मच्छर आपको हर जगह मिल जाएंगे। इनके लिए कहीं कोई रोक-टोक नहीं। जहां अनुकूल माहौल मिला डाल दिया डेरा डंगर और फैला लिया अपना साम्राज्य। कोई भी मौसम या कोई भी जगह इनके लिए पूरी तरह प्रतिबंधित नहीं है। फिर भी जहां इनके रहने, खाने और पीने की सुविधाएं मिलती हैं, वहां चप्पे-चप्पे पर इन्हीं का कब्जा रहता है। अपने यहां मच्छरों के लिए सारी सुविधाएं मौजूद हैं। प्रशासन इनका विशेष ध्यान रखता है।
Read Moreलड्डू प्रकरण के बाद चूंचूं अंकल का दिल रह रहकर लड्डुओं के लिए मचल उठता है। मुंह का पानी कतई सूखने में नहीं आ रहा है। हर समय उनके मन में लड्डू फूट रहे हैं। लड्डुओं के प्रति अचानक उमड़ी उनकी प्रीति से घर के बाकी लोग हैरान हैं। रोज घर में आधा किलो लड्डू आते हैं और चूंचूं अंकल शाम तक सब अकेले ही निपटा देते हैं। सुबह फिर लड्डू-लड्डू की रट लगाने लगते हैं। अंकल का लड्डू प्रेम इनदिनों उनके देश
Read Moreयह तो भाई हद हो गई। वे बार-बार कह रहे हैं कि वे कट्टर ईमानदार हैं, बेईमानी से दूर-दूर तक उनका कोई नाता नहीं है। फिर भी कोई मानने को तैयार ही नहीं है। जब वे गला फाड़-फाड़कर ईमानदारी की कसमें खा रहे हैं तब तो हर किसी को उनकी बात पर विश्वास कर ही लेना चाहिए।
Read Moreसाहित्यकार भुवनेश्वर ने आज के 85 साल पहले प्रसिद्ध कहानी लिखी थी- भेड़िये। तब यह कहानी जितनी चर्चित हुई थी उससे ज्यादा भेड़िये चर्चा में आए थे। उसी खौफ के साथ भेड़िये फिर लौटे हैं। यूपी के बहराइच और आसपास के इलाकों में भेड़ियों का खौफ पसरा है। टीवी चैनलों पर सिर्फ भेड़िये छाए हैं। पैने और नुकीले दांत दिखाते, जीभ से लार टपकाते और खून सने मुंह वाले भेड़िये। नदी-नालों और खेतों में झुंड
Read Moreताओं का माफी मांगना, वोट की खातिर जनता के आगे नतमस्तक हो जाना, खुद को निरीह और वक्त का मारा बता कर रोना और सहानुभूति लेना आम बात है... लेकिन जब कोई 'सर्वशक्तिशाली विश्वगुरु' या परालौकिक प्राणी की जुबान पर माफी जैसा शब्द आ जाए तो सोचिए वह किस मानसिक द्वंद्व और मजबूरी का शिकार होगा.. जिसके अहंकार की मिसालें दी जाती हों, जिसे ईश्वर का अवतार साबित किया जाता रहा हो, वह गांधी जी बन जाए, उसके भीतर
Read Moreदलबदल और वैचारिक भटकाव के इस ज़माने में आप किसी पर भरोसा नहीं कर सकते... वैसे भी सत्ता और फायदेमंद राजनीति का स्वाद जिसे लगा, उसके लिए विचारधारा का कोई मतलब नहीं रह जाता... घर घर में यही हालत हो गई है... न कोई नैतिकता, न कोई ईमान, लेकिन यह खेल दिलचस्प है अगर आप इसे कुछ इस नज़रिये से देखें तब... वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार अनिल त्रिवेदी का ताज़ा व्यंग्य..
Read Moreचुनाव निपट गए। कुछ जीत गए और कई हार गए। कई जीतने के लिए चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए। कुछ हारने के लिए मैदान में उतरे थे, पर विजयी हो गए। कई अपनी हार पर अचंभित हैं, कुछ अपनी जीत से भौचक्के। कुछ दो महीने बाद भी मिठाई बांट रहे हैं, कुछ अभी तक घुटनों में मुंह छिपाए बैठे हैं। जनता ने जिसे चाहा उसे धकेलकर संसद के भीतर भेज दिया। बाकी को बाहर ही रोक लिया, कहा कि तुम इस बार अंदर जाने के लायक नहीं हो। फ
Read Moreमैं सड़क का एक अच्छा और प्यारा सा गड्ढा हूं। सड़क पर गड्ढे तो और भी हैं। सड़क है तो गड्ढे भी होंगे, लेकिन मैं सबसे थोड़ा अलग दिखता हूं। मेरा दायरा अन्य गड्ढों से विस्तृत है। गहराई भी कुछ ज्यादा है। मैं सड़क के एकदम बीचोबीच हूं, इसलिए आने-जाने वालों का सबसे ज्यादा प्यार मुझे ही मिलता है। साइकिल-बाइक वाले अक्सर मुझे दंडवत करते हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ियां भी मेरे पास आते ही नरम पड़ जाती हैं औ
Read Moreसंसदीय आचरण पर एक निबंध लिखिए। इस प्रश्न के उत्तर में एक छात्र ने जो लिखा वह इस प्रकार है- संसद में माननीय सभापति की मौजूदगी में सभी माननीय सदस्य जो सम्माननीय आचरण करते हैं उसे संसदीय आचरण कहते हैं। माननीय सदस्यों को जनता ही संसद में भेजती है। चुनाव से पहले हर मतदाता उनके लिए सम्मानित होता है लेकिन सांसद बनते ही सबसे पहले वे खुद माननीय हो जाते हैं।
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