इफको का श्रीलाल शुक्ल स्मृति सम्मान चंद्र किशोर जायसवाल को, रेनू यादव को श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको युवा साहित्य सम्मान
ज़मीन से जुड़े और ग्रामीण जीवन के साथ साथ देश को बेहद करीब से समझने वाले वयोवृद्ध कहानीकार और साहित्यकार चंद्र किशोर जायसवाल का मानना है कि दिल्ली में साहित्य के बड़े बड़े मठाधीश रहते हैं और वो नई प्रतिभाओं का अपने हक में इस्तेमाल करते हैं। ऐसे मठाधीशों से प्रतिभाशालियों को कोई फर्क नहीं पड़ता है। उन्होंने नए लेखकों से कहा है कि वे क्लासिक्स पढ़ें, वर्ल्ड क्लासिक्स पढ़ें। वो ये मानकर चलें कि उनके पास जो प्रतिभा है वह किसी समीक्षक की प्रतिभा से बेहतर है। उनका कहना है कि ग्रामीण मानसिकता वाले जो लोग हैं वह डरे हुए रहते हैं, वे शहर से डर जाते हैं, शहर के बड़े बड़े नारों से डर जाते हैं। इस डर से वे अपनी प्रतिभा को भी सामने नहीं ला पाते हैं। अगर वो क्लासिक्स पढ़ेंगे तो उनकी प्रतिभा भी निखरेगी और उनका आत्मविश्वास भी बढ़ेगा।
चंद्र किशोर जायसवाल को दिल्ली के इंडिया हैबीटेट सेंटर में एक भव्य आयोजन के दौरान 2024 का श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको सम्मान दिया गया है। वहीं इसी साल शुरु हुए श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको युवा साहित्य सम्मान सुश्री रेनू यादव को उनके कहानी संग्रह ‘काला सोना’ के लिए दिया गया। इन लेखकों को ये सम्मान जाने माने आलोचक और वयोवृद्ध साहित्यकार प्रोफेसर विश्वनाथ त्रिपाठी ने दिया। पुरस्कार के निर्णायक मंडल के अध्यक्ष थे वरिष्ठ लेखक असगर वजाहत। जबकि निर्णायक मंडल में डॉ अनामिका, प्रियदर्शन, यतीन्द्र मिश्र, डॉ. नलिन विकास और उत्कर्ष शुक्ल शामिल थे।
इस मौके पर विश्वनाथ त्रिपाठी ने दोनों ही कथाकारों की कहानियों और उनके पात्रों की गहराई से चर्चा की। किसानों की कभी न खत्म होने वाली समस्याओं की चर्चा की और कहा कि सत्ता या सियासत कभी नहीं चाहती कि किसानों की समस्याएं खत्म हों, उन्हें उनका हक मिले। डॉ त्रिपाठी ने कहा कि इन कथाकारों का लेखन अत्यंत महत्त्वपूर्ण है और शोधपरक लेखन के जरिए समाज के यथार्थ को मुखरित करने का जो काम चन्द्र किशोर जायसवाल जी ने किया है, वह कहीं और देखने को नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि रेनू यादव में असीम संभावनाएं हैं, अगर ये ऐसे ही सृजनरत रहीं तो बड़े सम्मान की भावी दावेदार बनेंगी।
चन्द्र किशोर जायसवाल का जन्म 15 फरवरी, 1940 को बिहार के मधेपुरा जिले के बिहारीगंज में हुआ। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय, पटना से अर्थशास्त्र में स्नातकोत्तर शिक्षा हासिल की और अरसे तक अध्यापन करने के बाद भागलपुर अभियंत्रणा महाविद्यालय, भागलपुर से प्राध्यापक के रूप में सेवानिवृत्त हुए।
‘गवाह गैरहाजिर’, ‘जीबछ का बेटा बुद्ध’, ‘शीर्षक’, ‘चिरंजीव’, ‘माँ’, ‘दाह’ ‘पलटनिया’, ‘सात फेरे’, ‘मणिग्राम’, ‘भट्ठा’, ‘दुखग्राम’ (उपन्यास); ‘मैं नहिं माखन खायो’, ‘मर गया दीपनाथ’, ‘हिंगवा घाट में पानी रे!’, ‘जंग’, ‘नकबेसर कागा ले भागा’, ‘दुखिया दास कबीर’, ‘किताब में लिखा है’, ‘आघातपुष्प’, ‘तर्पण’, ‘जमीन’, ‘खट्टे नहीं अंगूर’, ‘हम आजाद हो गए!’, ‘प्रतिनिधि कहानियाँ’ (कहानी-संग्रह); ‘शृंगार’, ‘सिंहासन’, ‘चीर-हरण’, ‘रतजगा’, ‘गृह-प्रवेश’, ‘रंग-भंग’ (नाटक); ‘आज कौन दिन है?’, ‘त्राहिमाम’, ‘शिकस्त’, ‘जबान की बन्दिश’ (एकांकी) इनकी प्रमुख कृतियाँ हैं।
आप ‘रामवृक्ष बेनीपुरी सम्मान’ (हजारीबाग), ‘बनारसी प्रसाद भोजपुरी सम्मान’ (आरा), ‘आनन्द सागर कथाक्रम सम्मान’ (लखनऊ), बिहार राष्ट्रभाषा परिषद का ‘साहित्य साधना सम्मान’ (पटना) और बिहार सरकार का जननायक ‘कर्पूरी ठाकुरी सम्मान’ (पटना) से सम्मानित हैं।
इनके उपन्यास ‘गवाह गैरहाजिर’ पर राष्ट्रीय फ़िल्म विकास निगम द्वारा निर्मित फ़िल्म ‘रूई का बोझ’ और कहानी ‘हिंगवा घाट में पानी रे!’ पर दूरदर्शन द्वारा निर्मित फ़िल्में काफी चर्चित रही हैं। ‘रूई का बोझ’ नेशनल फ़िल्म फेस्टिवल पैनोरमा (1998) के लिए चयनित हुई थी और अनेक अन्तराष्ट्रीय फ़िल्म महोत्सवों में प्रदर्शित हो चुकी है।
सुश्री रेनू यादव का जन्म 16 सितम्बर, 1984 को गोरखपुर में हुआ। भारतीय भाषा एवं साहित्य विभाग (हिन्दी), गौतम बुद्ध विश्वविद्यालय में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर कार्यरत रेनू की प्रमुख कृतियां है- ‘महादेवी वर्मा के काव्य में वेदना का मनोविश्लेषण’ (आलोचनात्मक पुस्तक), ‘मैं मुक्त हूँ’ (काव्य-संग्रह), साक्षात्कारों के आईने में – सुधा ओम ढींगरा (संपादित पुस्तक)। मासिक पत्रिका साहित्य नंदिनी में ‘चर्चा के बहाने’ स्तम्भ (कॉलम) प्रकाशित होता है तथा इससे पहले कैनेडा से निकलने वाली पत्रिका हिन्दी चेतना में ‘ओरियानी के नीचे’ नामक स्तम्भ प्रकाशित होता था। स्त्री-विमर्श पर केन्द्रित कहानियाँ, कविताएँ एवं शोधात्मक आलेख आदि विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित ।
रेनू यादव को बहुआयामी सांस्कृतिक संस्था एवं प्रमोद वर्मा स्मृति संस्थान, रायपुर (छत्तीसगढ़) का ‘सृजन श्री’ सम्मान के साथ ही भारतीय दलित साहित्य अकादमी का ‘विरांगना सावित्रीबाई फूले नेशनल फेलोशिप अवार्ड’ भा मिल चुका है।
मूर्धन्य कथाशिल्पी श्रीलाल शुक्ल की स्मृति में वर्ष 2011 में शुरू किया गया यह सम्मान प्रत्येक वर्ष ऐसे हिन्दी लेखक को दिया जाता है जिसकी रचनाओं में मुख्यतः ग्रामीण व कृषि जीवन का चित्रण किया गया हो। इससे पहले यह सम्मान विद्यासागर नौटियाल, शेखर जोशी, संजीव, मिथिलेश्वर, अष्टभुजा शुक्ल, कमलाकांत त्रिपाठी, रामदेव धुरंधर, रामधारी सिंह दिवाकर, महेश कटारे, रणेंद्र, शिवमूर्ति, जयनंदन और मधु कांकरिया को प्रदान किया गया है। इस पुरस्कार के अन्तर्गत सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति पत्र तथा ग्यारह लाख रुपये की राशि का चैक प्रदान किया जाता है। इफको निदेशक मंडल के अनुमोदन से इस वर्ष से शुरू हुए‘श्रीलाल शुक्ल स्मृति इफको युवा साहित्य सम्मान’ के अंतर्गत सम्मानित साहित्यकार को एक प्रतीक चिह्न, प्रशस्ति-पत्र और ढाई लाख रुपये का चेक प्रदान किया गया।
अपने संदेश में इफको के प्रबंध निदेशक डॉ॰ उदय शंकर अवस्थी ने श्री चन्द्र किशोर जायसवाल को बधाई देते हुए कहा कि जायसवाल जी गहरे सामाजिक सरोकारों के रचनाकार हैं। उन्होंने पूर्णिया अंचल और ग्रामीण जीवन के विषयों पर कुशलता के साथ अपनी लेखनी चलाया है। डॉ. अवस्थी ने चन्द्र किशोर जी की रचनाओं का जिक्र करते हुए कहा कि अपने कथा संसार में उन्होंने ग्रमीण परिवेश की जटिलताओं को पकड़ने की कोशिश की है।
सम्मान चयन समिति के अध्यक्ष प्रो असगर वजाहत ने चयन प्रक्रिया के बारे में विस्तार से जानकारी दी। सम्मान चयन समिति सदस्य प्रियदर्शन ने चन्द्र किशोर जायसवाल के लिए व डॉ. अनामिका ने रेनू यादव के लिए प्रशस्ति पाठ किया।
इस अवसर पर रंग विरासत नाट्य मंडली के कलाकारों द्वारा आसिफ़ अली हैदर खान के निर्देशन में श्रीलाल शुक्ल की रचना पर आधारित नाटक ‘राग विराग’ का मंचन किया गया।
कार्यक्रम में इफको की संयुक्त प्रबंध निदेशक श्रीमती रेखा अवस्थी, निदेशक (मानव संसाधन एवं विधि) राकेश कपूर, निदेशक( विपणन) आर.पी सिंह, योगेंद्र कुमार, जितेंद्र तिवारी, डॉ नलिन विकास सहित बड़ी संख्या में साहित्यकार, लेखक, साहित्यप्रेमी और इफको के अधिकारी साहित्यकार, शिक्षक और छात्र शरीक हुए।
Posted Date:
September 30, 2024
5:56 pm Tags: इफको सम्मान, श्रीलाल शुक्ल स्मृति सम्मान, चंद्रकिशोर जायसवाल, रेनू यादव