, खासकर खबरिया चैनल्स की कार्यशैली में आमूलचूल परिवर्तन आया है। अधिकांश मीडिया घरानों और खबरिया चैनल्स ने पेशेवर रुख अख्तियार कर लिया है। शायद उसी का नतीजा है कि उपरोक्त जुमला बदल कर यूं हो गया है -"जो बिकता है, वही दिखता है।"
Read Moreफोन "मल्लिका" परवीन का था। तखल्लुस वह नाम से पहले लगाती हैं। इससे पहले भी वाट्सएप पर उनके कई मैसेज आ चुके थे। जिनमें से सुप्रभात, गुड मार्निंग जैसे तीन-चार मैसेज का मैं जवाब भी दे चुका था। हमने फोन उठाना ही मुनासिब समझा। क्योंकि मल्लिका जी अनुग्रह-विग्रह में बहुत यकीन रखती हैं।
Read More"लो जी कल लो बात...?" यह बात करने का कोई न्यौता था या वह सज्जन मुझे कुछ बताना चाह रहे थे? लहजा ही बड़ा अटपटा था- "लो जी... कल लो बात?" हमने गरदन मरोड़ कर चारों तरफ को देखा। ओरे-धोरे कोई नहीं था। फिर यह बात वाली "बात" किसने छेड़ी थी? अलबत्ता एक पड़ोसी अपनी छत पर खींसे निपोरता जरूर नजर आया।
Read Moreबहुत दिनों से प्रिंट मीडिया का चेहरा सलीके से नहीं देखा था। दिन निकलते ही खबरिया चैनल अपने पिटे पिटाये अंदाज़ में खबरें परोसने में लगे रहते हैं। बेगम की चाय की प्याली से पहले "हॉट सीट" तक की यात्रा यह आसान बना देते हैं। मौत के आंकड़ों का गणित आपको लगातार खौफज़दा करता रहता है। इस "वध काल" में चचा गालिब की सलाह मानना ही बेहतर..
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