याद ए तश्ना कार्यक्रम में ‘तज़किरा’ त्रैमासिक पत्रिका का विमोचन
इस्लाम किसी वैक्यूम में पैदा नहीं हुआ – नदीम हसनैन
फ़ासीवादी दौर में  तज़किरा पत्रिका हमारी समझ को बढ़ायेगी – प्रो रूपरेखा वर्मा
विमर्श के दरवाज़े खोले जाए – असगर मेहदी
तश्ना की शायरी में विस्थापन का दर्द – कौशल किशोर 
जन संस्कृति मंच की ओर से मशहूर अवामी शायर तश्ना आलमी के सातवें स्मृति दिवस के मौके पर लखनऊ के इप्टा दफ़्तर में ‘याद ए तश्ना आलमी’ का आयोजन किया गया। इसकी अध्यक्षता डॉ नदीम हसनैन ने की। मुख्य अतिथि थीं प्रोफेसर रूपरेखा वर्मा। इस मौके पर त्रैमासिक ई पत्रिका ‘तज़किरा’ जारी की गई।

प्रोफ़ेसर रूप रेखा वर्मा ने मीर तक़ी मीर के “शे’र ख़शका खैंचा” और मजाज़ का मुस्लिम महिलाओं को संबोधित किया और नज़्म “हिजाब ए फ़ितनापरवर,” के संदर्भ में  कहा कि यह बात सही नहीं है कि मुस्लिम समाज फ़तवों से चलता है, यह ग़लत नैरेटिव है। उन्होंने उर्दू भाषा के इंक़िलाबी पहलुओं पर भी रोशनी डाली और इस बात पर खुशी जताई कि तज़किरा पत्रिका के सम्पादक मंडल में जनवादी, साझी विरासत के समर्थक और सेक्युलर मूल्यों में विश्वास रखने वाले अफ़राद हैं। उन्होंने इस प्रयास का स्वागत करते हुए कहा कि फ़ासीवादी दौर में यह पत्रिका हमारी समझ को मज़ीद विकसित करेगी।
पत्रिका के प्रधान संपादक असग़र मेहदी ने तज़किरा को सामने ले आने के घटनाक्रम को रखा कि किस तरह इसका प्रस्ताव आया और यह यहां तक पहुंची। उन्होंने कहा कि अक्सर कहा जाता है कि उर्दू का एक बड़ा हिस्सा हिंदी में मुन्तक़िल हो चुका है, लेकिन विमर्श से सम्बंधित लिटरेचर ठीक से उर्दू में ही उपलब्ध नहीं है तो हिंदी में अनुवाद की स्थिति को समझा जा सकता है।
उनका कहना था कि मुस्लिम दुनिया की महान उपलब्धियों, कमियों या खामियों पर समग्र विमर्श के दरवाज़े खोले जाए। इसी मकसद से ‘तज़किरा’ तिमाही जनरल का प्रकाशन शुरू किया गया है।
असगर मेहदी का कहना था कि तमाम विषय पर संवाद स्थापित हो और तार्किक, प्रगतिशील और वैज्ञानिक तबीयत के समाज के गठन का प्रयास हो। उन्होंने पत्रिका के लेखों का हवाला देते हुए कहा कि आख़िर इस बात पर ग़ौर करना होगा कि मुस्लिम जगत बौद्धिक रूप से पीछे क्यों चला गया? इसके साथ उन्होंने इमाम ग़ज़ाली की भूमिका पर डिबेट की ज़रूरत पर बल दिया।
पत्रिका के संपादक फरजाना महदी तथा कला-संस्कृति संपादक शहजाद रिजवी हैं। यह पत्रिका notnul.com पर उपलब्ध है । एक अंक की सहयोग राशि रुपए 100.00 तथा सालाना रुपए 400.00 है। Notnul के नीलाभ द्वारा नॉटनल पर पत्रिका के लॉंच किए जाने और इसे सब्स्क्राइब किए जाने सम्बंधित जानकारी दी।
प्रो० नदीम हसनैन ने अपने अध्यक्षीय ख़ुत्बे में एक ऐंथरोपोलोजिस्ट के दृष्टिकोण से बातों को रखा। उन्होंने धर्म के टेक्स्चूअल और एम्पिरिकल स्वरूप के दृष्टिगत धर्म की समझ पैदा करने की बात करते हुए कहा कि किताब में क्या लिखा है, उससे शायद कोई अंतर पड़ता हो, जबकि व्यवहार से ही व्यक्ति के धर्म का परिचय होता है। इस्लाम की स्थानीयता को सबसे नुक़सान पहुँचाने वाला आदमी ज़िया उल हक़ था जिसने इस्लाम को ग़ैर ज़रूरी तौर पर एक वैश्विक स्वरूप देने की कोशिश की। समझना यह चाहिए कि इस्लाम किसी वैक्यूम में पैदा नहीं हुआ है। उन्होंने रिवाइवलिस्ट धारा के विपरीत लिबरल इस्लाम जहां इजतिहाद के दरवाज़े खुले हों की ज़रूरत पर बल दिया। उन्होंने मुस्लिम स्कालर ज़ियाउद्दीन सरदार के हवाले से कहा कि डिबेट की परम्परा को ज़िंदा रखना होगा। भारत के संदर्भ में उन्होंने तीन धाराओं- देवबंदी, अजमेरी और अलीगढ़ का संक्षिप्त विवरण देते हुए कहा कि अलीगढ़ की धारा जहां आधुनिकता और विज्ञान पर केन्द्रित है, उस दिशा में बढ़ना होगा। उन्होंने तज़किरा की टीम को कई मुफ़ीद मश्वरे देते हुए दिली मुबारकबाद पेश की।
राकेश कुमार मिश्रा ने कहा कि तज़किरा तो हम करते रहे हैं। अब वह जर्नल के रूप में आया है। तज़किरा की हद खींचेंगे तो विचार मरने लगता है। मनोरंजन से तज़किरा नहीं होता। भाषा के स्तर पर आम बोलचाल में सामग्री होनी चाहिए। वज़ाहत हुसैन रिजवी ने कहा कि ‘तज़किरा’ जैसा रिसाला निकालना आज़ के वक्त में चुनौती पूर्ण है। पत्रिका में इज़हार के तहत आज़ के हालात को बयां किया गया है। उन्होंने पत्रिका में साया लेखों और रचनाओं पर तफ़सील से अपनी बात रखी।
कार्यक्रम के शुरू में कौशल किशोर ने तश्ना आलमी की शायरी पर बोलते हुए कहा कि उनकी शायरी में बगावती तेवर और हिन्दुस्तानी जबान है। इसमें सहजता ऐसी कि वह लोगों की जुबान पर बहुत जल्दी चढ जाती है। शायरी कई तरह के विस्थापन के बीच घूमती है। यह देश में रहते हुए देश से विस्थापन, गांव से शहर व शहर में रहते हुए शहर से विस्थापन तथा साहित्य की दुनिया से विस्थापन – सबको समेटती है।  तश्ना की शायरी इस विस्थापन से पैदा हुए दर्द, संघर्ष और मुक्ति की शायरी है।
कार्यक्रम का संचालन जसम लखनऊ के सचिव फरजाना महदी ने की तथा कहा कि जल्दी ही तश्ना आलमी की शायरी की किताब प्रकाशित की जाएगी। सभी का आभार व्यक्त किया सह सचिव कलीम खान ने। इस मौके पर राकेश, शकील सिद्दीकी, भगवान स्वरूप कटियार, शैलेश पंडित, नलिन रंजन सिंह, तस्वीर नकवी, नाइश हसन, रफत फातिमा, इरा श्रीवास्तव, विमल किशोर, प्रतुल जोशी, शालिनी सिंह, कल्पना पांडे, समीना ख़ान, कर्नल वाई एस यादव, प्रोफेसर ए जे अंसारी, अनूप मणि त्रिपाठी, शहजाद रिजवी, अनिल कुमार श्रीवास्तव, अशोक श्रीवास्तव, अशोक मिश्रा, अशोक चंद्र, दयाशंकर राय, नगीना खान, धर्मेंद्र कुमार, केके शुक्ला, वीरेंद्र त्रिपाठी, रमेश सिंह सेंगर, ज्ञान प्रकाश चौबे, माधव महेश, प्रभात त्रिपाठी, प्रदीप श्रीवास्तव, डॉक्टर फिदा हुसैन, विभाष कुमार श्रीवास्तव, सत्यम, जयप्रकाश, राकेश कुमार सैनी, शांतम निधि, आदियोग, नीलाभ श्रीवास्तव, निशात फातिमा, कांति मिश्रा, मधुसूदन मगन आदि।
Posted Date:

September 23, 2024

10:00 pm Tags: , , , , ,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Copyright 2024 @ Vaidehi Media- All rights reserved. Managed by iPistis