नेहरू जी ने शन्नो खुराना का ओपेरा देखने के लिए विदेशी शिष्टमंडल से मुलाक़ात रद्द कर दी
नई दिल्ली 16 फरवरी। हिंदी में पहली ओपेरा करनेवाली पद्मभूषण से सम्मानित प्रख्यात शास्त्रीय गायिका शन्नो खुराना का ओपेरा जब साठ के दशक में दिल्ली में हो रहा था तब तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू उसे देखने आए थे, वे आइफेक्स में आधे घण्टे तक उसे देखने आए थे लेकिन वह ओपेरा उन्हें इतना पसंद आया कि वे उसे पूरा देखना चाहते थे और इसके लिए उन्होंने विदेश से आये नेताओं के साथ अपनी अपॉइंटमेंट रद्द कर दी।
यह जानकारी प्रसिद्ध नाट्य समीक्षक दीवान सिंह बजेली ने भारंगम के समापन पर शन्नो जी पर एक पुस्तक के विमोचन समारोह में की। पुस्तक का प्रकाशन राष्ट्रीय नाट्य मंडल ने किया है। समारोह में श्रीमती खुराना मौजूद थीं। पुस्तक को लिखा है दिल्ली विश्विद्यालय में संगीत की शिक्षिका एवम चर्चित शास्त्रीय तथा लोक गायिका सुष्मिता झा ने।
बजेली जी ने पुस्तक के लोकार्पण के बाद अपने विचार व्यक्त करते हुए शन्नो खुराना के योगदान की चर्चा की और बताया कि एक बार दिल्ली में आइफैक्स में शन्नो जी शीला भाटिया के साथ ओपेरा कर रही थीं। उसे देखने मै भी गया था। तब युवा था। पंडित नेहरू उसे देखने आये थे। बताया गया कि वे आधे घण्टे सभागार में रहेंगे और ओपेरा देखेंगे। क्योंकि उनक़ा एक अपॉइंटमेंट इंटरनेशनल डेलीगेशन के साथ था।लेकिन उन्हें वो ओपेरा इतना पसंद आया कि वे अपना अपॉइंटमेंट कैंसिल कर उसे अंत तक देखते रहे। ऐसे गुणी और कला प्रेमी प्रधानमंत्री थे।
शन्नो खुराना ने शीला भाटिया के हीर राँझा ओपेरा में पहली बार काम किया था। उन्होंने भगवती चरण वर्मा के प्रसिद्ध उपन्यास चित्रलेखा पर हिंदी में पहला ओपेरा किया था। उन्होंने कहा कि उर्दू का पहला ओपेरा इंद्र सभा था जो 1853 में लिखा गया था।उस पर फ़िल्म भी बनी थी।वैसे हिंदी में कोई ओपेरा हुआ नहीं जैसे विदेशों में होता था।शन्नो जी ने ओपेरा में शानदार काम किया और संगीत की रचना की जो शास्त्रीय रागों पर आधारित थीं। मोहन उप्रेती ने भी सांगीतिक नाट्य रचना की थी पर वह भी फुल फॉर्म का ओपेरा नहीं था।
श्रीमती सुष्मिता झा ने कहा कि यह पुस्तक मैंने लिखी नहीं बल्कि गुरु माँ शन्नो जी ने ही एक तरह से लिखी है। उनसे जो जानकारी मिली उसे मैंने 5 अध्याय में लिखा है। पहले अध्याय में उनका जीवन परिचय है उनके व्यक्तिव की विशेषता, दूसरे में उनके संगीत की विभिन्न शैलियाँ स्वरलिपियाँ, तीसरे में उनकी सांगीतिक विरासत बहुमुखी गायन शैली ,लोक संगीत में उनके योगदान और उनकी पुस्तक की चर्चा है तथा पांचवे में उनके 5 ओपेरा हीर रांझा, सोहनी महिवाल, जहांआरा, चित्रलेखा और सुंदरी की चर्चा है।
शन्नो जी का जन्म राजस्थान में हुआ था जब उनके पति का तबादला लाहौर हो गया तो शन्नो जी ने 1945 में लाहौर रेडियो से गायन शुरू किया
विभाजन के बाद उनके डॉक्टर पति दिल्ली आ गए और यहीं एक क्लिनिक खोला जिसमें तत्कालीन शिक्षा मंत्री हुमायूं कबीर भी एक मरीज के रूप में आते थे। संगीत नाटक अकादमी की पहली सचिव निर्मला जोशी के पिता भी आते थे और निर्मला जी ने शन्नो जी को संगीत भारती में छात्रों को पढ़ाने ने का काम दिया जहां बिरजू महाराज के पिता अच्छन महाराज शिक्षक थे और कपिला वात्स्यायन भी उनसे नृत्य सीखती थीं।
2006 में राष्ट्रपति डॉक्टर कलाम ने उन्हें पद्मभूषण प्रदान किया था। वे संगीत अकादमी की फेलो भी बनी।
भारंगम से अरविंद कुमार की रिपोर्ट
Posted Date:
February 17, 2025
10:44 am
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