स्वागत कीजिए 2021 का…
क्या खोया, क्या पाया… जीवन शैली, सोच और रचनात्मकता के नए तौर तरीके
‘ज़िंदगी और मौत तो ऊपर वाले के हाथ में है जहांपनाह, हमसब तो रंगमंच की कठपुतलियां हैं जिनकी डोर ऊपर वाले के हाथ में है… कब, कौन, कैसे उठेगा कोई नहीं जानता….’
फिल्म आनंद में लेखक गुलज़ार का यह संवाद बेहद हिट हुआ था। फिल्म ऐसी थी कि कोई भी संवेदनशील दर्शक अपने आंसू नहीं रोक पाता था। 2020 ने कम से कम 40 साल पहले लिखे गए इस संवाद को जीवंत कर दिया है। ये एक ऐसा ऐतिहासिक साल रहा जिसने हमें बहुत कुछ सिखाया, खासकर जीवन की वो सच्चाइयां और इन चालीस सालों में गुम होती या व्यावसायिक होती संवेदना का वो सच जिसे कोरोना नाम के आतंक ने सबके सामने ला खड़ा किया। पहले अपनों के गुज़र जाने के एहसास भर से आप बेचैन हो उठते थे, लेकिन अब मौत एक सामान्य खबर की तरह आती है और पल भर में गुज़र जाती है। बहुत से ऐसे लम्हे इस साल देखने में आए जब बेहद अपनों का गुज़र जाना भी आपको सिर्फ एक तात्कालिक उफ करने से ज्यादा कुछ नहीं कर पाने को मजबूर करता रहा। कोरोना काल ने हमें भीतर से मजबूत बनाया और ये बताने की कोशिश की कि भई, अगर खुद को सही सलामत रखना है तो बाकियों की चिंता छोड़ दीजिए। यहां सिर्फ आप हैं और कोई नहीं है। अपने लिए जीना सीखिए या फिर हद से हद अपने परिवार के लिए। अब ऐसे गीतों का कोई मतलब नहीं रह गया कि ‘अपने लिए जिए तो क्या जिए, तू जी ऐ दिल ज़माने के लिए।‘
बाज़ारवाद ने तो वैसे भी संवेदना के तार झिंझोंड़ दिए थे, रिश्ते नातों की अहमियत कम कर दी थी, हरेक को एक ‘अलगाववादी’ और काफी हद तक संवेदनहीन बना दिया था। सोने पे सुहागा 2020 का ये लंबा दौर आ गया। लेकिन क्या हमने कभी सोचा कि 2020 से सीख लेने की बात कहते कहते हमने क्या क्या खो दिया, हम खुद को कहां ले आए और एक अनजाने, अबूझे अंधविश्वास के डर ने हमें कितना कमजोर बना दिया? पहले से ही हम कम अंधविश्वासी नहीं थे, शक और आशंका इंसानी फितरत का हिस्सा थी, लेकिन ये जो मौत का डर है न, उसने हमसब को कितना अलग थलग, अकेला और डरपोक बना दिया। मौत कब नहीं होती थी। ये कुदरत का दस्तूर है जो आया है, वो जाएगा। आप लाख इलाज करवा लो, वैक्सीन लगवा लो, शीशे के कमरे में खुद को बंद कर लो.. जब जाना है तो जाना है। तो फिर ये ‘सामाजिक प्राणी’ भला ‘असामाजिक’ कैसे हो सकता है?
शायद यही वजह है कि चुनावी सभाओं में भीड़ है, धार्मिक आयोजनों में भीड़ है, बाजारों में भीड़ है, सड़कें जाम हैं, दिवाली की खरीदारी में भीड़ है, पर्यटन स्थलों में भीड़ है, किसानों की भीड़ है, बंगाल में भीड़ है, बिहार में भीड़ है। हर तरफ भीड़ ही भीड़ है। कोरोना महाराज भी सोच रहे हैं कि भई इस भीड़ में पिसने से अच्छा है दूर ही रहो। स्वास्थ्य विभाग आंकड़े पर आंकड़े बताए जा रहा है, प्रतिशत पर प्रतिशत गिनवाए जा रहा है और अब तो चलो ये वैक्सीन वाला खेल भी शुरु हो चुका है। बड़ी बड़ी खबरें चल रही हैं और वैक्सीन को लेकर तरह तरह के सपने दिखाए जा रहे हैं। लगता है कोई देवदूत आ गया है, उसने छड़ी घुमाई और कोरोना छू मंतर हो गया। प्रधानमंत्री कह रहे हैं कि भई, अफवाह फैलाने वालों से बचकर रहिए। इस देश में अफवाहें बड़ी तेजी से फैलती हैं, पहले कोरोना को लेकर फैलीं, अब वैक्सीन को लेकर भी फैलेंगी, सो बचकर रहिए। लोगों को जो कहना है कहने दीजिए, हम जो कह रहे हैं, उसी पर यकीन कीजिए।
जाहिर है कोरोना काल ने हमारे प्रधानमंत्री जी का रूप रंग बदल दिया है। एकदम बाबा जी हो गए हैं। नया गेटअप उन्हें पसंद भी आ रहा है। किसानों को समझा समझा कर परेशान हैं, महीनों से एक ही राग चल रहा है। किसान भी मस्त हैं। पिकनिक की तरह आंदोलन चल रहा है। गीत संगीत, आधुनिक टेंट सिटी, खरीदारी के लिए मॉल्स, खान पान का बेहतरीन इंतजाम। गुरुद्वारों ने दिल खोलकर ‘वाहे गुरु जी का खालसा, वाहे गुरु जी की फतह’ कर दी है। विज्ञान भवन में भी कुछ वीआईपी किसान मंत्री के साथ लंच ले रहे हैं, सेल्फी खिंचवा रहे हैं। इतना दिलचस्प आंदोलन क्या आपने पहले कभी देखा है। ये भी तो 2020 का ही कमाल है।
2020 के दस महीने कमाल के रहे हैं। आपकी पूरी जीवन शैली बदल गई। मास्क आपके जीवन और पहनावे का हिस्सा बन गया। एक से एक डिजाइनर मास्क। सैनेटाइजर के तमाम रूप बाजार में आ गए। दफ्तरों में जाइए तो तोरण द्वार से फूल झरने की तरह सैनिटाइजर की भीनी भीनी बारिश होती है। इसके बड़े बड़े प्लांट लग गए। तमाम एनजीओ के पास कोरोना ने बहुत सारे काम दे दिए। दफ्तरों में कम लोगों से काम चलने लगा। फिजूलखर्ची खत्म हो गई।
एक झटके में 5जी का रास्ता साफ हो गया। लगता है सारा संसार ही डिजिटल और वर्चुअल हो गया। व्हाट्सएप और फेसबुक ने तो वैसे भी ये संकेत दे दिए थे कि अब आने वाला वक्त आभासी दुनिया का ही है। लेकिन 2020 ने तो एक झटके में सबकी चांदी ही चांदी कर दी। अब भी अगर आप डिजिटल न हो सके तो फिर आपका ऊपरवाला ही मालिक है। पुरानी सोच वाले लोग अब भी इसे साजिश और एक दूसरे से काट देने का षडयंत्र मानते हों, लेकिन शायद 21वीं सदी का भारत यही है। और अब 2021 में तो देखिए और क्या क्या नया होता है। 2020 ने जो ज़मीन तैयार की है, उसकी फसल 2021 में लहलहाएगी और आप एक नई अनोखी दुनिया को आकार लेते देखेंगे। तो नई उम्मीदों के साथ स्वागत कीजिए 2021 का।
(‘अमर उजाला’ में अतुल सिन्हा का आलेख)
Posted Date:December 31, 2020
9:55 pm Tags: 2020, 2021, कितना बदला 2020 ने, बदली जीवनशैली, करोना काल, स्वागत 2021