रंगकर्मियों के खिलाफ तुग़लकी फ़रमान, जबरदस्त विरोध

नई दिल्ली। रंगकर्मियों और नाटक करने वाली संस्थाओं पर शिकंजा कसने की पहले भी कई बार कोशिशें हुईं लेकिन जबरदस्त विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो सका। पिछले कुछ सालों से ये कोशिश नए नए रूपों में सामने आ रही है। दिल्ली में अब ज्यादातर फैसले उप राज्यपाल की ओर से लिए जा रहे हैं। हाल ही में ऐसा ही एक संस्कृतिविरोधी फैसला लिया गया है जिसे लेकर कलाकारों और रंग संस्थाओं में जबरदस्त आक्रोश है। दिल्ली में अब नाटक करने वालों पुलिस से क्लियरेंस सर्टिफिकेट लेना होगा। हर शो के लिए नगर निगम को एक हजार रुपए का शुल्क देना होगा, साथ ही नाट्यकर्मियों को अपने खर्चे पर 18 फीसदी जीएसटी भी देना होगा।

नए आदेश के मुताबिक दिल्ली के किसी भी ऑडिटोरियम में नाटक, संगीत, नृत्य या किसी भी तरह के सांस्कृतिक कार्यक्रम करने से पहले इसके लिए एक नए पोर्टल पर फॉर्म भरना होगा। इसका नाम ‘दिल्ली में भोजन/आवास और बोर्डिंग प्रतिष्ठानों के लाइसेंस के लिए एकीकृत पोर्टल’ है। इस नए पोर्टल ने थिएटर, नृत्य और संगीत के लिए परफॉर्मिंग लाइसेंस को भोजन/आवास और बोर्डिंग प्रतिष्ठानों की श्रेणी में डाल दिया है।

रंगकर्मियों में इस बात को लेकर खासा रोष है और वे सवाल उठा रहे हैं कि क्या होटल, रेस्तरां और बोर्डिंग प्रतिष्ठान के कानून नाटक, संगीत और नृत्य जैसी परफार्मिंग आर्ट पर लागू होते हैं?

अस्मिता थिएटर के संस्थापक और जाने माने रंगकर्मी अरविंद गौड़ कहते हैं कि दिल्ली शहर में हर महीने औसतन 120-150 शो होते हैं।  मूल रूप से यह ऑडिटोरियम मालिकों की जिम्मेदारी होनी चाहिए कि वे वहां के स्थानों के लिए लाइसेंस शुल्क प्राप्त करें और उसका भुगतान करें। आडिटोरियम पहले से ही इसके लिए शुल्क का भुगतान कर रहे हैं, तो फिर एमसीडी थिएटर समूहों से फिर से शुल्क क्यों ले रही है?

अरविंद गौड़ के मुताबिक इस पोर्टल में, हमें स्टेज प्ले के मंचन के लिए दिल्ली पुलिस की विशेष शाखा से पीसीसी (पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट) की भी आवश्यकता है। पुलिस क्लीयरेंस सर्टिफिकेट (पीसीसी) अनैतिक और अतार्किक कानून हैं। यह अप्रत्यक्ष रुप से हमारी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को नियंत्रित करने का प्रयास हैं। भारत ही नहीं, दुनिया में कहीं भी ऐसे कानून मौजूद नहीं हैं। यह प्रत्यक्ष उत्पीड़न ही है।
उनका कहना है कि एनओसी, लाइसेंसिंग प्रक्रिया में शामिल विभिन्न विभागों के भीतर आपसी तालमेल ना होने के कारण थिएटर और सांस्कृतिक समूहों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। हम इन्ही मुद्दों पर सवाल और आपत्तियां उठा रहे हैं। एजेंसियों को ऐसे कानून बनाने से पहले सभी हितधारकों से परामर्श करना चाहिए।

अरविंद गौड़ रंगकर्मियों की अभिव्यक्ति की आजादी की लड़ाई लंबे समय से लड़ते रहे हैं और जब भी ऐसा कोई तुगलकी फरमान आता है  उनकी कोशिश प्रतिबद्ध रंगकर्मियों की आवाज़ को मजबूती से उठाना होता है। इस बार भी उन्होंने पहले दिल्ली नगर निगम की मेयर शैली ओबेराय से मिलकर इसपर आपत्ति उठाई तो उन्होंने इसकी जानकारी होने से ही मना कर दियाष उनका कहना था कि दिल्ली के ऐसे तमाम फैसले उप राज्यपाल सीधे ले रहे हैं और हमें बताया तक नहीं जाता। अरविंद ने इसे लेकर उप राज्यपाल से भी समय मांगा, लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया।

मशहूर नाट्य समीक्षक जयदेव तनेजा ने भी  इस फैसले का जबरदस्त विरोध किया है। जयदेव तनेजा ने इस फैसले को संस्कृति विरोधी और कलाकार विरोधी बताया है। दिल्ली और मुंबई के तमाम रंगकर्मियों ने इसे लेकर अपना विरोध जताया है और कहा है कि अगर सत्ता को इस तरह की मनमानी करने की छूट दिल्ली में दी गई तो इसका पूरे देश में लागू करने का खतरा है। ऐसे में इस फैसले का विरोध कर रंगकर्मियों की आजादी को बचाना ही होगा। जाने माने नाट्य निर्देशक और शाहरुख खान को अभिनय सिखाने वाले बैरी जॉन ने भी इसे कलाकारों के लिए बेहद अपमानजनक फैसला बताया है। उन्होंने इसे कलाकारों को अपनी जड़ों से काटने की कोशिश बताते हुए ऐसे फैसले पर आश्चर्य जताया है। वहीं अम्बेडकर और गांधी जैसे मशहूर नाटक के लेखक और तमाम नाटकों से चर्चित रहे राजेश कुमार ने भी इसे जनविरोधी और संवेदनहीन फैसला करार देते हुए इसका सख्त विरोध किया है। जाने माने लेखक, निर्देशक, अभिनेता और नाटककार महेश दत्तानी ने कहा है कि मुंबई का नाटकों की सेंसरशिप से पुराना नाता है। वहां कई बार ये कोशिश हुई। लेकिन हमें विजय तेंदुलकर और श्रीराम लागू जैसे दिग्गज शख्सियतों का शुक्रगुजार होना चाहिए जिन्होंने इसके खिलाफ जोरदार लड़ाई लड़ी और ये कोशिश नाकाम हुई। दिल्ली के कलाकारों को भी इस लड़ाई में पीछे नहीं रहना चाहिए। अगर ऐसा कोई नियम लागू हो गया तो इसे वापस कराना मुश्किल हो जाएगा।

Posted Date:

August 6, 2024

3:32 pm Tags: , , , ,

3 thoughts on “रंगकर्मियों के खिलाफ तुग़लकी फ़रमान, जबरदस्त विरोध”

  1. Ramesh khanna says:

    बिल्कुल सही बात कही अरविंद भाई आपने कलाकारों के
    नाट्य समूह के हित में आपने बात रखी
    और सत्य कहा ।ये रवैया एक दम निंदनीय है एमसीडी जा

  2. Shiv nayal says:

    कला के साथ अन्याय जारी है। अभिव्यक्ति के रास्तों में अवरोध खड़ा करने की साजिश है। अब सांसों की आवा-जाही का फार्म भरना होगा। अभी तो सागभाजी की कैटेगरी में तो रखा है।

  3. ओ पी पांडेय says:

    बेहद बढिया मुद्दा को उठाया गया है। कलाकारों की आजादी को अगर इस तरह से नष्ट किया जाएगा तो संस्कृति का नाश हो जाएगा। अब कला और होटलों में फर्क करना भी सरकार और विभागीय लीगों को नही आ रहा है!! जब नाश मनुज पर छाता है पहले विवेक मर जाता है। सरकार की मति मारी गयी है जो इसके अंत का आगाज है।

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