क्या धर्म या अध्यात्म इच्छा और अनिच्छा से परे हो सकता है? दूसरे शब्दों में कहें तो क्या कोई ऐसा मंदिर हो सकता है जिसमें किसी ऐसे भक्त का प्रवेश वर्जित हो जिसमें कुछ इच्छा बची हो? वैसे भी सोचने वाली बात ये है कि कोई भक्त किसी मंदिर या भगवान के सामने तभी तो जाता है जब उसकी कोई मन्नत हो या वो भगवान से कुछ चाहता हो। निष्काम कर्मयोग तो सिर्फ गीता में लिखी गई बात है जिसे बहुत कम ही लोग दैनिक जी
Read Moreकला में सार्वजनीयता होती है लेकिन साथ ही स्थानीयता भी होती है। पर स्थानीयता के भी कई रूप होते हैं। कुछ कलाकार स्थानीयता को लेकर ज्यादा सजग होते हैं। जैसे कि युवा और उदीयमान पेंटर रजनीश सिंह। रजनीश गोरखपुर के रहनेवाले हैं और इन दिनों दिल्ली में रह रहे हैं। वे वैसे तो अमूर्त कलाकार हैं लेकिन उनके अमूर्तन में भोजपुरी का स्पर्श है और इसे सजग होकर ही महसूस किया जा सकता है। उनकी सभी तो न
Read Moreविजय तेंदुलकर का लिखा मराठी नाटक `सखाराम बाइंडर’ एक आधुनिक भारतीय क्लासिक का दर्जा हासिल कर चुका हैं और अन्य भाषाओं के अलावा ये हिंदी में भी कई बार खेला जा चुका है। अलग अलग निर्देशकों ने इसे अपने अपने तरीके से पेश किया है। इसी कड़ी में पिछले दिनों दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में इसकी एक नई प्रस्तुति हुई। `बाइंडर’ नाम से। ये उत्तर-आधुनिक प्रस्तुति थी और इसमें कई तरह के प्रयोग कि
Read Moreइंटरनेट और ईमेल के ज़माने में लोग भले ही चिट्ठी पत्री के परंपरागत जरिये को भूलते जा रहे हों, अंतरदेशीय और पोस्टकार्ड के नाम से वाकिफ न हों, लेकिन आज भी पोस्टकार्ड की कितनी अहमियत है, इसे कुछ कलाकार शिद्दत के साथ महसूस करते हैं। इस दिशा में लखनऊ का सप्रेम संस्थान अहम भूमिका निभा रहा है। देशभर के कलाकारों, कवियों और लेखकों को एक मंच पर लाकर यह संस्थान आगामी जून में पोस्टकार्ड पर बनी कल
Read Moreअपने ज़माने के मशहूर सांस्कृतिक हस्ताक्षर रहे जाने माने यायावर लेखक राहुल सांकृत्यायन के उपन्यास ‘वोल्गा से गंगा तक’ जिसने भी पढ़ा होगा, उसके लिए भारतीय इतिहास में ब्राह्मणवाद के तमाम ढकोसलों को समझना आसान है। राहुल जी ने यह उपन्यास 1943 में लिखा था। साहित्य अकादमी सभागार में 28 अप्रैल को मशहूर स्तंभकार और लेखक कमलाकांत त्रिपाठी की किताब ‘सरयू से गंगा’ पर चर्चा के दौरान राहुल सांक
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