हिंदी साहित्य में साल भर की घटनाओं और किताबों का लेखा जोखा कम ही होता है पर जो भी होता है ,उसमें पुरुष लेखकों को अधिक जगह मिलती है और स्त्री रचनाकारों पर ध्यान कम दिया जाता है, इसलिए 'स्त्री दर्पण' ने स्त्री लेखन की वार्षिकी निकालना शुरू किया है ताकि स्त्री रचनाधर्मिता पर लोगों की निगाह जाये। अनामिका चक्रवर्ती का यह आलेख 2024 में महिला रचनाकारों के लेखन को काफी हद तक समेटने की एक कोशिश
Read Moreश्याम बेनेगल के होने के अपने मायने थे.. उनके पास सिनेमाई कौशल के साथ अपने समाज के ज़रूरी सवाल भी रहे और उन सवालों पर सोचने को मजबूर कर देने की कला भी... समानांतर सिनेमा को भी उन्होंने उस लीक से हटाने की कोशिश की जिसे कई दफा बोझिल और उबाऊ करार दिया जाता रहा.. क्योंकि बेनेगल सिनेमा के व्याकरण को भी बखूबी समझते थे...आखिर श्याम बेनेगल के सफरनामें की क्या खासियतें रहीं जो उन्हें इस मुकाम तक ले
Read Moreसिनेमा को एक गंभीर ऊंचाई तक पहुंचाने वाले सत्यजीत राय के बाद अब श्याम बेनेगल भी चले गए। सार्थक और समानांतर सिनेमा के ऑइकॉन बन गए बेनेगल के लिए सिनेमा समाज की उन सच्चाइयों का आईना रहा जहां जीवन की जद्दोजहद और आम लोगों के सवाल अहम थे... बेशक वह 90 साल के हो चुके थे, डॉयलिसिस पर भी थे, लेकिन आखिरी दिनों तक अपने गंभीर प्रोजेक्ट्स को लेकर गंभीर थे... श्याम बेनेगल के कई आयाम हैं...
Read Moreसंसद में इन दिनों थैला बंद सियासत का ज़ोर है… कुछ थैले कंधे पर हैं तो कुछ अलग अलग तरीकों से संसद के भीतर… बाहर तो झोला छाप कामरेड से लेकर झोला झाप लेखक और डॉक्टर की चर्चा तो अक्सर होती है लेकिन अब ये झोला संस्कृति कुछ बदली बदली सी है.. कुछ झोले पर पार्टी के निशान तो नेताओं की फोटो तो कुछ पर आंदोलन के नारे… कमाल की इस झोला या थैला संस्कृति पर जाने माने व्यंग्यकार और पत्रकार अनिल त्रिवेदी
Read Moreजानी मानी कथाकार और उपन्यासकार कृष्णा सोबती की जन्मशती बेशक फरवरी 2025 से शुरु हो रही हो, लेकिन साहित्य अकादमी ने 19 और 20 दिसंबर को दो दिनों तक उनकी पूरी साहित्यिक यात्रा पर गंभीर आयोजन किया। इस संगोष्ठी में कृष्णा सोबती के व्यक्तित्व के तमाम पहलुओं के साथ उनके लेखन के तमाम आयामों पर चर्चा हुई।
Read Moreसिनेमा की दुनिया को बेहद करीब से समझने वाले और राजकपूर जैसे शोमैन की कलायात्रा को गहराई से महसूस करने वाले जाने माने पत्रकार और लेखक प्रताप सिंह ने उनकी जन्मशती के मौके पर बेहद संजीदगा के साथ 7 रंग के लिए ये विशेष पेशकश भेजी है... राज साहब की फिल्म यात्रा को समझने के साथ ही उनकी शख्सियत के कई दूसरे देखे अनदेखे पहलुओं पर प्रताप सिंह ने पैनी नज़र डालने की कोशिश की है।
Read More"बारादरी" की सदारत करते हुए मशहूर शायर इकबाल अशहर ने कहा कि बारादरी हिंदुस्तानी संस्कृति की नई इबारत लिख रही है। अपने अशआर पर जमकर दाद बटोरते हुए उन्होंने फरमाया "हमको हमारे सब्र का खूब सिला दिया गया, यानी दवा दी न गई दर्द बढ़ा दिया गया। उनकी मुराद है यही खत्म न हो ये तीरगी, जिसने जरा बढ़ा दी लौ, उसको बुझा दिया गया। अहल ए सितम को रात फिर दावत ए रक्स दी गई, और बराए रोशनी शहर जला दिया गया।
Read Moreआज से 115 साल पहले स्त्री दर्पण पत्रिका निकालकर स्त्री आंदोलन शुरू करने वाली संपादक रामेश्वरी नेहरू ने केवल सार्थक पत्रकारिता ही नहीं की हरिजनों और विभाजन के समय दंगा पीड़ितों की भी सेवा की। उस ज़माने में हिंदुस्तानी मौसिकी को बुलंदियों पर ले जानेवाली तवायफ़ गायिकाओं ने भी न केवल आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लिया बल्कि राष्ट्रनिर्माण में भी अहम भूमिका अदा की।
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