केन्द्रीय संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने कहा है कि बेटियों को आगे बढ़ाने, उन्हें सम्मान दिलाने और आत्म निर्भर बनाने के लिए कला और संस्कृति सबसे बेहतरीन माध्यम है। अगर देश भर के संस्कृतिकर्मी, चिकित्सक और समाजसेवी संस्थाएं मिलकर काम करें तो प्रधानमंत्री के बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ अभियान की कामयाबी में कोई संदेह नहीं है। इस दिशा में बेटी महोत्
आखिर हमें बार बार सबको ये एहसास दिलाने की ज़रूरत क्यों पड़ती है कि बेटियां हमारी और पूरे देश की गौरव हैं। बेटियों को लेकर समाज में जो परंपरागत सोच है और उन्हें हाशिए पर रखने की जो मानसिकता है, उसे बदलने की कारगर कोशिशें शुरू हो चुकी है। आज़ादी के 70 साल बाद अब देश नई करवट ले रहा है और बेटियों को मुख्य धारा में लाने के साथ साथ उन्हें बराबरी का हक दिलाने की दिशा
भारतीय संस्कृति के इंद्रधनुषी रंग देखना हो तो दिल्ली के इंडिया गेट आइए। यहां राजपथ के लॉन्स में देश के हर राज्यों की कला और संस्कृति के अलावा वहां के स्वादिष्ट व्यंजनों का लुत्फ उठाया जा सकता है। संस्कृति मंत्रालय और पर्यटन मंत्रालय की ओर से आयोजित भारत पर्व में आपको 17 राज्यों के थीम
नई दिल्ली। मशहूर कवि और पत्रकार नीलाभ अश्क का संक्षिप्त बीमारी के बाद शनिवार को निधन हो गया। वह 70 साल के थे। नीलाभ का जन्म 16 अगस्त 1945 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता उपेंद्र नाथ अश्क हिंदी मशहूर लेखक थे। कई चर्चित कृतियों का अनुवाद भी किया। कुछ ही दिन पहले नीलाभ के समकालीन रहे कवि पंकज सिंह ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया था। नीलाभ की मशहूर काव्य
नई दिल्ली। मशहूर कवि और पत्रकार नीलाभ अश्क का संक्षिप्त बीमारी के बाद शनिवार को निधन हो गया। वह 70 साल के थे। नीलाभ का जन्म 16 अगस्त 1945 को मुंबई में हुआ था। उनके पिता उपेंद्र नाथ अश्क हिंदी मशहूर लेखक थे। कई चर्चित कृतियों का अनुवाद भी किया। कुछ ही दिन पहले नीलाभ के समकालीन रहे कवि पंकज सिंह ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया था। नी
दिनेश सिंह
इलाहाबाद की एक बुजुर्ग महिला मिसाल हैं उन तमाम महिलाओं के लिए जो अपनों से मिले जख्म के चलते या तो टूट जाती हैं या फिर जिन्दगी से हार मान लेती हैं| सीनियर साइंटिस्ट की पत्नी और विदेशों में लाखों की नौकरी कर रहे तीन तीन बेटों ने सत्तर बरस की अपनी इस बुजुर्ग माँ को बेवजह जब घर से बाहर कर सड़क का रास्ता दिखा दिया तब उन्होंने अपने कंपकंपाते बूढ़े हाथों से अपनी जिन्दगी की इब
उर्दू अदब की सबसे पुरानी विरासत को बचाने की बड़ी पहल
इलाहाबाद : उर्दू अदब की तमाम अनमोल विरासत आज मुल्क के कई तंजीमो में बिखरी पड़ी है जो बदइन्तज़ामी की वजह से मिटने की कगार पर है| आजादी के पहले उर्दू और हिन्दी अदब की सबसे पुरानी तंजीम हिन्दुस्तानी एकेडमी ने अपनी उर्दू अदब को बचाने के लिए एक बड़ी पहल की है| 90 बरस की हो गई हिन्दुस्तानी एकेडमी में मौजूद उर्दू अदब की 5 हजार से अधिक दुर्लभ ग्रंथों और अभिलेखों को डिजिटल स्वरूप प्रदान किय
इलाहाबाद :
जिस मुल्क में हम रहते है उसमें 5 करोड़ 15 लाख 36 हजार 111 लोग उर्दू के जानकार हैं जो रोजाना जिन्दगी में उर्दू बोलते या लिखते हैं| इस मुल्क के 6 सूबों में उर्दू को सरकारी जुबान का दर्जा भी दे दिया गया है। बावजूद इसके आज मुल्क में इस भाषा का सूरत-ए-हाल उर्दू पसंद लोगों की आँखें खोलने वाला है| इस बात की गुफ्तगू करने के लिए इलाहबाद में जब मुल्क भर के सभी सूबों से आये उर्दू के नुमाइं
हिन्दी, उर्दू और संस्कृत के अच्छे दिन लाएगी हिन्दुस्तानी एकेडमी
इलाहाबाद: उत्तर भारत के रचनाकारों की रचनाधर्मिता को प्रोत्साहित करने के लिए स्थापित की गई यूपी की हिन्दुस्तानी एकेडमी अदब से जुड़े रचनाकारों के लिए अब अच्छे दिन लाने की योजना बना रही है| हिन्दुस्तानी एकेडमी ने ऐलान किया है कि हिन्दी और उर्दू के रचनाकारों को उनके साहित्यिक योगदान के लिए सम्मानित और पुरस्कृत करने की बंद हो चुकी परम्परा अब 18 बरसों के बाद फिर से शुरू की जायेगी| ए
इलाहाबाद: देश के एक कोने में जहां एक दलित छात्र की खुदकुशी पर सियासी विमर्श का ज्वारभाटा अपने चरम पर है वहीं शहर में एक शाम दलितों के दर्द को बयान करने वाली प्रेमचंद की अमर रचना 'कफन' के नौटंकी शैली में मंचन के नाम रही| इलाहाबाद के उत्तर मध्य सांस्कृतिक केंद्र का जो ऑडिटोरियम बड़ी हस्तियों की मौजूदगी में भी भर नहीं पाता वह 'कफ़न' की प्रस्तुति के दौरान खचाखच भरा था| कफ़न के नौटंकी स