ललित कला अकादमी पिछले दिनों पांच महिला कलाकारों के बेहतरीन काम का गवाह बनी। इन पांचों कलाकारों ने अपनी सामूहिक प्रदर्शनी का नाम दिया था – ‘प्रथमा’। इन पांचों में एक मूर्तिशिल्पी हैं- निवेदिता मिश्रा, एक सेरामिक कलाकार हैं-मीनाक्षी राजेंद्र और तीन पेंटर हैं-माधुरी शर्मा, सोनी खन्ना और विम्मी इंद्रा। इन कलाकारों ने मिलकर ‘‘स्तब्धिका’ नाम की संस्था बनाई है। इन कलाकारों का कहना है कि जो स्तब्ध कर दे वही स्तब्धिता है। बहरहाल, इन पांचों के काम कला प्रेमियों को स्तब्ध करें न करें, आकर्षित जरूर करते हैं।
चूंकि पाचों तीन विधाओं में हैं, इसलिए भी इनके काम में किसी तरह की साम्यता नहीं है, और सबके काम अलग-अलग खासियत लिए हुए हैं। फिर भी वे क्यों एक साथ आई? यह सवाल सहज ही उठता है। इसका जवाब तो यही है कि सब मिलकर महिला कलाकारों की सृजनात्मकता पर बल देना चाहती हैं। हालांकि ऐसा भी नहीं है कि इनमें किसी खास प्रकार का महिला विमर्श है। अगर वैसा होता तो भी कुछ गलत नहीं होता फिर भी रेखांकित किया जाना चाहिए कि इन सब के कला-विषयों में विविधता है। साथ ही वैचारिक स्तर पर समकालीन भारतीय कला में महिलाओं के लिए विशिष्ट जगह बनाने की आकांक्षा भी। निवेदिता मिश्रा तो अब वरिष्ठ मूर्तिशिल्पियों में शुमार हैं, और पत्थर विशेषकर ग्रेनाइट और लकड़ी जैसे माध्यमों में उनके काम एक परिपक्व मूर्तिशल्पी की शिनाख्त करते दीखते हैं। उनके काम से यह भी नहीं झलकता कि महिला मूर्तिशिल्पी हैं। बस ऐसी मूर्तिशिल्पी हैं, जिनमें अपने माध्यम की समझ है, और दृष्टि की गहराई भी। यही बात सेरामिक कलाकार मीनाक्षी राजेंद्र के बारे में भी कही जा सकती है। हालांकि उनकी कला यात्रा बतौर पेंटर शुरू हुई पर मिट्टी से लगाव की वजह से उनका झुकाव सेरामिक्स की तरफ हुआ और यही उनका मुख्य माध्यम है। अब वे पूरी तरह मिट्टी में रच-बस गई हैं।
माधुरी शर्मा की कलाकृतियों में मुख्य रूप से स्त्री और पुरुष की मिली जुली छवियां हैं। पर ये छवियां एक दूसरे की विरोधी नहीं, बल्कि पूरक लगती हैं। माधुरी आकृतिमूलक कलाकार हैं पर उनकी आकृतियां चेहरों के डिटेल की बनिस्बत भंगिमाओं को अधिक पेश करती हैं। वे वैचारिक और सैद्धांतिक स्तर पर प्रस्तावित करती हैं कि पुरुष और स्त्री में किसी तरह टकराव नहीं है।
सोनी खन्ना भी आकृतिमूलक कलाकार हैं पर उनमें स्त्री की वैयक्तिक आकांक्षा अधिक झलकती है। एक ओर उनकी कलाकृतियों में नारी आकृतियां तो हैं ही तो साथ ही उस आकृति पर लाल, नीले या हरे पत्ते फैले हुए हैं। कह सकते हैं कि उनके यहां प्रकृति और प्रकृति है। एक प्रकृति तो औरत है, और दूसरी प्रकृति पत्ते हैं। इन दोनों प्रकृतियों के मेल से स्त्री मन की उड़ान का बोध होता है।
विम्मी इंद्रा की कलाकृतियों में आकृति हैं पर कुछ कुछ अमूर्त भी हैं। इस प्रदर्शनी में शामिल उनकी कलाकृतियों में दो तत्वों का मेल था। एक तो शहरी जिंदगी यानी सिटी स्केप्स और दूसरे उन पर उभरे स्वतंत्र चेहरे। कुछ कलाकृतियों पर नाम भी लिखे हुए हैं। जैसे किसी पर इंदिरा या अरबन बॉय।
विम्मी की पेटिंग्स में एक तरह का कंट्रास्ट है, जिसके कारण वे दो विरोधी दृश्यों को एक साथ मौजूद दिखाती हैं। आशा की जानी चाहिए कि पांचों कलाकार भविष्य में अपनी पहचानों को और भी अधिक विस्तारित करेंगी। समूह प्रदर्शनी एक शुरुआत होती है। वो पूर्णाहुति तक तभी पहुंचती है, जब उसके सभी कलाकार आगे चलकर स्वतंत्र कला व्यक्तित्व बनाएं। महिला कलाकारों का वास्तविक लक्ष्य भी यही होना चाहिए।
रवीन्द्र त्रिपाठी
Posted Date:April 29, 2019
3:52 pm Tags: lka, Ravindra Tripathi, Prathama, Stabdhita, Nivedita Mishra, Minakshi Rajendra, Madhuri Sharma, Soni Khanna, Vimmi Indra