जे पी की संस्था सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी के कार्यक्रम में उठे कई अहम सवाल
नई दिल्ली, 19 अप्रैल। आज से करीब 50 साल पहले जयप्रकाश नारायण ने दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में नागरिक समाज की एक संस्था “ सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी” की स्थापना की थी क्योंकि तब उन्हें लोकतंत्र को बचाना था और लोकतंत्र को बचाने के लिए ही उन्होंने आपातकाल का विरोध किया था। उसी गांधी शांति प्रतिष्ठान से वे गिरफ्तार भी हुए थे। देश मे एमर्जेसी लगी लेकिन जे पी ने इंदिरा गांधी की तानाशाही का खुल कर विरोध करते हुए उनकी सत्ता को उखाड़ फेंका था।
आज इस गांधी शांति प्रतिष्ठान में जेपी की संस्था सिटीजन्स फॉर डेमोक्रेसी अपनी स्वर्ण जयंती मना रही है। इस सभागार में उसका दो दिवसीय कार्यक्रम शुरू हुआ जिसका उद्घाटन उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन लोकुड़ ने किया लेकिन जब जेपी इस संस्था का गठन कर रहे थे तो सभागार के बाहर भी लोग थे और फिर इतनी थी भीड़ हो गई कि लोग सड़कों पर जमा थे और लाउडस्पीकर से जे पी का भाषण सुन रहे थे लेकिन आज सभागार बड़ी मुश्किल से भर पाया था।
50 साल पहले देश में आपातकाल लगा था और उस आपातकाल का विरोध करनेवाली ताकतें अब आज सत्ता में हैं और उसने एक अघोषित आपातकाल लगा रखा है जिसका नतीजा यह है कि केवल नागरिक समाज ही नहीं बल्कि पूरा मीडिया भी उस अघोषित आपातकाल के साए में जी रहा है और बेकसूर लोग पकड़े जा रहे हैं और उन्हें जमानत भी नहीं मिल पा रही है।
सिटीजंस फॉर डेमोक्रेसी ने यह जताने के लिए कि देश इस समय खतरे से गुजर रहा है और लोकतंत्र के लिए यह गहरा संकट है ,यह आयोजन किया था जिसमे मुम्बई, पुणे, चेन्नई, हैदराबद और पटना आदि से लोग आए थे। लेकिन दिल्ली के लोगों में हलचल नहीं है। अगर देश का यही हाल रहा तो एक दिन यहां भी सैन्य तानाशाही भी पाकिस्तान की तरह शुरू हो सकती है क्योंकि सेना के अध्यक्षों को चुनाव में टिकट देने और उन्हें जिताने की भी एक नई परंपरा शुरू हो गई है। इस कार्यक्रम में यह बात प्रमुखता से उभर कर सामने आई कि “ भारतीय लोकतंत्र इस समय आईसीयू में पड़ा हुआ है और उसे बचाने के लिए नागरिक समाज को एक बार फिर उसी तरह आगे आने की जरूरत है जिस तरह लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने आज से 50 वर्ष पूर्व कांग्रेस के खिलाफ आंदोलन छेड़ा था। “
गांधी शांति प्रतिष्ठान के सभागार में जेपी ने 1974 में 13 -14 अप्रैल को इस संस्था का गठन किया था जिसका मकसद उस समय लोकतंत्र को बचाना था ।
उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन लाकुड़ ,प्रसिद्ध समाजशास्त्री आनंद कुमार , सिटीजंस फ़ॉर डेमोक्रेसी के अध्यक्ष एस आर हीरेमठ, महासचिव एन डी पंचोली गांधी शांति प्रतिष्ठान के अध्यक्ष कुमार प्रशांत और प्रमुख पत्रकार मणिमाला आदि ने लोकतंत्र को बचाने का आह्वान किया। जेएनयू में समाजशास्त्र के प्रोफेसर रहे आनंद कुमार ने कहा कि आज से 50 साल पहले मैं इसी सभागार में एक कार्यकर्ता के रूप में बैठा जयप्रकाश नारायण को सुन रहा था जिन्होंने इस संस्था की स्थापना की थी। मुझे बहुत खुशी हो रही है और गर्व भी महसूस कर रहा हूं कि आज मैँ सभागार के उसी मंच से लोगों को संबोधित कर रहा हूँ।
उन्होंने कहा कि इस समय देश में लोकतंत्र खतरे में है और वह आईसीयू में अंतिम सांस ले रहा है जिसे बचाने के लिए नागरिक समाज को आगे आने की बहुत जरूरत है। उन्होंने याद दिलाया कि प्रख्यात मानवाधिकार विशेषज्ञ और पूर्व न्यायाधीश वी एम तरकुंडे ने आज से 50 साल पहले चुनाव सुधार का एक प्रस्ताव पेश किया था जिसको बाद की सरकारों ने अमल मे नहीं लाया लेकिन आज उसमें चुनाव सुधार की बेहद जरूरत है क्योंकि यह लोकतंत्र अब पूरी तरह पूंजी के हवाले हो गया है और चुनाव का भी अब बाजारीकरण हो गया है।
उन्होंने कहा कि आजादी के बाद राजनीतिक दल चुनाव के लिए अच्छे और ईमानदार आदमी को खोजते थे लेकिन आज सभी राजनीतिक पार्टियों अपने टिकट बेचती है और लोग उसे मुंहमांगे दाम पर खरीदते हैं। आज एक विधायक को चुनाव लड़ने के लिए 10 करोड रुपए खर्च करने पड़ते हैं। ऐसे में कोई भी ईमानदार और पारदर्शी आदमी चुनाव कैसे लड़ सकता है और इस तरह यह लोकतंत्र पूंजीपतियों द्वारा संचालित होने लगा। इसलिए इस चुनाव प्रणाली में सुधार की बहुत जरूरत है ।
उन्होंने यह भी कहा कि आजादी के समय राजनीति सेवा भाव का काम था और यही कारण है कि महात्मा गांधी ने सेवाग्राम से अपनी आजादी की लड़ाई शुरू की थी और भारत रत्न से सम्मानित भगवान दास ने भी अपने घर सेवा सदन से आजादी की लडाई शुरू की थी जबकि 1920 में आज संस्थापक शिव प्रसाद गुप्त ने सेवा आश्रम बनाया था लेकिन आजादी के बाद राजनीति सेवा का काम नहीं रह गया बल्कि वह सत्ता प्राप्त करने का साधन हो गया। पहले तो कुछ लोग जनता की थोड़ी बहुत सेवा करते थे पर अब उनका असली काम सत्ता को पाना होता है और यह सत्ता चुनाव के जरिए ही हासिल की जाती है ,इसलिए चुनाव में सुधारो की बहुत आवश्यकता है क्योंकि पिछले चुनाव ईवीएम के घोटाले के आरोप लगने लगे हैं और अब यह चुनाव भी बहुत पाक साफ नहीं रहा ।
इससे पहले न्यायमूर्ति मदन लाकुड़ ने कहा कि इस समय देश में एक तरह से अघोषित आपातकाल लगा हुआ है जबकि जयप्रकाश नारायण ने घोषित आपातकाल के खिलाफ अपना आंदोलन शुरू किया था लेकिन आज अघोषित आपातकाल के खिलाफ लड़ने की जरूरत है ।
उन्होंने राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के ताजा बयान को बिना उद्धरित किये कहा कि अब संवैधानिक नैतिकता का पालन नहीं हो रहा है और विधायिका न्यायपालिका को संचालित कर रही है और यह सत्ता न्यायपालिका को धमकाने के काम में लगी हुई है।
उन्होंने कहा कि लोकतंत्र में जनता सर्वोपरी होती है। राज्यपाल जनता के लिए नियुक्त किये जाते हैं लेकिन राज्यपाल विधेयकों को दबाकर बैठ जाते हैं।
समारोह को श्री पंचोली और हीरेमठ ने भी संबोधित किया और लोकतंत्र के संकट और खतरे पर चिंता व्यक्त की।
विमल कुमार की रिपोर्ट
Posted Date:April 19, 2025
5:35 pm Tags: जयप्रकाश नारायण, विमल कुमार, प्रोफेसर आनंद कुमार, सिटिजन्स फॉर डेमोक्रेसी, गांधी शांति प्रतिष्ठान