‘आवारा मसीहा’ के गवाह रहे संबताबेर को लगी बाजारीकरण की हवा

• दीपक रस्तोगी

 

मिट्टी का दो मंजिला मकान। दक्षिणमुखी। टाली की छत। ऊपरी मंजिल पर टेरेस। वहां बैठकर साहित्य रचना करते थे कथाशिल्पी शरत चंद्र चटर्जी। पश्चिम बंगाल में हावड़ा के बनगांव इलाके में एक जगह है देउलटी। कोलकाता से लगभग 55-60 किलोमीटर दूर। यहां से गुजरने वाली बांबे रोड से धूल भरी एक कच्ची सड़क मुड़ती है, जो सीधे रूपनारायण नदी के किनारे ले जाती है। गांव का नाम है संबताबेर। नदी के किनारे अरसे से भारतीय साहित्य की एक ऐतिहासिक धरोहर पड़ी है- चुपचाप अपने समय को याद करती हुई।
‘आवारा मसीहा’ शरत चंद्र चट्टोपाध्याय के जीवन के आखिरी दिनों की गवाह इस इमारत को लगता है कि समय की मर्जी पर छोड़ दिया गया है। हालांकि, इस जगह का पता चलने के बाद काफी शोरगुल मचने पर बंगाल सरकार ने अधिगृहित तो किया, लेकिन आगे की योजनाएं अभी फाइलों में ही हैं।
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तीन बीघा ज़मीन पर रूपनारायण नदी के किनारे बांस, आम, जामुन आदि वृक्षों के बीच दो तल्ले की यह इमारत दूर से ही खास शैली की दिखती है। वहां पहुंचने पर स्वागत करते हैं केयरटेकर दुलाल। वे इस इमारत के गाइड की भी भूमिका निभाते हैं। दुलाल के साथ-साथ बंगले में घूमिए और शरतबाबू के जीवन के कुछ अनजाने पहलुओं से रू-ब-रू होइए। इस बंगले में शरत बाबू ने अपने जीवन के आखिरी 12 साल बिताए।
बंगले के बैठक खाने से लेकर लिखने- पढ़ने के कमरे और सोने के कमरे से लेकर ओसारे तक – असीम शांति मानो अभी भी शरत बाबू के वहां होने काआभास दिलाती है। मिट्टी के बने इस बंगले में लेखक का बिछौना, आरामकुर्सी, लिखने का टेबल, जूते, छड़ी, भगवान की मूर्तियां जस की तस पड़ी हैं। दुलाल यहां पिछले 3० साल से हैं। इस मकान में शरत बाबू के ही परिवार के कुछ लोग रहा करते थे। दुलाल उन्हीं के यहां काम करते थे। इस जगह केअधिग्रहण के बाद कुछ लोग दिल्ली चले गए और कुछ लोगों को कोलकाता में राज्य सरकार ने फ्लैट आबंटित कर दिया। उन लोगों के बारे में यहां के लोग कम चर्चा करते हैं। इस जगह को राष्ट्रीय धरोहर घोषित करने के लिए कुछ स्थानीय लोगों ने मुहिम छेड़ी थी और परिवार के लोग जगह खाली करने को तैयार नहीं थे। दुलाल भी  इस अप्रिय वाकए की ज्यादा चर्चा करने को तैयार नहीं।
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यह मकान बर्मा से लौटकर शरत बाबू ने बनवाया था। बंगाल में फैले प्लेग से बचने के लिए वे अपने मामा के पास बर्मा चले गए थे। वहां से लौटे तो प्राकृतिक परिवेश में अपने जीवन के अंतिम दिन गुजारने की खातिर शरत बाबू ने बनगांव में जमीन खरीदी और मकान का नक्शा खुद तैयार किया। दुलाल का दावा है कि उसने शरत बाबू को देखा है। तब वह बहुत छोटा था। वह याद करता है कि शरत बाबू को रूपनारायण नदी की लहरों की आवाज भाती थी। यहीं उन्होंने अपने आत्मकथात्मक उपन्यास श्रीकांत  के कुछ पन्ने लिखे थे। 1938 में यहां अपने निधन तक श्रीकांत के अलावा यहां उन्होंने तीन कालजयी रचनाएं पूरी कीं- अभागीर स्वर्ग, महेश और पल्ली समाज । उस कमरे में अल्पना सजाई गई है, जहां उनका निधन हुआ था। यहां कुछ दिनों के लिए शरत बाबू ने राजनीति भी की थी। वे हावड़ा जिला कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे। उन्हें हावड़ा के टाउन हॉल में सम्मानित किया गया था।
इस बंगले के ठीक सामने एक छोटा तालाब है। पीछे धान के खेत। प्रकृति की गोद में रहने के लिए शरद बाबू ने यह मकान बनवाया था। लेकिन अब शायद प्राकृतिक छटा यहां दुर्लभ हो जाए। इस जगह के सुंदरीकरण के लिए तालाब को पाटकर पार्क बनाया जाना है और पास में म्युजियम। यहां जाड़े के दिनों में हर साल अमर कलमकार की याद में शरत मेला लगता है। बंगाल सरकार इस मेले के जरिए इस स्थल को पर्यटन महत्व के स्थानों की कतार में लाना चाहती है। अधिग्रहण के पहले से ही यहां मेला लगना शुरू हो गया था। यानी दो साल से मेला लग रहा है। देउलटी स्टेशन के दो किलोमीटर दूर संबताबेर में पर्यटकों की कभी-कभार आमद के चलते कुछ रिसोर्ट खुलने लगे हैं। यहां म्युजियम और शरत साहित्य पर शोध केन्द्र बनना है। पर्यटन विभाग तो यह भी दावा करता है कि यहां शरद बाबू के नाम पर विश्वविद्यालय भी खोला जाएगा, शांति निकेतन की तरह। संबताबेर में शरत बाबू की विरासत की मार्केटिंग चल पड़ी है। भले ही विरासत को संजोने की योजना पर काम अभी फाइलों में ही है।
जन्मस्थली को भी शहरीकरण की चुनौती
हुगली जिले के बंडेल के पास देवानंदपुर में शरत बाबू की जन्मस्थली की सार-संभाल तो अच्छे तरीके से हो रही है, लेकिन इलाके को शहरीकरण की चुनौती भी मिल रही है। बंडेल स्टेशन से पांच किलोमीटर दूर इस गांव में अब आपको आधुनिक मकान और रिसॉर्ट भी दिख जाएंगे। बंगाल सरकार का पर्यटन विभाग तर्क देता है कि इस जगह पर हम शहरीकरण के साथ ग्रामीण भावनाओं और विरासत का तालमेल बनाए रखने की कोशिश करते हैं। एक भवन का नाम दिया गया है, शरत स्मृति मंदिर। उस भवन में उनका जन्म हुआ था। यहां शरत बाबू के परिवार की एक लाइब्रेरी है, जिसकी देखरेख स्थानीय प्रशासन करता है। मकान के पास एक तालाब है। थोड़ी दूर पर पारिवारिक बैठकखाना। यह जगह सरस्वती नदी के किनारे हुआ करती थी। कभी प्रमुख व्यापार मार्ग हुआ करती थी यह नदी। इस नदी का जिक्र शरत बाबू की कई रचनाओं में मिलता है। यहां यह नदी अब एक नाले में परिवर्तित हो गई है।
नदी के कटाव से शरत के आवास पर संकट
शरत के बनवाए मकान से लगभग एक बीघा दूर बहा करती थी रूपनारायण नदी। मकान के बाद बाग-बगीचे और खेत। हावड़ा के बागनान इलाके के संबताबेर में शरत के मकान के पास से बहने वाली नदी की धारा पिछले कई वर्षों में कुछ किलोमीटर दूर चली गई थी। मानसून का हाथ पकड़कर नदी की धाराओं ने न सिर्फ पुरानी छोड़ी गई जमीन को आत्मसात करना शुरू कर दिया है। बल्कि, जमीन का कटान करते-करते अब बिल्कुल शरत बाबू के मकान के पास तक पहुंच गई हैं।
कथाशिल्पी के निधन के 73 साल बाद उनके मकान के आस्तित्व पर ही खतरा मंडरा रहा है। उनके इस मकान का बंगाल सरकार ने अधिग्रहण कर स्मारक बनाने का ऐलान किया था। फिलहाल तो यह जगह उपेक्षित सा एक पर्यटन स्थल बनकर रह गई है। अब जबकि, नदी की धाराएं कटाव करते-करते मकान तक पहुंचने को हैं, बंगाल सरकार के विभाग यही नहीं तय कर पा रहे हैं कि मकान को बचाने का काम दरअसल है किसका? हावड़ा जिला परिषद की सभाधिपति मीना घोष मुखर्जी के अनुसार, संबताबेर समेत बागनान के अधिकांश इलाकों में इस बार जमकर कटाव हो रहा है। पक्का बांध बनाकर कटाव रोकने की जरूरत है। सिंचाई विभाग को लिखित जानकारी दी गई है।
इस इलाके में दो साल से कटाव दिख रहा है। इस साल हालात बेकाबू हैं। सिंचाई विभाग के इंजीनियरों के अनुसार, दो साल में संबताबेर समेत,विरामपुर, गोविन्दपुर, सामता, मेल्लक आदि गांवों की एक हजार एकड़ से ज्यादा जमीन नदी में समा गई है। गोविन्दपुर गांव में तैयार एक ईको पार्क का आस्तित्व ही नहीं बचा है। पानीत्रास, गोविन्दपुर और सामता- गांवों की सीमा पर कुछ जमीन खरीदकर शरत चंद्र चटर्जी ने अपना मकान बनवाया था। कुछ साल पहले बाढ़ के चलते यह मकान क्षतिग्रस्त हो गया था। स्थानीय लोगों के दबाव में राज्य सरकार ने मकान को हेरीटेज बिल्डिंग का दर्जा देकर रखरखाव के लिए 40 लाख रुपए मंजूर किए थे। इस गांव के बाशिंदा और शरत स्मृति ग्रंथागार एवं शरत मेला संचालन समिति के सचिव भास्कर राय के अनुसार, नदी का वेग इतना तेज है कि मकान ही नहीं तीनों गांवों के आस्तित्व पर खतरा है। जब तक यहां पक्का बांध नहीं बनता,नदी आगे बढ़ती रहेगी। सिंचाई विभाग के अधिकारियों का तर्क है कि राज्य सरकार को तीन करोड़ रुपए की योजना भेजी गई है। मंजूरी मिलते ही काम शुरू होगा।

Posted Date:

November 16, 2015

3:23 pm Tags: , , , ,
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