नहीं रहे मनुष्यता के लेखक मनु शर्मा
♦ आलोक श्रीवास्तव
साल 2005, जुलाई की कोई तारीख़. भोपाल की प्रिंट पत्रकारिता से सीधे दिल्ली आया था. वो भी टीवी पत्रकारिता में. जीवन में इस बड़े बदलाव का श्रेय वरिष्ठ पत्रकार और अग्रज हेमंत शर्मा जी को जाता है. वही लाए थे भोपाल से दिल्ली. विदिशा जैसे छोटे से नगर का युवा पहली बार दिल्ली में न्यूज़ टीवी चैनल का भव्य और सुसज्जित दफ़्तर देख रहा था.
कुछ ही देर में रजत शर्मा जी के सामने था. जिन्हें टीवी पर देखा था. वे अब आंखों के सामने थे. साक्षात्कार अपेक्षा से अच्छा हुआ. रजत जी ने आर्टिकल और रिपोर्टिंग की कटिंग्स बहुत ध्यान से पढ़ीं. मेरी लिखी एक-एक कॉपी को ग़ौर से देखा. कुछ देर बाद उनकी आंखों की आश्वस्ति भांप कर हेमंत जी मुस्कुराए और बोले- ”ये ग़ज़लें भी अच्छी कहते हैं. ख़ासकर रिश्तों पर. इन्हें रिश्तों का कवि भी कहा जाता है.” मैं हतप्रभ था ! मित्र पारितोष चतुर्वेदी के ज़रिए हेमंत जी मुझे जानते थे. लेकिन इस पहचान से कैसे ? यह मेरे लिए एक प्रसन्नता भरी जिज्ञासा थी. पारितोष ने मेरी साहित्यिक पहचान जान-बूझ कर छुपाई थी. उसने कहा था, और सही कहा था- ‘’न्यूज़ चैनल में कवियों और लेखकों को बहुत गंभीरता से नहीं लिया जाता. इसीलिए आप अपना यह प्रोफ़ाइल ज़्यादा मत जताइएगा.’’
रजत जी से मुलाक़ात के बाद मुझे इंडिया टीवी की बड़ी-सी लॉबी में बैठा दिया गया. थोड़ी देर बाद हेमंत जी आए और बोले – “आप जाइएगा नहीं. किसी से मिलवाना है आपको.” मैंने सहमति में सिर हिलाया और फिर उसी असहज मुद्रा में बैठ गया. क़रीब आधे घंटे बाद मैं हेमंत जी की कार में था, जिसे वे ख़ुद ड्राइव कर रहे थे. कार सीधे नोएडा सेक्टर 41 के दो मंज़िला मकान ‘आसावरी’ के सामने रुकी. यह हेमंत जी का घर है. मैं कार से उतर कर हेमंत जी के पीछे-पीछे घर की सीढ़िया चढ़ने लगा. सीढ़ियां एक बड़े से ड्राइंग रूम के सामने जाकर रुकीं. दायें हाथ की ओर घूमा तो देखा- फर वाली टोपी लगाए, सोफ़े पर एक बुज़ुर्ग बैठे हैं. मेरी तरफ़ उनकी पीठ थी. मैं घूम कर जैसे ही सामने पहुंचा, दंग रह गया. वे मनु शर्मा थे. एकाएक मेरी स्मृतियों में ‘राणा सांगा’, ‘छत्रपति’ और ‘मरीचिका’ मुस्कुराने लगे. ‘दौपदी’, ‘द्रोण’, ‘कर्ण’ और ‘कृष्ण’ आये और कांधे पर हाथ रख कर परिचय कराने लगे- यही हैं हमारी आत्मकथा के लेखक – मनु शर्मा.
पल भर में मुझे हेमंत जी के साहित्यिक-मर्म और असीम जानकारियों से भरी उनकी शख़्सियत के साथ-साथ, पत्रकार हेमंत शर्मा की शानदार तर्बीयत का स्कूल दिखाई देने लगा. मैंने मनु जी के पांव छुए. अपने चिरपरिचित अंदाज़ में हेमंत जी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा और मुस्कुराकर बोले – ”बाबूजी ये आलोक श्रीवास्तव हैं. इंडिया टीवी ज्वाइन करने वाले हैं.’’ अब मुझे फिर एक सुखद आश्चर्य से भर जाना था, सो मनु जी की ओर से मेरे लिए जैसे किसी सम्मान-सा जुमला उछला – ”अम्मा और बाबूजी वाले आलोक ?”
मन बच्चे की तरह उछल पड़ा. अपने भाग्य पर इतराना लाज़मी था. कैसा अनूठा मंज़र है. मनु शर्मा मेरे सामने बैठे हैं, जिन्हें मैं उनकी कृतियों से जानता हूं और वे मुझे मेरी रचनाओं से. उनके सुपुत्र का हाथ मेरी पीठ पर है. पानियों से भरी अपनी आंखों से मैं हेमंत जी को देखता हूं, कभी मनु जी को निहारता हूं. रजत जी के सामने, मेरे साहित्यिक-परिचय में कहे गए हेमंत जी के एक वाक्य के कितने ही उत्तर मेरे सामने आकर मुस्कुराने लगते हैं. आंखों में ख़ुशी का पानी हिलोरे मारने लगता है. मैं हेमंत जी को देखता हूं. ज़हन में अपना ही शेर गूंजने लगता है-
असर बुज़ुर्गों की नेमतों का, हमारे अंदर से झांकता है,
पुरानी नदियों का मीठा पानी, नए समंदर से झांकता है.
9 अगस्त 2005, विधिवत इंडिया टीवी ज्वाइन कर लिया. दिल्ली आ गया. ‘आसावरी’ के पास ही घर मिल गया. वीणा भाभी की आत्मीयता ऐसी मिली कि ‘आसावरी’ भी अपना घर ही लगने लगा. हेमंत जी बॉस थे. परदेश में बड़े भाई बन गए. हिंदी के एक बड़े लेखक ‘मनु शर्मा जी’ मेरे लिए ‘बाबूजी’ हो गये. अपने स्वर्गवासी पिता जैसी ठाठ-बाट वाली छवि उनमें देख कर संतोष पाने लगा. वे बनारस से जब भी दिल्ली आते, हेमंत जी मुझे घर बुला लेते. वे मेरी ग़ज़लें सुनते, दुआ देते. मैं उनके लिखे हुए पर बात करता, मुस्कुरा देते. आज भी बाबूजी का बनारस से दिल्ली आना, हम जैसों के लिए किसी साहित्यिक-उत्वस से कम नहीं होता.
17 जनवरी 2008, नामवर सिंह जी के हाथों ‘आमीन’ के लिए मुंबई में हेमंत स्मृति कविता सम्मान मिला. यह सम्मान कथाकार संतोष श्रीवास्तव के यशस्वी कवि पुत्र हेमंत की स्मृति में दिया जाता है. इस सम्मान के बाद हेमंत जी ने विनोद में कहा मेरे नाम से ‘आमीन’ को पहला सम्मान मिला है. उत्सव भी मैं ही करूंगा. दूसरे ही दिन, बाबूजी की अघोषित अध्यक्षता में ‘आसावरी’ में महफ़िल जमी. जिसे नामवर जी ‘संध्या वंदन’ कहते रहे हैं. एक अविस्मरणीय ‘संध्या वंदन’ जिसमें नामवर जी, केदार जी, प्रभाष जोशी जी, देवेन्द्र द्विवेदी जी, नवीन जी, रोहित सूरी सब जुटे. बाबूजी और इन सबके समक्ष लंबा ग़ज़ल पाठ हुआ. मेरे लिए वो संध्या आज भी वंदनीय और अविस्मरणीय है.
चंद मिसरों में ग़ज़लें कहने वाला मेरा कमज़ोर सा शायर मनु जी को सोचते हुए अक्सर कई सवालों में घिर जाता. साहित्य की हर विधा में लिखना किसी एक रचनाकार के लिए आख़िर कैसे संभव हो पाता है ? किसी कवि की कविताएं या किसी रचनाकार का रचना-संसार उसके समय का दस्तावेज़ कैसे बन पाता है ? कैसे किसी लेखक का एक उपन्यास ‘कृष्ण की आत्मकथा’ आठ खंडों में प्रकाशित होकर, भारतीय भाषाओं का विशालतम उपन्यास कहलाता है ? तभी एक ठोस उत्तर हाथ आता है- ‘निरंतर सहज भाव से लिखते और रचते रहने की ज़िद से ही कोई लेखक मनु शर्मा बन पाता है.’
भाषाई सहजता से रचनात्मक-परिचय का जो संसार रचा जाता है. वो रचनाकार के बाद भी समय के साथ आगे जाता है. सहज अभिव्यक्ति का यह सरल-लहजा मनु जी का परिचय कहलाता है. उनकी पुस्तक ‘गांधी लौटे’ में प्रसिद्ध गांधी वादी चिंतक निर्मला देशपांडे से लिखने को बाध्य कराता है- “अध्ययन और आस्था के साथ आकर्षक शैली में लिखी गई यह पुस्तक, जब हमारे जैसे गांधी-सेवकों के पास पहुंचती है तो विशेष प्रसन्नता होती है. मनु शर्मा जी ने इसमें ‘फ़ैंटेसी’ शब्द का इस्तेमाल किया है, इस शब्द का प्रयोग इस पुस्तक को और रुचिकर बनाता है. जिसके कारण गंभीर दार्शनिक विषय भी सहज पठनीय बन जाता है.’’
‘गंभीर दार्शनिक विषय भी सहज पठनीय बन जाता है’ समकालीन हिंदी साहित्य में यही ‘Missing’ कहलाता है. जो लेखक इस खोये हुए को पाठकों तक पहुंचाता है, वही लेखक पाठकों का प्रिय बन जाता है. मनु जी इसी खोये हुए को पकड़ने में सफल हो पाए हैं, इसीलिए सहजता से इतना कुछ कह पाए हैं. मनुष्यता रच पाये हैं.
‘’मनुष्य ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है. उसके मन में सद् और असद् इच्छाएं दोनों हैं. भिन्न भिन्न मनुष्यों में इनका अनुपात, भिन्न-भिन्न होता है. जब असद् इच्छाएं प्रभावी होती हैं, तब मनुष्य के कर्म दूषित होते हैं. जब उसकी सदिच्छाएं जागती हैं तब वह सत्कर्म की ओर प्रेरित होता है. इस लिए मनुष्य अपने कर्मों से शैतान और देवता दोनों हो सकता है.’’ मनु जी अपने अंतर्मन से यह मानते हैं. तभी वे मनुष्यता को रच पाते हैं. और हम उनके नज़दीक और नज़दीक़ आ पाते हैं.
(आलोक श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से)
Posted Date:November 11, 2017
11:57 pm Tags: Manu Sharma, Aalok Shrivastava, Aalok Srivastava