गाजियाबाद में अमर उजाला की संपादकी के कुछ ही महीने बेशक गुजरे हों लेकिन इन चंद दिनों में इस शहर के साहित्य जगत ने मेरे भीतर एक नई ऊर्जा जरूर भर दी। अख़बार के ज़रिये साहित्य-संस्कृति और शहर के बुजुर्गों के लिए जितना कुछ हो सका, कोशिश की। लेकिन उससे भी ज्यादा हर वक्त याद रहने वाली जो चंद मुलाकातें, बातें रहीं उनमें दो अहम नाम मेरी ज़िंदगी का हिस्सा बन गए – जाने माने कथाकार से. रा यात्री और पत्रकार-लेखक कुलदीप तलवार। दोनों ही वयोवृद्ध हस्तियां 85 पार की हैं लेकिन अब भी उनमें अपार रचनात्मक ऊर्जा और समसामयिक सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य को लेकर चिंता है। सेहत साथ नहीं देती, लेकिन लिखने पढ़ने का जुनून बरकरार है। व्यक्तित्व इतना सरल कि आप बहुत जल्दी एकदम अपने से हो जाते हैं। कम से कम आज के दौर के लोगों को अपने इन बुजुर्गों से बहुत कुछ सीखना चाहिए… उनकी सरलता और सादगी, ज़मीन से जुड़े रहने का एहसास, पढ़ना-लिखना, देश-समाज-सियासत को देखने का नज़रिया… और भी बहुत कुछ।
नए कविनगर के अपने छोटे से फ्लैट के एक कमरे में यात्री जी का ज्यादातर वक्त बिस्तर पर ही गुजरता है। पिछले कुछ सालों से सेहत ऐसी बिगड़ी है कि चलना फिरना मुश्किल हो गया है। इसी 10 जुलाई को यात्री जी ने अपने 87 साल पूरे कर लिए हैं। अबतक 33 उपन्यास और 18 कहानी संग्रह लिख चुके यात्री जी के ख़जाने में अब भी कई कहानियां हैं, कविताएं हैं, और बहुत सारे ऐसे संस्मरण हैं जिन्हें सहेजने की ज़रूरत है। धर्मवीर भारती से लेकर हरिशंकर परसाई तक, हरिवंश राय बच्चन से लेकर उपेन्द्रनाथ अश्क और नीलाभ तक… यहां तक कि आज के दौर के तमाम लेखकों तक के बारे में आप यात्री जी से बात कर सकते हैं।
यात्री जी टीवी नहीं देखते। उन्हें खबरिया चैनलों में कोई दिलचस्पी नहीं है। देश के सियासी हालात उन्हें परेशान करते हैं। नफ़रत का माहौल, रिश्तों और संस्कारों की दरकती ज़मीन, व्यावसायिक और स्वार्थपरक संबंधों की औपचारिकताएं, सत्ता के घिनौने खेल और आम आदमी की पीड़ा उन्हें परेशान करती है। वो भावुक होते हैं, कई दफ़ा आंखें नम होती हैं और कई बार मन विद्रोह करता है… बिस्तर पर लेटे लेटे ही इन स्थितियों से वे असहज हो जाते हैं, लेकिन फिर खुद को समझाते हैं। अपने पुराने दिन याद करते हैं। उनके बेटे आलोक यात्री लगातार उनके साथ रहते हैं और उनकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ते। दूसरे बेटे अनुभव यात्री भी माता-पिता के साथ ही रहते हैं। पौत्रों के मासूम सवालों और हरकतों के बीच यात्री जी अपना वक्त काटते हैं। पत्नी खुद बेशक बीमार रहती हों, लेकिन यात्री जी के सुख दुख का ख्याल रखने से लेकर उन्हें गहराई से समझने वाली भला उनसे बेहतर और कौन हो सकता है।
मिलने जुलने वाले अब बहुत कम आते हैं। साहित्य की दुनिया भी बदल चुकी है। पहले भी खेमेबाजी थी, अब व्यावसायिक और गलाकाट खेमेबाजी है। सियासी परिदृश्य में साहित्य की दुनिया भी खंडित रही है। किसी ज़माने में यात्री जी के काम को पहचाना गया.. कुछ सम्मान भी मिले… खासकर उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान ने उन्हें कई बार साहित्य भूषण से नवाज़ा और महात्मा गांधी सम्मान भी मिला, लेकिन साहित्य के तमाम बड़े सम्मानों से उन्हें वंचित रखा गया।
मुझे याद है अपने किशोरावस्था के वो दिन जब घर में से रा यात्री का कहानी संग्रह पुल टूटते हुए और अकर्मक क्रिया देखकर मैं एक बार में सारी कहानियां पढ़ गया था। फिर कभी कभार कुछ पत्र पत्रिकाओं में उन्हें पढ़ता रहा। पूरी तरह याद भले ही न हो, लेकिन संदर्भ छिड़ते ही यात्री जी का रचना संसार प्रभावित करता है। उनके व्यंग्य भी पढ़े – किस्सा एक खरगोश का। हम व्यंग्य में परसाई जी को ही जानते थे, लेकिन यात्री जी को पढ़ा तो एक नई अनुभूति हुई। परसाई जी से अपनी मुलाकातों के बारे में भी यात्री जी बहुत दिलचस्प किस्से सुनाते हैं। नामवर जी के भी कई किस्से उनके पास हैं। आप उनके साथ बैठ जाइए फिर वो उन दिनों में आपको बेहद दिलचस्प अंदाज़ में ले जाएंगे।
आप सोचिए, यात्री जी नियम के इतने पक्के कि इस उम्र में भी वो अपने सर्विस बुक को लेकर खासे परेशान रहते हैं। खुर्जा के एनआरसी कॉलेज से रिटायर हुए उन्हें 26 साल से ज्यादा हो गए, लेकिन उनकी सर्विस बुक बड़ी मशक्कत के बाद अब जाकर मिल पाई है – आप देखेंगे तो रश्क करेंगे। पुरानी, जर्जर पन्नों में स्याही से लिखे चंद शब्दों में कैद है से रा यात्री का अध्यापक व्यक्तित्व। उसे पाकर यात्री जी धन्य हैं। उनकी एक फोन डायरी है। हर वक्त उनके पास रहती है। उसके पीले पड़ चुके पृष्ठों पर यात्री जी की लिखी अनमोल पंक्तियां हैं, कुछ आड़ी-तिरछी, लेकिन कहते हैं – इस डायरी में ही उनका जीवन है।
सचमुच उनके साथ की चंद अंतरंग मुलाकातें मेरे लिए एक धरोहर हैं। ये दिली ख्वाहिश भी है कि उनके संस्मरणों को समेट सकूं। कितना और कब हो पाएगा, पता नहीं। यात्री जी स्वस्थ रहें, लिखते रहें और नई पीढ़ी को कुछ न कुछ देते रहें.. बस यही चाहता हूं।
— अतुल सिन्हा
Posted Date:July 10, 2019
3:27 pm Tags: से रा यात्री, से रा यात्री होने का मतलब, अकर्मक क्रिया, यात्री जी की साहित्य यात्रा