‘दिनेश चंद्र गर्ग ने अटल जी को भेजी थी गाय, गाजियाबाद में हाथी की कराई थी सवारी ‘
‘अटल जी बेशक अब हमारे बीच न रहे हों, लेकिन उनकी यादें हर शहर के तमाम लोगों के दिलों में बसी हैं। वो जहां भी जाते, उस जगह के लोगों से एक आत्मीय रिश्ता जोड़ लेते थे। अपने लंबे राजनीतिक और साहित्यिक जीवन में अटल जी का गाजियाबाद से भी ऐसा ही लगाव था।
गाजियाबाद के मशहूर लेखक और पत्रकार गोपाल कृष्ण कौल से अटल जी के बहुत गहरे रिश्ते थे। एक दिन कौल साहब ने बताया कि दोपहर को शिब्बनपुरा स्थित निवास पर विश्राम कर रहा था कि सूचना आई कि अटल जी पहुँच रहे हैं। कौल साहब के घर पहुंच कर अटल जी देर तक उनसे साहित्यिक चर्चा करते रहे।
राजनैतिक दृष्टि से जितना मैंने देखा तेलूराम कम्बोज जी के अटल जी से बड़े मधुर सम्बन्ध थे। मैं स्वयं उनके साथ कई बार अटल जी से मिला। मुझे याद है कि मुंबई में भारतीय जनता पार्टी का राष्ट्रीय सम्मलेन था। तेलूराम जी अपने अखबार प्रलयंकर की प्रतियां लेकर गए थे। जिसके मुखपृष्ठ पर अटल जी का बड़ा सा चित्र लगा था।अटल जी ने तेलूराम जी को देखते ही नाम लेकर कहा “तेलूराम जी, क्या छाप लाये हैं प्रलयंकर में”। अटल जी अखबार में अपना चित्र देखकर प्रसन्न हुए थे। कम्बोज जी ने बताया कि उनके अखबार का नाम भी अटल जी ने ही सुझाया था।
जहाँ तक मुझे याद है मनमोहन वैद्य जी और उनके अनुज श्री कृष्ण मित्र के भी पुराने जनसंघी होने के नाते अटलजी से मधुर सम्बन्ध थे। लेकिन मनमोहन वैद्य भारतीय जनता पार्टी बनने और उसमें आरिफ बेग व सिकंदर बख्त को शामिल किए जाने से अटल जी से ख़फा हो गए थे। गाजियाबाद में जनसंघ की राजनीति के पुरोधा दिनेश चंद गर्ग की भी अटल जी से निकट के रिश्ते थे। दिनेश जी ने अपनी अध्यक्षता के कार्यकाल में अटल जी का एक भव्य कार्यक्रम कराया था। जिसमे जी.टी. रोड से दुजाना गाँव तक अटल जी को हाथी पर बिठाकर ले जाया गया था।एक बार दिनेश जी को गाय पालने का शौक चर्राया। वे अक्सर गाय के दूध की तारीफ किया करते। एक दिन श्री गर्ग ने निश्चय किया कि अटल जी अकेले रहते हैं। उनके खाने पीने की व्यवस्था भी सरकारी स्तर की है। क्यों न अटल जी को एक गाय भेंट की जाए। जिस से उनकी सेहत दुरुस्त रहे। फिर क्या था? दिनेश जी ने एक बेहतरीन गाय खरीद कर अटल जी के दिल्ली निवास पहुंचा दी।
तीन या चार दिन बाद अटल जी का फोन आया “भैया मुझे पूरे दिन में आधा किलो दूध चाहिए होता है, इस बला को आप अपने पास वापस बुला लीजिये”। तब दिनेश जी गाय वापस ले गए। शायद कटु स्मरण सुनाना नहीं चाहिए किन्तु दिनेश जी के राजनैतिक जीवन में एक ऐसा भी दौर आया था जब उन्हें लगा कि अटल जी ने उनके साथ न्याय नहीं किया।
खैर…बलदेव राज शर्मा की बेटी की शादी में मुझे ही अटल जी को लाने दिल्ली भेजा गया था। जब मैं दिल्ली उनके घर पहुंचा तो वे रबर की चप्पलों में बरामदे में घूम रहे थे। उन्होंने स्वयं दरवाजा खोला। मैंने परिचय दिया कि आप को शादी में ले जाने के लिए आया हूँ। जब किराए की कार का पीछे का दरवाजा खोलकर मैंने उन्हें बैठने को कहा तो वे आगे का दरवाजा खोलकर बैठ गए। मैंने कहा आप बहुत वरिष्ठ हैं, आप पीछे बैठिए। तो उन्होंने हँसते हुए कहा “आज आप वरिष्ठ बनकर पीछे बैठिए”। उन दिनों भी वे पूर्व विदेश मंत्री और पार्टी के वरिष्ठतम नेता थे। रास्ते भर वे बातें करते रहे। उन्होंने पूछा “क्या दायित्व है आप के पास”? मैंने बताया “गाजियाबाद भाजपा का महामंत्री हूँ” । मुझे आज भी याद है उन्होंने कहा “अभी नौजवान हो,स्पर्धा और स्थानीय उठापटक में पड़ने के बजाए मेहनत से पार्टी के लिए काम करते रहो”
बालेश्वर त्यागी की छवि अटल जी की निगाह में एक ईमानदार और कर्मठ व्यक्ति की थी। यहां की एक फैक्ट्री स्मिता कंडक्टर्स के कर्मचारी बालेश्वर जी के पास फैक्ट्री गेट पर थाने से धरने की परमीशन दिलवाने के लिए आए। थानेदार को न जाने क्या सूझी उसने बालेश्वर जी के साथ दुर्व्यवहार किया। इसके विरोध में हम सब कार्यकर्ता घंटाघर पर धरने पर बैठ गए। धरने के दूसरे दिन पुलिस ने जबरदस्त लाठीचार्ज किया। जिसमें मुझे भी काफी चोट लगी। सूचना अटल जी के पास पहुँची।अटल जी चार दिन बाद पैदल ही पूरे बाजार से होते हुए घंटाघर उसी स्थान पर पहुंचे जहाँ लाठीचार्ज हुआ था। सिंह गर्जना के साथ उन्होंने कहा “सत्ताधीशों के संकेत पर मेरे कार्यकर्ताओं के साथ अत्याचार करने वाली पुलिस आए और मुझ पर लाठियां चलाए”। उनके इस जयघोष से शहर ही नहीं पूरे देश के कार्यकर्ता का सम्मान और उत्साह कई गुना बढ़ गया था। एक बार बालेश्वर त्यागी को दूसरी बार विधानसभा टिकट के लिए आग्रह करने मैं त्यागी जी के साथ अटल जी के पास गया। अटल जी ने चिरपरिचित अंदाज में कहा “बताइए त्यागी जी कैसे आना हुआ?” बालेश्वर जी ने कहा “जी मैं अपने टिकट के लिए अनुरोध करने आया हूँ “। अटल जी ने कहा “अरे आप को भी टिकट मांगना पड़ेगा क्या? जाइए चुनाव की तैयारी कीजिए।” हम दोनों हर्षोल्लास के साथ दिल्ली से वापस लौटे थे।’
(वरिष्ठ भाजपा नेता रविंद्र कांत त्यागी से आलोक यात्री की बातचीत पर आधारित)
Posted Date:
August 16, 2018
10:26 pm
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