‘बारादरी’ हिंदुस्तानी तहजीब की नई इबारत लिख रही है: इकबाल अशहर

कतरा कतरा कम होता हूं इस मौसम से यारी की, जिस्म पिघल कर बह जाता है कुछ कुछ रोज पसीने में: नबील

बारादरी में गूंजे शेर, गीत, दोहों पर देर तक झूमे श्रोता

गाजियाबाद। “बारादरी” की सदारत करते हुए मशहूर शायर इकबाल अशहर ने कहा कि बारादरी हिंदुस्तानी संस्कृति की नई इबारत लिख रही है। अपने अशआर पर जमकर दाद बटोरते हुए उन्होंने फरमाया “हमको हमारे सब्र का खूब सिला दिया गया, यानी दवा दी न गई दर्द बढ़ा दिया गया। उनकी मुराद है यही खत्म न हो ये तीरगी, जिसने जरा बढ़ा दी लौ, उसको बुझा दिया गया। अहल ए सितम को रात फिर दावत ए रक्स दी गई, और बराए रोशनी शहर जला दिया गया।” उनका शेर “न जाने कितने चिरागों को मिल गई शोहरत एक आफताब के बेवक्त डूब जाने” भी खूब सराहा गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि कतर से आए मशहूर शायर अजीज नबील ने कहा कि बारादरी हिंदुस्तानी अदब की खूबसूरत तस्वीर होने के साथ-साथ रिश्तों की बारादरी भी है।


नेहरू नगर स्थित सिल्वर लाइन प्रेस्टीज स्कूल में आयोजित बारादरी का आगाज आशीष मित्तल की सरस्वती वंदना से हुआ। श्री नबील के शेर “कोई चिराग मेरी रूह में उतर गया, मैं उससे मिलते हुए रोशनी से भर गया। भेद भरी आवाजों का एक शोर भरा है सीने में, खुलकर सांस नहीं लेने की शर्त है गोया जीने में। पत्ते शाख से गिरते देखे तो एकदम याद आया है, मुझसे होकर गुजरे थे तुम इक दिन इसी महीने में। कतरा कतरा कम होता हूं इस मौसम से यारी की, जिस्म पिघल कर बह जाता है कुछ कुछ रोज पसीने में” भी भरपूर साराहे गए। बारादरी जीवन पर्यन्त साहित्य साधना सम्मान से अलंकृत सोमदत्त शर्मा के दोहे “रची रंगोली नेह की, आंगन उतरा चांद, मन की मुरली गूंजती जैसे अनहद नाद”। “भुजा उठा कर प्रण किया था जब तुमने राम, कलयुग तक बढ़ जाएगा किसे पता था काम” भी खूब साराहे गए। बारादरी विशिष्ट सृजन सम्मान से अलंकृत डॉ. वीना मित्तल ने कहा “कभी तकलीफ़ देता है। आकाश से बेसबब गिरता पानी, ताल पोखर और नदियों का सिमटता पानी। मगर हद से ज़्यादा तकलीफ़ देता है वीना, इंसान की आंखों से उतरता पानी।” बारादरी विशिष्ट सृजन सम्मान से अलंकृत ईश्वर सिंह तेवतिया ने पिता पुत्र के संबंधों पर मार्मिक कविता “काश देख पाता कुछ पहले, जो दिखलाई आज दिया है, साथ साथ चल लेता उसके, जिसने ये सर्वस्व दिया है, मेरी पीड़ा भी कम होती, उसको भी कुछ राहत मिलती, उसको भी कुछ सुख मिल जाता, जिससे मैंने जन्म लिया है, यही व्यथा है आज पिता की, भूल चुके हम रीत पुरानी, रोम रोम अब सुना रहा है, घोर उपेक्ष‍ित एक कहानी” पढ़ कर सभी का दिल जीत लिया।


संस्था के अध्यक्ष गोविंद गुलशन के शेर “किस्मत जब उन्वान बदलने लगती है, किश्ती रेगिस्तान में चलने लगती है। दौर ए हाजिर में दीवानगी ठीक नहीं, दुनिया पागल मान के चलने लगती है” और “निगाह उससे मिली एक पल के लिए, मैं एक पल को जिया और जी के मर भी गया” भी सराहे गए। संस्थापिका डॉ. माला कपूर ‘गौहर’ ने कहा “मंज़रों में समा रहा है कोई, हर तरफ़ मुस्कुरा रहा है कोई। फूल ख़ुशबू सितारे और जुगनू, आंसुओं से बना रहा है कोई। मेरे जोड़े में टांकने के लिए, चांद तारे बना रहा है कोई।” प्रसिद्ध शायर मासूम गाजियाबादी के शेर “कहीं भाषा कहीं कुर्सी के झगड़े, वतन की सरहदें हैं मुश्किलों में। दिवाली ईद जो मिलकर माना लें, कहां इतनी जगह है अब दिलों में। उसी को मिलती है मासूम शौहरत, जो रुसवा हो चुका हो महफ़िलों में” भी पसंद किए गए। अखिलेश श्रीवास्तव ‘चमन’ के अशआर
“अगर जो साथ-साथ आन-बान ले के चलो, हर एक वक्त हथेली पे जान ले के चलो। कदम-कदम यहां शिनाख्त होने वाली है, तिलक, टोपी या क्रास इक निशान ले के चलो। बचेगा कुछ भी नहीं साथ आखिरी दम पे, सफर में लाख तुम साजो-सामान ले के चलो” भी सराहे गए।
असलम राशिद ने फरमाया “फिर तो आदत में आ ही जाएगा, पहला दुख ही तो आखिरी दुख है। दर्द दिल से बदन में फैल गया, तेरा दुख कितना बरकती दुख है।” उर्वशी अग्रवाल ‘उर्वी’ ने कहा “तुम्हारी ओर आते वक्त फूलों की तवक्को थी, हमारी राह में आए बारात पत्थर के। ये सच है कि देवता बन जाता है दिल से तराशो तो, मगर फूलों से बढ़ कर तो नहीं बारात पत्थर के।”
शुभ्रा पालीवाल को उनके गीत “है कठिन ये राह जिस पर तुम चलाना चाहते हो, छा रहा मन में अन्धेरा तुम मिटाना चाहते हो” एवं खुश्बू सक्सेना के शेर “कल शाम ही तो उस से मिली थी मिरी नज़र, शिद्दत मिरे ख़ुमार की उस तक पहुंच गई। ख़ुशबू हमारे प्यार की उस तक पहुंच गई, तस्वीर ए’तिबार की उस तक पहुंच गई” पर पूरे सदन की बधाई मिली। कीर्ति रतन ने कहा “नज़र बचाकर निकल रहा है वो तर्के-तअल्लुक मुझी से करके, इसी से ज़ाहिर है दूरियांं हैं मगर अदावत नहीं हुई है।” मंजू ‘मन’ की कविता ‘बेटियां’ और आशीष मित्तल की कविता “क्या मैं पढ़ने के लायक हूं’ भी भरपूर सराही गई।
कार्यक्रम का संचालन करते हुए तरुणा मिश्रा ने कहा “ग़ुबार माज़ी का कम जो होगा तो हाल देखूंगी इब्तिदा से। गुज़र रही हैं किसी की नज़रें अभी मेरे ग़म की इंतेहा से। क़याम करती हैं मेरे घर में, उदास रातें, तुम्हारी यादें, किसी का आना, किसी का रुकना, किसी का जाना, मेरी बला से।” इसके अलावा डॉ. तारा गुप्ता, अनिमेष शर्मा ‘आतिश’, डॉ. नरेंद्र शर्मा, इंद्रजीत सुकुमार, प्रदीप भट्ट, नीलोफर नूर, तुलिका सेठ, वागीश शर्मा, संजीव शर्मा, राजीव कामिल, जगदीश पंकज, मनोज शाश्वत, संजीव नादान व दीपक श्रीवास्तव ‘नीलपदम’ आदि की रचनाएं भी सराही गईं। इस अवसर पर सुभाष चंदर, आलोक यात्री, पंडित सत्य नारायण शर्मा, शकील अहमद, वीरेन्द्र सिंह राठौर, अक्षयवरनाथ श्रीवास्तव, कपिल खंडेलवाल, कुलदीप, चंद्रप्रकाश, अंकित तलवार, उत्कर्ष गर्ग, शिव कुमार, अजय मित्तल, नौमिता सिंह, शशिकांत भारद्वाज, अमन जैन, बिलाल अशहर सहित बड़ी संख्या में श्रोता मौजूद थे।

Posted Date:

December 9, 2024

11:15 pm Tags: , , ,

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