दलबदल और वैचारिक भटकाव के इस ज़माने में आप किसी पर भरोसा नहीं कर सकते... वैसे भी सत्ता और फायदेमंद राजनीति का स्वाद जिसे लगा, उसके लिए विचारधारा का कोई मतलब नहीं रह जाता... घर घर में यही हालत हो गई है... न कोई नैतिकता, न कोई ईमान, लेकिन यह खेल दिलचस्प है अगर आप इसे कुछ इस नज़रिये से देखें तब... वरिष्ठ पत्रकार और व्यंग्यकार अनिल त्रिवेदी का ताज़ा व्यंग्य..
Read Moreबांग्ला फिल्मकारों में एक खास बात होती है कि वो कम फिल्में बनाते हैं लेकिन ये फिल्में यादगार होती हैं... चाहे सत्यजीत रे हों, बासु भट्टाचार्य, बासु चटर्जी, ऋषिकेश मुखर्जी, बिमल राय हों या उत्पलेन्दु चक्रवर्ती ... 1983 में जब उत्पलेन्दु चक्रवर्ती की 'चोख' आई तो सबका ध्यान उनकी तरफ गया। चोख को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला और उत्पलेन्दु को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का।
Read Moreचुनाव निपट गए। कुछ जीत गए और कई हार गए। कई जीतने के लिए चुनाव लड़े थे लेकिन हार गए। कुछ हारने के लिए मैदान में उतरे थे, पर विजयी हो गए। कई अपनी हार पर अचंभित हैं, कुछ अपनी जीत से भौचक्के। कुछ दो महीने बाद भी मिठाई बांट रहे हैं, कुछ अभी तक घुटनों में मुंह छिपाए बैठे हैं। जनता ने जिसे चाहा उसे धकेलकर संसद के भीतर भेज दिया। बाकी को बाहर ही रोक लिया, कहा कि तुम इस बार अंदर जाने के लायक नहीं हो। फ
Read Moreलखनऊ में कवि वीरेन डंगवाल के 77वें जन्मदिन पर 5 अगस्त को उनकी याद में जन संस्कृति मंच (जसम) की ओर से गोष्ठी का आयोजन शायरा सईदा सायरा के निवास पर किया गया जिसकी अध्यक्षता कवि-आलोचक चन्द्रेश्वर ने की। संचालन किया कथाकार फरजाना महदी ने। इस मौके पर चंदेश्वर और कौशल किशोर ने वीरेन डंगवाल के कवि कर्म और सरोकारों पर अपनी बात रखी।
Read Moreसुप्रसिद्ध साहित्यकार और नाटककार भीष्म साहनी की स्मृतियों का उनके जन्मदिन पर अस्मिता थिएटर ग्रुप के फेसबुक वॉल से ये रिपोर्ट पढ़िए। अरविंद गौड़ ने उनके तमाम नाटकों का मंचन किया। भीष्म साहनी को बेशक 'तमस' के लिए याद किया जाता हो, लेकिन साहित्य के क्षेत्र में उनके अद्भुत और उल्लेखनीय योगदान के साथ ही इप्टा में उनकी सक्रियता को कभी भूला नहीं जा सकता। आज भी भीष्म साहनी उतने ही प्रास
Read Moreरंगकर्मियों और नाटक करने वाली संस्थाओं पर शिकंजा कसने की पहले भी कई बार कोशिशें हुईं लेकिन जबरदस्त विरोध की वजह से ऐसा नहीं हो सका। पिछले कुछ सालों से ये कोशिश नए नए रूपों में सामने आ रही है। दिल्ली में अब ज्यादातर फैसले उप राज्यपाल की ओर से लिए जा रहे हैं। हाल ही में ऐसा ही एक संस्कृतिविरोधी फैसला लिया गया है जिसे लेकर कलाकारों और रंग संस्थाओं में जबरदस्त आक्रोश है।
Read Moreगाज़ियाबाद में साहित्य की महफिलों का अब लगातार रंग जमने लगा है। हर महीने कथा संवाद और महफ़िल-ए-बारादरी का जो सिलसिला शुरु हुआ है उसमें देश भर के नामचीन लेखक, कवि, शायर और गीतकार निरंतर शामिल हो रहे हैं। यह कोशिश पुरानी के साथ साथ नई पीढ़ी में साहित्य के प्रति गहरी अभिरुचि पैदा करने के साथ उनमें लिखने पढ़ने की आदत डालने, एक बेहतर सामाजिक दृष्टि विकसित करने की दिशा में एक जरूरी और उल्ल
Read Moreमैं सड़क का एक अच्छा और प्यारा सा गड्ढा हूं। सड़क पर गड्ढे तो और भी हैं। सड़क है तो गड्ढे भी होंगे, लेकिन मैं सबसे थोड़ा अलग दिखता हूं। मेरा दायरा अन्य गड्ढों से विस्तृत है। गहराई भी कुछ ज्यादा है। मैं सड़क के एकदम बीचोबीच हूं, इसलिए आने-जाने वालों का सबसे ज्यादा प्यार मुझे ही मिलता है। साइकिल-बाइक वाले अक्सर मुझे दंडवत करते हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ियां भी मेरे पास आते ही नरम पड़ जाती हैं औ
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