आज के दौर में अगर लघु पत्रिका और खासकर इस विषय पर केन्द्रित एक पत्रिका को निकालने की हिम्मत जुटाना आसान काम नहीं। लेकिन युवा पत्रकार आलोक पराड़कर की तारीफ करनी होगी कि उन्होंने अपने इस जज़्बे को बरकरार रखते हुए ‘नाद रंग’ निकालने का साहस किया। व्यावसायिकता और बाज़ारीकरण के इस दौर में पत्रिका निकाल पाना और उसे चला पाना कठिन चुनौती है और खासकर तब भी जब ‘डिजिटल युग’ और ‘मोबाइलीकरण’ न
Read Moreमीडिया से लगभग गायब हो चुके साहित्य और साहित्यकारों को अगर कोई हिन्दी अखबार मंच दे और आज के दौर में पत्रकारिता की नई परिभाषा गढ़े तो बेशक इसके लिए वह बधाई का पात्र है। उत्तर भारत के सबसे विश्वसनीय अखबार ‘अमर उजाला’ ने ऐसी ही पहल की है।
Read More