बोधगया बिनाले में ‘मैन विद सिंगिंग बाउल’

समाज में जाति व्यवस्था को किस तरह से देखा जाता है और किसी अन्य पंथ को अपनाने के बावजूद उस व्यक्ति की जिंदगी पर किस तरह से उससे पूर्व की जाति एवं कर्मों का असर रहता है, क्या यह कला का विषय हो सकता है। बोधगया बिनाले में इसी को आधार बनाकर युवा कलाकार बी. अजय शर्मा ने समाज को गहरा संदेश देने की कोशिश की जिनकी प्रस्तुति का टाइटल था मैन विद सिंगिंग बाउल।

 

बोधगया बिनाले के तीसरे दिन बी अजय शर्मा की संगीतमय प्रस्तुति ‘मैन विद सिंगिंग बाउल’

बोधगया बिनाले की इस प्रस्तुति में सात भिक्षुकों ने बी. अजय शर्मा के निर्देशन में बिहार के परंपरागत वाद्य यंत्रों, झाल-करताल, ढोलकी और ढोलक के साथ जिस तरह का समा बांधा, उसने वहां मौजूद कला प्रेमियों को विमुग्ध कर दिया I अजय के मुताबिक सामाजिक उत्थान के लिए आवश्यक है कि सबसे पहले खुद का आत्मिक उत्थान करें। महात्मा बुद्ध के शब्दों में जिसे आप दीपो भवः कहा गया है I इस तरह से देखा जाये तो बोधगया बिनाले में आज बुद्ध के परिनिर्वाण की इस धरती से उनके संदेशों को एक बार फिर से कलात्मक अभिव्यक्ति के जरिये दुहराया गया, जिसकी संभवतः आज के समय में सबसे अधिक जरुरत भी है I विदित हो कि इस बिनाले का थीम भी है वर्तमान समय में शांति की तात्कालिकता I

  

नये दौर में कलाओं को किस तरह से देखा जाए इस विषय पर आयोजित टॉक शो में देश के चर्चित कलाकार कला चिंतक अशोक भौमिक और पॉलोमी दास ने अपने अपने विचार रखे। अशोक भौमिक के मुताबिक चित्रकला में नये-पुराने का भेद करना उतना जरूरी नहीं है, जितना कि इस बात पर ध्यान देना कि हम रचना क्या कर रहे हैं। लेकिन, पिछले कुछ समय से कला नहीं, संदर्भ महत्वपूर्ण हो गया है। कला की अपनी भाषा है जो वैश्विक भाषा है और इस वैश्विक भाषा पर व्याख्या हावी हो गया है। इसी विषय पर पॉलोमी दास का कहना है कि आज कला या उसी भाषा जिस रूप में हो, हमे नये माध्यमों और तकनीक के जरिए उसे अपनी भावी पीढ़ी के लिए और बेहतर बनाने की जरूरत है।

  

सोमवार दो कला पर बनी दो फिल्म भी बोधगया बिनाले में दिखायी गयी। इसमें पहली फिल्म सिद्धार्थ कुमार की एन इनसाइट व्यू ऑफ मंजूषा आर्ट और दूसरी फिल्म देश के जाने माने मूर्तिकार हिम्मत शाह पर कला लेखक विनोद भारद्वाज द्वारा बनाई गयी फिल्म फेसस, द एनिग्मैटिक वर्ल्ड ऑफ हिम्मत शाह का प्रदर्शन किया गया। इस फिल्म की व्याख्या विनोद भारद्वाज देश के सबसे सशक्त कवि धूमिल के शब्दों में करते हैं कि एक चेहरा/ जो पूरे आदमी का है/ किन्तु वह मेरा नहीं है/ मेरी कमी का है।

Posted Date:

December 19, 2016

6:53 pm
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