शास्त्रीय संगीत को नए आयाम देने में लगे हैं सिद्धार्थ दास

नई पीढ़ी को परंपरागत संगीत शैली से जोड़ रहा है प्रतिश्रुति फाउंडेशन

उत्तर पूर्वी राज्यों में शास्त्रीय संगीत के साथ साथ संस्कृति के तमाम आयामों को आगे बढ़ाने की दिशा में काम कर रहे प्रतिश्रुति फाउंडेशन की पहचान अब देश के तमाम हिस्सों में भी बन रही है। पश्चिम बंगाल और मुंबई में भी  फाउंडेशन के कामकाज को सराहा जा रहा है और इसके संस्थापक सिद्धार्थ दास को एक नई पहचान मिल रही है।

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7 रंग के साथ बातचीत में सिद्धार्थ का संगीत और संस्कृति के प्रति समर्पण साफ नज़र आया। सिद्धार्थ बताते हैं कि भारतीय शास्त्रीय संगीत की ज़ड़ें बेहद गहरी हैं और बदलते दौर में भी नई पीढ़ी को इससे जोड़े रखना उनका मकसद है। असम के युवा तबला वादक ज़ुल्फ़िकार हुसैन को आगे बढ़ाने और उन्हें राष्ट्रीय स्तर की ख्याति दिलाने में प्रतिश्रुति फाउंडेशन ने अहम भूमिका निभाई है।

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महज 6 साल की नन्हीं उम्र से ही शास्त्रीय संगीत की शिक्षा लेने वाले सिद्धार्थ दास ने लखनऊ के प्रतिष्ठित भातखंडे संगीत महाविद्यालय से संगीत में विशारद और निपुण की उपाधि हासिल की। फिर देश के कई हिस्सों में संगीत सिखाने के साथ साथ ओमान और खाड़ी के कई देशों में भारतीय शास्त्रीय संगीत को आगे बढ़ाने का काम करते रहे हैं। फिलहाल सिद्धार्थ अपने फाउंडेशन के ज़रिये गुवाहाटी के अलावा उत्तर पूर्वी राज्यों के गांव और कस्बों में भी संगीत की कार्यशालाएं आयोजित करते हैं। उनकी कोशिशों से कई नई प्रतिभाएं सामने आ रही हैं।

सिद्धार्थ बताते हैं कि आज के दौर में जब इंटरनेट और इलेक्ट्रानिक उपकरणों ने मूल संगीत की आत्मा को नुकसान पहुंचाया है, सबकुछ रेडिमेड हो गया है और नई पीढ़ी भी अब इस नई संस्कृति के जाल में फंस चुकी है, ऐसे में वो एक मिशन की तरह संगीत के क्षेत्र में काम कर रहे हैं। आने वाले वक्त में सिद्धार्थ और उनका फाउंडेशन कई नई योजनाओं के साथ नई पीढ़ी के बीच आने की तैयारी में है।

Posted Date:

December 4, 2016

6:25 pm
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